देश के अर्थशास्त्री और राजनेता पुरानी पेंशन योजना को लेकर जो बयान दे रहे हैं, वह तर्कसंगत नहीं है। क्योंकि राज्य के विधायक और सांसद खुद कई-कई पेंशन ले रहे हैं। जबकि एक कर्मचारी जो साठ साल देश की सेवा करता है उसकी पेंशन बंद कर दी गयी है, क्यों ? नई और पुरानी पेंशन योजना का कर्मचारियों की पेंशन पर बड़ा अंतर है।
इसे ऐसे समझें कि अगर अभी 80 हजार रुपये सैलरी पाने वाला कोई शिक्षक रिटायर होता है तो पुरानी पेंशन योजना के हिसाब से उसे करीब 30 से 40 हजार रुपये की पेंशन मिलेगी। वहीं अगर नई पेंशन योजना के हिसाब से देखें तो उस शिक्षक को बमुश्किल 800 से एक हजार रुपये की ही पेंशन मिलेगी। वहीं नई योजना में रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती। पुरानी स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है।
पुरानी पेंशन योजना पर विवाद बढ़ता जा रहा है। चुनाव आते ही पुरानी पेंशन योजना का मुद्दा बाहर आ जाता है। राजनीतिक पार्टियां इसके माध्यम से अपना वोट बैंक बढ़ाना चाहती हैं। हरियाणा में चुनावों का मौसम आते ही राजनीति गरमाने लगी है। राज्य के कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली को लेकर सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हजारों कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली को लेकर पंचकूला में जोरदार प्रदर्शन कर रहें है। और चेतावनी दी कि अगर ओपीएस को बहाल नहीं किया गया तो सरकार बदल दी जाएगी।
देश के अर्थशास्त्री और राजनेता पुरानी पेंशन योजना को लेकर जो बयान दे रहे हैं, वह तर्कसंगत नहीं है। क्योंकि राज्य के विधायक और सांसद खुद कई-कई पेंशन ले रहे हैं। नियम ऐसे हैं कि अगर कोई नेता पूर्व सांसद या विधायक की पेंशन ले रहा है और फिर से मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद के वेतन के साथ ही पेंशन भी मिलती है।
सांसदों और विधायकों को डबल पेंशन लेने का हक है। अगर कोई विधायक रहा हो और बाद में सांसद बन जाए तो उसे दोनों की पेंशन मिलती है। पेंशन के लिए कोई न्यूनतम समयसीमा तय नहीं है, यानी कितने भी समय के लिए नेताजी सांसद रहे हों पेंशन पाने के हकदार रहेंगे। मृत्यु होने पर परिवार को आधी पेंशन मिलती है। पूर्व सांसदों का सेकंड एसी रेल का सफर मुफ्त होता है।
क्या कर्मचारियों को अपनी वृद्धावस्था के दौरान सुरक्षित महसूस करने का अधिकार नहीं है। यदि कर्मचारी 30-35 साल की नौकरी करता है और उसे बुढ़ापे की उम्र में पेंशन भी नहीं मिलती है; तो गुड गवर्नेंस में भागीदारी कैसे कर सकते हैं? उचित रूप से देश के सेवानिवृत्ति कर्मचारियों का एक जायज प्रश्न है कि एक और वह दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही महंगाई और परिवार की बेरोज़गारी और ऊपर से परिवार के संरक्षक रूप में किसी बुजुर्ग से जीवनयापन का एकमात्र सहारा पेंशन छीन लेना यानी देश की सेवा में अपना जीवन खपाने वाले किसी कर्मचारी के साथ अन्याय नहीं तो और क्या है? क्या आज देश की आर्थिक स्थिति इस योग्य भी नहीं है कि वह विगत छह दशक से चल रही पेंशन योजना को और आगे नहीं रख सकती है। फिर वही सरकार सांसद और विधायकों की प्रत्येक सदस्यता पर मिलने वाले अलग-अलग पेंशन को समाप्त क्यों नहीं करते?
क्या यह प्रसाद नहीं है? यदि देश आर्थिक तंगहाली के दौर से गुजर रहा है तो देश को लगभग अरबों की लागत से बन रहे बड़े बड़े प्रोजेक्ट की क्या जरूरत है? देश के लिए लोगों को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिए महंगे विमान खरीदने की बात आर्थिक तंगी के दौर में सही कैसे हो सकती है? सरदार पटेल की विराट प्रतिभा पर हजारों करोड खर्च करने का काम क्या उचित है? यह सब देश के लिए जरूरी है?
क्या यह देश को चपत नहीं लग रही? क्या यह आर्थिक तबाही नहीं है? जब खुद सत्ताधारी अपना वोट बैंक साधने के लिए राशन बाटे, जब चाहे पैसे दे, वोट बैंक अभियान पर करोड़ों रुपये पानी में बहें तो क्या तब देश की आर्थिक स्थिति तंग नहीं होती? एक ऐसी सरकार जिसे सेवानिवृत कर्मचारियों की पेंशन और बुढ़ापा पेंशन भारी वित्तीय बोझ लगे तो वह गैर जरूरी योजना के लिए जाने वाले भारी भरकम खर्च की तरफ अपनी नजर क्यों नहीं डालते?
हरियाणा के कर्मचारी इसलिए भी पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस शासित राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में इस योजना को बहाल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इधर केंद्र सरकार का कहना है कि इससे अर्थव्यवस्था हिल जाएगी। केंद्रीय वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने पुरानी पेंशन योजना को देश की अर्थव्यवस्था के लिए अन्यायपूर्ण बताया है। वहीं उन्होंने इस विषय में सभी राज्य सरकारों को कड़ी आपत्तियों के साथ चेतावनी पत्र भेजा है।
ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर हाल ही में हुई बैठक में अधिकारियों ने भी नाराजगी जाहिर की है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने भी कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को दोबारा शुरू करने पर चिंता जताई थी। नई और पुरानी पेंशन योजना का कर्मचारियों की पेंशन पर बड़ा अंतर है। इसे ऐसे समझें कि अगर अभी 80 हजार रुपये सैलरी पाने वाला कोई शिक्षक रिटायर होता है तो पुरानी पेंशन योजना के हिसाब से उसे करीब 30 से 40 हजार रुपये की पेंशन मिलेगी। वहीं अगर नई पेंशन योजना के हिसाब से देखें तो उस शिक्षक को बमुश्किल 800 से एक हजार रुपये की ही पेंशन मिलेगी।
नई और पुरानी पेंशन योजना में कई बड़े अंतर हैं। इस स्कीम में रिटायरमेंट के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है। जबकि नई पेंशन स्कीम में कर्मचारी की बेसिक सैलरी+डीए का 10 फीसद हिस्सा कटता है। पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है। वहीं नई पेंशन स्कीम में छह महीने बाद मिलने वाले डीए का प्रावधान नहीं है।
पुरानी पेंशन स्कीम में भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है। वहीं नई योजना में रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती। पुरानी स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है। नई योजना में एनपीएस शेयर बाजार पर आधारित है, इसलिए यहां टैक्स का भी प्रावधान है।
क्यों झेल रही निराशा, स्वास्थ्य कार्यकर्ता आशा?
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में पांच साल कार्यकाल के बाद ही पेंशन देने के लिए रूल की मांग उठी तो राज्य सरकार ने जवाब दिया कि विधायकों को उनकी सेवाओं के बदले में पेंशन दी जाती है। कर्मचारी भी कह सकते हैं कि वे जीवन भर नौकरी करते हैं, वे भी जनता की सेवा ही करते हैं तो उन्हें उनकी सेवाओं के बदले पेंशन क्यों नहीं?