Published By- Shiv Pratap Singh Sengar Tuesday 22 February, 2022
औरैया। शिशुओं को सुपोषित बनाने में अनुपूरक आहार की अहम भूमिका होती है। छह माह के बाद, बच्चों को अतिरिक्त पोषक आहार की जरूरत होती है। इसलिए, आंगनबाड़ी केंद्रों पर छह माह पूरे कर चुके शिशुओं का हर माह अन्नप्राशन कराया जाता है। मंगलवार को भी जिले के ब्लॉक अछल्दा के ग्राम पंचायतों में अन्नप्राशन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें छह माह की हो चुकी वेदिका का अन्नप्राशन कराया गया और उनके माता-पिता को जानकारी दी गई कि अब बच्चों को मां के दूध के साथ ऊपरी पोषक तत्वों वाले आहार भी देना जरूरी है। यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी है।
स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हुए हाथ धुलाई की बताई गई सही विधि
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुमन चतुर्वेदी का कहना है कि कोरोना संक्रमण से बचाव को ध्यान में रखते हुए केंद्र पर बच्चों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हुए हाथ धुलाई का प्रदर्शन किया गया | इसके तहत हाथ धोने के सही तरीके व इससे होने वाले फायदे के बारे में बताया गया। इसके साथ ही बच्चों व बड़ों को हाथ धोने के लिए सुमन चतुर्वेदी ने सही विधि का प्रयोग बताते हुए एस- सीधा, यू- उल्टा, एम- मुट्ठी, ए- अंगूठा एन- नाखून और के- कलाई के बारे में समझाया गया। इसके बाद उन्हें सबसे पहले कलाई, फिर हाथ की उलटी तरफ, फिर मुट्ठी, उसके बाद अंगूठा, फिर नाखून और अंत में फिर कलाई को साफ करना सिखाया गया और इसका नित्य प्रयोग करने को कहा गया। इसके साथ ही केंद्र पर माताओं को मौसमी बीमारी के उपचार हेतु घरेलू उपाय सेविकाओं द्वारा बताया गया। खानपान में पोषण का ध्यान रखते हुए संतुलित आहार लेने की सलाह दी गई।
बच्चे की सेहत और विकास के लिए माँ के साथ पिता की भी ज़िम्मेदारी
वेदिका की माँ शोभा बताती हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र की सुमन दीदी और आशा उमा दीदी के समझाने पर मैँने अपनी दो बेटियों के बाद नसबंदी करवा ली है। शोभा का कहना है कि आंगनबाड़ी केंद्र पर आने से बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है जिससे हमारे बच्चों के विकास में वृद्धि होती है। सुमन बताती हैं कि बच्चे की सेहत और उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए मां के साथ पिता की भी जिम्मेदारी है। वह बच्चे को टीकाकरण और अन्य कार्यक्रम के लिए केंद्र पर भिजवाना सुनिश्चित करें। उसके लिए ऐसे भोजन का प्रबंध करें तो उसके लिए फायदेमंद है। बुजुर्ग दादा दादी भी इसमें सहयोग करें।
जैसा खाते अन्न, वैसा होता है मन
एक बहुत ही प्रचलित कहावत है कि ‘जैसा खाएं अन्न वैसा होगा मन’ यानि हम जिस प्रकार का अन्न (भोजन) ग्रहण करते हैं हमारे विचार, व्यवहार भी उसी प्रकार का हो जाता है। हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में अन्नप्राशन संस्कार का भी खास महत्व है। मान्यता है कि छह मास तक शिशु माता के दूध पर ही निर्भर रहता है, लेकिन इसके पश्चात उसे अन्न ग्रहण करवाया जाता है ताकि उसका पोषण और भी अच्छे से हो सके। शिशु को पहली बार माता के दूध के अलावा अन्न आदि खिलाये जाने की क्रिया को अन्नप्राशन कहा जाता है।