बेलपत्र अथवा बेल नामक वृक्ष के पत्तों को कहा जाता है इसे हम भगवान शिव की पूजन सामग्री के तौर पर जानते हैं। श्रावण मास में शिव को खासतौर पर बेलपत्र चढ़ाया जाता है। परंपरा के तहत बेल वृक्ष के नीचे शिव की पूजा को पुण्यदायक माना जाता है। शिव की अर्चना करते समय शिवलिंग पर बेलपत्र और दूध अथवा पानी चढ़ाया जाता है। सामान्यतः बेलपत्र तीन पत्तों वाला होता है। पांच पत्तों वाला बेलपत्र अधिक शुभ माना जाता है।
बेल वृक्ष की महिमा
भगवान शिव की पूजा में
भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेल पत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्ना हो जाते है, इसलिए तो उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियां जुडी रहती हैं जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है।
वैसे तो बेलपत्र की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, लेकिन शिवपुराण में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है। शिव पुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है। प्रभु स्वयं इसकी महिमा स्वीकारते हैं।
बेल वृक्ष की उत्पत्ति
बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कंद पुराण में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्ना हुआ। इस वृक्ष की जड़ो में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।
कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियां समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महालक्ष्मी का भी बेलवृक्ष में वास है। जो व्यक्ति शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है।