बूढ़े माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बेटा नहीं…. एक अच्छी संस्कारी बहु होती है। हर माँ-बाप को बेटे की शादी के लिए मन में चिंता रहती है। आजकल बेटी के लिए अच्छा ससुराल देखना जितना जरूरी है; उतना ही बेटे के लिए #संस्कारी और सुलझी हुई लड़की बहू के रुप में ढूँढना भी जरूरी है। ज़ाहिर सी बात है एक गलत फैसला पूरे परिवार को तबाह कर सकता है।
आजकल लगभग हर दंपत्ति का इकलौता बेटा ही होता है। पहले के ज़माने की बात अलग थी तीन-चार बेटे होते थे, उसमें से एक दो बहूएँ अच्छी नहीं निकली तो इतने में से कोई एक तो समझदार होती थी जो घर परिवार और बड़े बुज़ुर्गों का ख़याल रखती थी। अब तो एक ही बेटे की एक ही बहू से उम्मीद लगानी पड़ती है। अच्छी, संस्कारी, समझदार निकली तो ठीक है वरना जैसा नसीब।
कहने का मतलब यह है कि बेटा चाहे कितना भी अच्छा हो पूरा दिन तो काम काज की वजह से घर पर नहीं रहता। घर पर रहती है बहू, परिवार संभालना होता है बहू को, सास-ससुर की सेवा करेगी बहू तो हुई न बुढ़ापे का सहारा बहू। माँ-बाप को हर लड़की को ये संस्कार देने चाहिए की परिवार को संभालकर रखें और बड़े #बुज़ुर्गों की सेवा करें। साथ में हर सास-ससुर को अपनी बहू को बेटी समझकर मान, सम्मान से रखना चाहिए। प्रेम दोगे तो पाओगे। बाकी बहू को अपने परिवार का हिस्सा न समझते परायों सा व्यवहार करेंगे तो बहू के मन में भी आपके प्रति अपनेपन का भाव कभी नहीं आएगा।
“बहू ही घर का आधार स्तंभ होती है, ये बात हर सास-ससुर को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए”। हर सास को बेटे की शादी होते ही बहू को अपने घर के रीत-रिवाज़ और परंपरा समझा देने के बाद कुर्सी खाली कर देनी चाहिए। #बहू पर पूरा भरोसा करते बेटे और घर की बागडोर बहू को थमा देनी चाहिए। बहू को ससुराल अपना खुद का घर लगना चाहिए, तभी परिवार को अपनाकर खुशी खुशी सारी ज़िम्मेदारियाँ उठाएगी। खुद की बेटी आठ बजे तक सोती है तो हमें अच्छा लगता है, आहिस्ता से दरवाज़ा बंद करके सोने देते है।
उससे उल्टा अगर बहू कभी देर तक सोती रहे तो आफ़त आ जाती है। यही मानसिकता बदलने की जरूरत है। अरे सोने दीजिए न बेचारी को; दो काम आप खुद कर लेंगे तो एक्सरसाइज़ हो जाएगी। पर ना बहू के लिए एक दायरा तय कर दिया जाता है नियमों का जिसे लाँघने की बहू को अनुमति नहीं होती।
अक्सर देखा जाता है #बहूओं से ससुराल में परायों सा व्यवहार ही होता है। पराये घर से आई पराई लड़की। हर छोटी-बड़ी बात बहू से छुपाकर की जाती है। बेटी को कुछ देना होता है तो #सासुमाँ बहू से छुपाकर देती है। क्यूँ ऐसी मानसिकता रखनी है? बहू को भी बेटी समझकर जो चीज़ बेटी के लिए लेते हो वही बहू के लिए भी लीजिये और दोनों को साथ में दीजिए। तभी बहू को #सास पर अपनी माँ के जैसा प्यार आएगा। बाकी पूरी ज़िंदगी बहू को पराई समझकर सितम ढ़ाने के बाद ये उम्मीद रखना कि बहू उम्र के आख़री पड़ाव में खुशी-खुशी आपकी सेवा करें ये गलत बात है। बहू भी किसीके जिगर का टुकड़ा है, प्यारी सी गुड़िया पर प्यार क्यूँ नहीं आता ससुराल वालों को? एक बार दिल से अपनाकर तो देखिए। बहू को ही बेटी मानकर चलिए घर का वातावरण सुखमय रहेगा और बुढ़ापा सुरक्षित।