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परमार्थ से बड़ा कोई धर्म नहीं: प्रेमभूषण महाराज

मनुष्य के द्वारा किया जाने वाला परमार्थ कार्य उसकी अपनी किसी भी आपातकाल की स्थिति आने पर सहायक होती है। अपने आय का 5 या 10% भाग परमार्थ में आवश्यक लगते चलना चाहिए। परमार्थ को टालने वाले के हाथ में केवल पछतावा ही आता है।

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सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए सर्वप्रिय प्रेममूर्ति प्रेमभूषण महाराज ने उक्त बातें लखनऊ के गोमती नगर विस्तार स्थित सीएमएस विद्यालय के मैदान में ममता चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वाधान में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।

परमार्थ से बड़ा कोई धर्म नहीं: प्रेमभूषण महाराज

श्री रामकथा गायन के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए जनप्रिय कथावाचक प्रेमभूषण महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में सुन्दर कांड, लंकाकांड और श्री राम राज्याभिषेक से जुड़े प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि किसी भी सत्कर्म अथवा परमार्थ के कार्य को कभी भी टालने का प्रयास न करें। मनुष्य सोचता है कि सब व्यवस्थित हो जाएगा तो फिर मैं वैसा करूंगा। लेकिन ऐसा सोचने वाले के पास बाद में न समय रहता है ना उसके शरीर की स्थिति रहती है, जिससे कि वह तीर्थाटन और भ्रमण आदि का कार्यक्रम बना सके।

पूज्यश्री ने कहा कि अगर अपने जीवन में पछतावे से बचना है तो मन में जैसे ही कोई शुभ संकल्प आता है, सत्कर्म का संकल्प आता है तो उसे तुरंत पूरा करने के उद्यम में लग जाना चाहिए। संकल्प यदि दृढ़ हो तो भगवान स्वयं उसे पूरा कराने में मदद करते हैं। लेकिन अगर संकल्प में भी कोई चतुराई रखता है तो ऐसे व्यक्ति को बाद में भुगतना भी पड़ता है।

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सुग्रीव द्वारा माता सीता का पता लगाने से संबंधित संकल्प को सुनाते हुए महाराज श्री ने कहा कि सुग्रीव का संकल्प राम जी के ही भरोसे है। क्योंकि वह तो बाली के द्वारा मारकर भगाए हुए हैं और खुद ही छिपकर रह रहे हैं। फिर भी हमें यह प्रसंग बताता है कि अगर कोई हम पर भरोसा करता है तो हम भाग्यशाली हैं। क्योंकि हम भरोसा करने लायक हैं। साथ ही उस व्यक्ति के भरोसे की रक्षा करने का कर्तव्य भी बनता है और अगर कोई इस भरोसे को तोड़ता है तो व्यवहार में इसे हम कृतघ्नता कहते हैं।

पूज्यश्री ने कहा कि यह संसार मनुष्य के लिए कई प्रकार की बाधाओं से भरा हुआ है। हर किसी के पास अपनी व्यथा की एक अलग ही कथा है, जिसे सुनकर हर किसी का मन विचलित होता है। लेकिन जब हम प्रभु की कथा सुनते हैं, चाहे किसी भी विधि से सुनते हैं तो मन में एक आनंद और नए उत्साह का निर्माण होता है।

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महाराज जी ने कहा कि कथा तो भगवान की ही सुनने लायक है। हर जीव के पास उसकी कथा से ज्यादा उसकी व्यथा है। प्रभु की कथा हम जितनी बार सुनते हैं हमेशा नित्य नई लगती है और मन को शांति प्रदान करती है। भगवत प्रसाद का रस जिसे लग जाता है, वह धन्य हो जाता है। महर्षि बाल्मीकि की यह शिक्षा मनुष्य को हमेशा याद रखने की आवश्यकता है कि भगवत प्रसाद का रस अपने आप प्राप्त नहीं होता है। इसके लिए प्रयास करना ही पड़ता है। और जिस मनुष्य को इस प्रसाद का रस लग जाता है तो उसकी सभी कर्मेंद्रियां अपने आप भगवान में लग जाती हैं। और ऐसे ही मनुष्य का जीवन धन्यता को प्राप्त होता है।

महाराजा सुग्रीव की ओर से कपि सेना को दिए गए आदेश की चर्चा करते हुए महाराज श्री ने कहा कि सुग्रीव ने खाली हाथ लौटने वालों को जान से मार देने का फरमान प्रभु श्री राम के सामने सुनाया. यह प्रसंग हमें दंड विधान की अनिवार्यता के बारे में बताता है। जब तक मनुष्य के सामने किसी प्रकार के दंड का भय नहीं होता है तब तक वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कठिन से कठिन कार्य करने को तैयार नहीं दिखता है। पहले विद्यालयों में शिक्षकों के भय से विद्यार्थी अपने गृह कार्य ठीक समय से और उचित ढंग से कर के ही उपस्थित होते थे। अब इस दंड विधान में आई कमी का परिणाम हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।

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पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य को किसी के लिए भी शाप अथवा आशीर्वाद देने के पहले कई बार विचार जरूर करना चाहिए क्योंकि इससे अपना ही नुकसान होता है । जब हम किसी को शाप देते हैं या आशीर्वाद देते हैं तो हमारे अपने संचित पुण्य में से ही कुछ खर्च होता है। भगवान अपनी ओर से कुछ भी नहीं देते हैं वह हमारे कर्म के अनुसार संचित पुण्य को ही शाप अथवा आशीर्वाद के रूप में फलित करते हैं।

पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य के लिए यह आवश्यक है कि जब अति क्रोध की स्थिति हो तो वह अपने को नियंत्रित करें और बेवजह किसी को शाप देकर अपने पुण्य का क्षय ना करें। नारद जी के शाप के प्रसंग की चर्चा करते हुए पूज्य महाराज श्री ने बताया कि नारद जी के शाप के फलस्वरूप भगवान ने मानव का शरीर को धारण किया लेकिन जो राक्षसों का कुल बढ़ा, उससे भागवत जनों खासकर साधु-संतों की ही सबसे अधिक हानि हुई।

पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य को दोहरा जीवन जीने से बचना चाहिए। यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि रोज हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले लोग भी बंदरों पर अत्याचार करते हैं। गणपति वंदना करने वाले लोग गणेश जी की सवारी चूहे की हत्या करते हैं। शंकर जी के गले में लिपटे सर्प को अपने आसपास देखते ही उसे ढूंढ ढूंढ कर मार डालते हैं। महाराज जी ने कहा कि हमारे सनातन सदग्रंथ हमें जीवन जीने की कला सिखाते रहे हैं। सदग्रंथों की बात मानकर अपने जीवन में चलने वाला व्यक्ति सदा सफल होता है। आप अगर अपने जीवन में सचमुच सफल होना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी निद्रा पर काबू करें, दूसरा भोजन के मामले में कभी भी आनाकानी ना करें, जो भी सात्विक आहार मिले वह खाएं और अपने साथ किसी प्रकार की मजबूरी लाद कर नहीं चलें।

महाराज श्री ने कहा कि जीवन में कभी भी किसी कार्य के अपूर्ण होने से घबड़ाना नहीं चाहिए, क्योंकि हर कार्य का एक निश्चित समय होता है। और अगर किसी कारण से वह कार्य पूर्ण नहीं होता है तो भी मनुष्य को अपने प्रयास बंद नहीं करने चाहिए। हमारे सद्ग्रन्थ हमें सिखाते हैं कि जीवन में मनुष्य के लिए उसका श्रम और उसका कर्म ही उसके भविष्य का निर्माण करते हैं।

महाराज श्री ने अरण्य कांड, सुन्दर कांड और लंका कांड की कथा का गायन करते हुये श्री राम जी के राज्याभिषेक की कथा सुनाई। पूर्णाहुति स्तर की कथा का श्रवण करने के लिए हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण, महाराज जी के द्वारा गाए गए भजनों पर झूमते और नृत्य करते रहे। श्रीराम कथा अमृतवर्षा में मंत्र मुग्ध होकर उमड़ा भक्तों का जन सैलाब महराज जी के भजनों पर खूब थिरकते रहे! आज ट्रस्ट ने सफाईकर्मी का सम्मान करते हुए उनसे दीप प्रज्वलन कराके श्रीराम कथा का शुभारंभ कराया।

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