भले ही केंद्रीय रिजर्व बैंक ने चार बार से रेपो रेट को स्थिर रखा हो लेकिन अब भी कर्ज पर ब्याज दर ज्यादा है। ब्याज दर ज्यादा होने के कारण लोग अब सेविंग अकाउंट की बजाए फिक्स्ड डिपॉजिट पर जोर दे रहे हैं।
उद्योग मंडल फिक्की और भारतीय बैंक संघ (IBA) द्वारा जारी एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक करंट और सेविंग अकाउंट (कासा) में जमा होने वाली रकम में कमी आई है। बता दें कि बैंक जो पैसा जुटाते हैं, उसमें चालू और बचत खाता में जमा रकम कम लागत वाली राशि है। इन खातों में अधिक जमा राशि का मतलब बैंकों के लिए बेहतर मार्जिन है।
फिक्की-आईबीए के 17वें दौर के सर्वे के मुताबिक ऊंची ब्याज दरों को देखते हुए लोगों का झुकाव फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की ओर है। सर्वेक्षण के मौजूदा दौर में आधे से अधिक प्रतिभागी बैंकों (57 प्रतिशत) ने कुल जमा में करंट और सेविंग डिपॉजिट की हिस्सेदारी में कमी दर्ज की। वहीं, एफडी में तेजी आई है।
एनपीए में हो रहा सुधार
सर्वेक्षण में कहा गया है कि संपत्ति की गुणवत्ता के संबंध में 75 प्रतिशत बैंकों ने पिछले छह महीनों में अपनी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) के स्तर में कमी दर्ज की है, जबकि पिछले चरण में 90 प्रतिशत बैंकों ने ऐसा बताया था। सर्वे रिपोर्ट में सार्वजनिक क्षेत्र के 90 प्रतिशत बैंकों ने एनपीए स्तर में कमी का हवाला दिया है, जबकि निजी क्षेत्र के 80 प्रतिशत बैंकों ने एनपीए में गिरावट की बात कही है। सर्वेक्षण के अनुसार, मौजूदा चरण में लगभग 54 प्रतिशत बैंकों को लगता है कि ग्रॉस एनपीए अगले छह महीनों में तीन-चार प्रतिशत के बीच रहेगा।
लॉन्ग टर्म के लोन में बढ़ोतरी
सर्वे के अनुसार इंफ्रा में ऋण प्रवाह में वृद्धि देखी जा रही है। सर्वे में 67 प्रतिशत प्रतिभागियों ने लॉन्ग टर्म के लोन में वृद्धि का संकेत दिया है, जबकि पिछले दौर में यह आंकड़ा 57 प्रतिशत था। सर्वेक्षण में कहा गया है कि अगले छह महीनों में गैर-खाद्य उद्योग क्षेत्र में कर्ज में वृद्धि देखने को मिल सकती है। सर्वे में शामिल करीब 42 प्रतिशत प्रतिभागियों को उम्मीद है कि गैर-खाद्य उद्योग में कर्ज में वृद्धि 12 प्रतिशत से अधिक होगी। जबकि पिछले दौर में 36 प्रतिशत ने यह संभावना जतायी थी।