डलमऊ/रायबरेली। होली का त्यौहार भले ही देश व समाज के कोने कोने में खुशियां लेकर आता हो लेकिन डलमऊ व इसके आसपास के लोगों के लिए यह त्यौहार करीब 500 वर्षों से एक अभिशाप छोड़ जाता है। जिसका कारण यहां का इतिहास जिसकी एक घटना ने क्षेत्र के लोगों को शोक मग्न होने के लिए मजबूर कर दिया।
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करीब 500 साल गुजर जाने के बाद भी इस क्षेत्र की जनता उस घटना को भूल नहीं सकी, जिसके कारण क्षेत्र में होली का त्यौहार 3 दिन का सूदक मानने के बाद आज होली का त्यौहार मनाया जाएगा। पुराना इतिहास इस बात का गवाह है कि इसी दिन यहां के जनप्रिय प्रजावत्सल राजा डल (Raja Dal) की हत्या शाह शर्की की सेनाओं के द्वारा कर दी गई थी। हत्या उस समय की गई थी।
जब राजा अपनी प्रजा के साथ होली के रंग में सराबोर थे। राजा डल सूर्यवंशी परंपरा के अंतिम राजा के रूप में माने जाते हैं। इतिहास की यह ह्रदय विदारक मार्मिक घटना ने डलमऊ का इतिहास ही बदल कर रख दिया। उनका शासन कोई 1402 ई से 1421 ई तक माना जाता है। घटना के पीछे एक किंवदंती है बाबर सैयद की पुत्री सलमा कुशाग्र बुद्धि वाली और रूपवती थी।वह अपने सिपह- सलाहकारो के साथ जल मार्ग से गंगा के रास्ते डलमऊ क्षेत्र में शिकार खेलने आई थी। इधर राजा डल अपने अंगरक्षकों के साथ आखेट पर निकले थे।
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आखेट के दौरान ही प्रतापगढ़ जनपद के कड़े मानिकपुर नामक स्थान पर दोनों की आंखें चार हुई। यही वह क्षण था जिसने डलमऊ का भाग्य बदलने का काम किया। सलमा की खूबसूरती ने राजा को मोहित कर दिया। उन्होंने सलमा से मिलने का नाकाम प्रस्ताव भी भेजा। जिसके बाद राजा डल अपने अंगरक्षकों के साथ डलमऊ वापस आ गए। राजा ने अपने महल वापस आकर अपने सेनापति के माध्यम से आमंत्रण भेजा।
आमंत्रण पाकर सलमा क्रोध की ज्वाला में जल उठी। उसने राजा डल के कृत्य कार्य को धृष्टता मानते हुये बदला लेने की ठान ली। वह फौरन अपने लाव लश्कर के साथ जौनपुर के लिए लौट पडी। उसने आप बीती बाबर सैय्यद को बताई बाबर सैय्यद ने इस बाबत जौनपुर के बादशाह इब्राहिम शाहशर्की से बात की। शाहशर्की ने राजा के कार्य को अपना अपमान समझा।
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उन्होंने राजा से बदला लेने की ठान ली। शाहशर्की यह भली भांति जानता था कि वह आमने सामने से युद्ध में राजा से पार नहीं पा सकता। अतः उसने क्षेत्र में जासूस लगा दिए, गुप्तचर पल पल की सूचना शाहशर्की को भेजने लगे। इस कार्य में डलमऊ के ही जुम्मन व जुनैद नाम के दो नपुंसको ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने शाहशर्की को सुझाया की राजा से बदला लेने का सबसे सुनहरा अवसर होली के दिन रंग खेलने के समय का है क्योंकि उस दिन राजा प्रजा के साथ रंग में सराबोर हो जाते हैं और अधिकांश फौज होली की छुट्टी पर चली जाती है। शाहशर्की की सेनाओं ने लुक छिप कर राजा पर आक्रमण कर दिया राजा और प्रजा सभी निहत्थे थे, फिर भी राजा हिम्मत नहीं हारे।
उन्होंने फाग में सराबोर होते हुए डलमऊ के पास सूरजूपुर में शाहशर्की की सेनाओ से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुए। ऐसा भी मान्यता है कि शाहशर्की की सेनाओ के साथ सलमा भी मौजूद थी। वह राजा की मृत्यु के बाद उनका सिर लेकर भाग निकली, जबकि धड सुरजूपुर के पास ही रह गया। वही आज भी राजा की विखंडित प्रतिमा के रूप मे उनकी पूजा की जाती है। सदिया गुजर गईं, तब से अब तक सावन महीने में उस पवित्र स्थल पर राजा डलचन्द्र (Raja Dalchandra) की स्मृति मे मेला लगता है।
इन गांवो मे मनाई जाएगी होली
राजा डल की स्मृति में डलमऊ क्षेत्र के इन गांव में होली का त्यौहार मनाया जाएगा। इनमें डलमऊ ग्राम पंचायत के 27 मजरे पूरे वल्ली, नेवाजगंज, पूरे बघेलन, पूरे गुलाब राय, पूरे जोधी, नाथ खेड़ा, पूरे बिंदा भगत, पूरे रेवती सिंह, पूरे अंबहा, बबुरा आदि सहित मुराई बाग, देवली, पूरे लालता, पूरे कोयली, मोहद्दीनपुर, आफताब नगर, मखदुमपुर, बलभद्रपुर, पूरे सेखन, मुर्शिदाबाद, दरबानीहार, पूरे चोपदारन, सदलापुर, ढेलहा, भीमगंज, दीनगंज, शिवपुरी, पूरे गुरबक्श, पूरे मातादीन, पूरे दुबे, पूरे भवानीदीन, कुरौली दमा, सूरजूपुर, पूरे पासिन, पूरे कोदऊ, पूरे डेरा, पूरे गोसाइन, शोभवापुर, ठाकुर द्वारा, पूरे बिजयी, पूरे देबीबक्श आदि अस्सी गांव शामिल है।
रिपोर्ट-हर्षित शुक्ला