अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति दलित मतदाताओं पर केंद्रित रहेगी। कर्नाटक में एससी/एसटी मतदाताओं के समर्थन से उत्साहित पार्टी अब दूसरे राज्यों में भी दलित मतदाताओं तक व्यापक पहुंच बनाने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश और हरियणा के बाद कुछ और राज्यों में भी दलित समुदाय से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है। साथ ही दलित मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए पार्टी ने एक अभियान भी शुरू किया है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लोकसभा में दलित मतदाताओं की भूमिका बेहद अहम है। मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने से कर्नाटक में पार्टी को दलित मतदाताओं का समर्थन मिला है। वहां कांग्रेस के दलित वोट में करीब 14 फीसदी की वृद्धि हुई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी दलित मतदाता कांग्रेस पर भरोसा जताएंगे। इसके लिए पार्टी प्रदेश स्तर पर दलित संवाद भी कर रही है।
कांग्रेस रणनीतिकार मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में दलित मतदाताओं का भाजपा से मोहभंग हुआ है। ऐसे में कांग्रेस को खड़गे के नेतृत्व और संगठन में दलित नेताओं को ज्यादा हिस्सेदारी देने का फायदा मिल सकता है। पार्टी ने रायपुर महाधिवेशन के दौरान संगठन में एससी/एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यकों की हर स्तर पर हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 50 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था।
मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, देश में करीब 17 फीसदी दलित समुदाय के लोग हैं। लोकसभा में 131 सीट अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के लिए आरक्षित हैं, मगर, दलित मतदाता करीब 160 सीटों पर असर डालते हैं। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को एससी/एसटी के लोगों का समर्थन मिला है। वर्ष 2014 में भाजपा को 17.7 फीसदी एससी और 34.23 फीसदी एसटी वोट मिला था। जबकि, वर्ष 2019 में भाजपा को 38.18 फीसदी एससी और 42.16 फीसदी एसटी का वोट मिला।