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सपा के 111 विधायकों में 32 मुस्लिम, एक तिहाई के लिए चाहिए 37 का आंकड़ा
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मुसलमानों की इच्छाओं का सम्मान करें मुस्लिम विधायक
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उलेमाओं को भी विधायकों पर मुस्लिम विरोधी अखिलेश से अलग हो जाने के लिए बनाना चाहिए दबाव
- Published by- @MrAnshulGaurav
- Monday, April 25, 2022
लखनऊ। कांग्रेस हर उस व्यक्ति के साथ खड़ी है, जिसके साथ अन्याय हो रहा है। हम पीड़ित का जाति-धर्म या पार्टी नहीं देखते। इसी सिद्धांत के तहत कांग्रेस आज़म खान से भी सहानुभूति रखती है। ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने शिवपाल यादव के उस बयान से सहमति जताई है, जिसमें उन्होंने कहा था की आज़म खान को छुड़ाने के लिए मुलायम सिंह ने संसद में आवाज़ नहीं उठाई और ना ही सपा ने कोई आंदोलन चलाया। शाहनवाज़ आलम ने कहा कि नोएडा विकास प्राधिकरण घोटाले में राम गोपाल यादव को जेल जाने सी बचाने के एवज में अखिलेश और मुलायम सिंह यादव ने भाजपा से डील के तहत आज़म खान को जेल भिजवाया है। इसीलिये सपा आज़म के लिए आवाज़ नहीं उठाती क्योंकि ऐसा करने पर भ्रष्टाचार में डूबे पूरे परिवार को जेल जाना पड़ सकता है।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इसी दबाव के चलते अखिलेश यादव ने देश भर में हो रहे मुस्लिम विरोधी हिंसा के खिलाफ़ विपक्षी पार्टियों द्वारा जारी संयुक्त बयान पर भी हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था।
शाहनवाज़ आलम ने सपा के 32 मुस्लिम विधायकों को सदन में अलग दल बना लेने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि अगर मुस्लिमों के 90 फीसदी वोट पाने के बावजूद अखिलेश मुस्लिम विरोधी हिंसा पर चुप हैं, यहाँ तक कि अपने मुस्लिम विधायकों आज़म खान, शहजिल इस्लाम और नाहिद हसन तक के उत्पीड़न का विरोध नहीं कर पा रहे हैं तो फिर मुस्लिम विधायकों का सपा में बने रहने का क्या औचित्य है।
उन्होंने कहा कि सपा के कुल 111 विधायक हैं और विधान सभा में सपा में विभाजन के लिए एक तिहाई यानी 37 विधायक चाहिएं जबकि अकेले मुस्लिम विधायकों की संख्या ही 32 है। ऐसे में सपा के अन्य 5 सेकुलर विधायकों के साथ वो आज़म खान के नेतृत्व में अपनी अलग पार्टी बना सकते हैं। इससे मुस्लिम समुदाय के ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ़ सदन में एक संगठित आवाज़ उठ सकती है।
उन्होंने कहा कि वैसे भी मुसलमानों ने अब सपा से किनारा करने का मन बना लिया है ऐसे में इन मुस्लिम विधायकों का समाज को नाराज़ करके सपा में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। मुस्लिम उलेमाओं को भी चाहिए कि वो इस दिशा में सपा के मुस्लिम विधायकों पर दबाव बनाएं।