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भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : जब माँ यशोदा और अर्जुन को दिखाया था अपना विराट स्वरूप

पूरा देश आज हर्षोल्लास से भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी का त्योहार मना रहा है। घरों से लेकर मंदिरों तक श्रीकृष्ण जन्म की धूम है। श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी पौराणिक कथाओं को यदि देखें तो पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने दो स्थानों पर अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराये हैं। आइए जानते हैं भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी इन दो अलौकिक कथाओं को…।

जब मां यशोदा को कन्हैया के मुंह में दिखा था पूरा ब्रह्माण्ड

प्राचीन काल में जब भगवान विष्णु ने दुष्टों को मारने और देश में धर्म की स्थापना के लिए श्री कृष्ण का अवतार लिया था यह पौराणिक कथा उसी समय की है। यह कथा कृष्ण भगवान के बाल जीवन से जुड़ी हुई है। जब नंदगांव में मां यशोदा के पास कृष्ण जी बड़े हो रहे थे उस समय उनका स्वभाव बेहद नटखट था। उनके स्वभआव की चर्चा पूरे वृन्दावन में थी।

एक बार श्री कृष्ण घर के बाहर मिट्टी के आंगन में खेल रहे थे। इसी समय दाऊ यानी श्री कृष्ण के बड़े भाई वहां आए। उन्होंने देखा कि कन्हैया मिट्टी खा रहे हैं। यह देख दाऊ ने उनकी शिकायत मां यशोदा से की। उन्होंने कहा कि मां, देखो तो कान्हा आंगन में मिट्टी खा रहा है। जैसे ही मां यशोदा ने यह सुना तो वो सीधा बाल गोपाल के पास पहुंची। उन्होंने पूछा कि लाला क्या तुमने मिट्टी खाई। इस पर कान्हा बोले, “नहीं, मां मैंने मिट्टी नहीं खाई।” मां यशोदा को उनकी बात पर विश्वास नहीं किया। उन्होंने कहा, “कान्हा, जरा मुंह खोलकर तो दिखाओ कि तुमने मिट्टी खाई है या नहीं।” यह सुनकर मां यशोदा को कान्हा ने मुंह खोलकर दिखाया। जैसे ही उन्होंने मुंह खोला तो मां यशोदा अचंभित रह गईं।

मां को उनके मुंह में मिट्टी तो नजर नहीं आई लेकिन पूरा ब्रह्मांड जरूर नजर आ रहा था। मां यशोदा को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। उन्होंने सोचा कि उनके कान्हा के मुंह में उन्हें सारी सृष्टि और जगत के समस्त प्राणी कैसे नजर आ रहे थे। वो ज्यादा देर तक यह देख नहीं पाईं और बेहोश हो गईं।
जब मां यशोदा को होश आया तो उनके मन में बाल कृष्ण के लिए और भी ज्यादा प्यार जाग गया। उन्होंने कान्हा को अपने गले से लगा लिया। उनकी आंखें आंसुओं से भर गईं। मां यशोदा को विश्वास ही नहीं हुआ कि वो एक साधारण बालक नहीं हैं। वह स्वयं सृष्टि के स्वामी और परमात्मा के अवतार हैं।

जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिखाया अपना विराट स्वरूप

भगवद्गीता दिव्य साहित्य है जिसको ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से साक्षात अर्जुन को सुनाया था। यदि कोई भगवद्गीता के उपदेशों का पालन करे तो वह जीवन के दुखों तथा चिंताओं से मुक्त हो सकता है। वह इस जीवन के सारे भय से मुक्त हो जाएगा और उसका सारा जीवन आध्यात्म से भर जाएगा। भगवद्गीता को निष्ठा के साथ पढ़ने वाले पर भगवान की कृपा से दुष्कर्मों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऋषियों ने भी समय-समय पर कहा है कि जिसने भगवद्गीता के श्लोंको का मर्म समझ लिया उसे मोक्ष तो मिलेगा ही साथ-साथ इस भौतिक संसार में भी वह सभी कठिनाईयों से पार पा जाएगा।

आज का संदर्भः कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध के पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था। महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन ने अपने बन्धु बान्धुओं को अपने समक्ष युद्ध के लिए तत्पर देखा तो वह मोहवश युद्ध से विरत होने लगा। भगवान श्रीकृष्ण ने उसके मोहपाश को काटते हुए अपना विराट स्वरूप दिखाया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि दी और उसे अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराए। गीता के ग्यारहवें अध्याय में भगवान के विराट स्वरूप का वर्णन है। भगवद्गीता के इन श्लोक के माध्यम से आइए जानते हैं परात्पर अखिलेश्वर के विराट स्वरूप के दर्शन…।

अनेक वक्त्रनयनम नेकाद्भुतदर्शनम्।
अनेकादिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम।

अर्थात- अर्जुन ने उस विश्वरूप में असंख्य मुख, असंख्य नेत्र तथा असंख्य आश्चर्यमय दृश्य देखे। यह रूप अनेक दैवी आभूषणों से अलंकृत था और अनेक दैवी हथियार उठाए हुए था।

दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगतन्धानुलेपनम्।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्।।

अर्थात- यह दैवी मालाएँ तथा वस्त्र धारण किए थे। उस पर अनेक दिव्य सुगंधियाँ लगी हुई थी। सब कुछ आश्चर्यमय, तेजमय तथा सर्वत्र व्याप्त था।

दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः।।

अर्थात- यदि आकाश में हजारों सूर्य एकसाथ उदय हों, तो उनका प्रकाश शायद परमपुरुष के स विश्वरूप के तेज की समता कर सके।

तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा।
अपश्यदेवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा।।

अर्थात- उस समय अर्जुन भगवान् के विश्वरूप में एक ही स्थान पर स्थित हजारों भागों में विभक्त ब्रम्हाण्डके अनंत अंशो को देख सका।

ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः।
प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत।।

अर्थात- तब मोहग्रस्त एवं आश्चर्यचकित रोमांचित हुए अर्जुन ने प्रणाम करने के लिए मस्तक झुकाया और वह हाथ जोडकर भगवान से प्रार्थना करने लगा।

    दया शंकर चौधरी

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