बीनागंज/मध्यप्रदेश। क्षेत्र के युवाओं ने मिलकर भामाशाह Bhamashah नाम से एक समूह बनाया है। इस समूह के संचालन का उद्देश्य जरूरतमंद की जरूरतों का ध्यान रखकर उनके लिए सामान जुटाना है। सर्वे भवंतु सुखिनः की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए “भामाशाह” समूह का उद्देश्य संपन्न और दानी परिवारों से उनके अनुपयोगी सामग्री जो जरूरतमंद परिवार के काम आ सके जैसे कपड़े,बर्तन, खिलौने,जूते चप्पल,किताब आदि संग्रहित करके वंचित लोगों के लिए सहज उपलब्ध करना है।
Bhamashah को लोगों का समर्थन
इस समूह में महिलाओं का तथा पुरुषों का अलग-अलग समूह बनाया गया है जिसमें कुंभराज, बीनागंज, चाचौड़ा तथा पेंची के लोग शामिल हैं। क्षेत्र के संपन्न परिवारों से नित्य उपयोगी सामग्री एकत्रित कर कुंभराज में अधिवक्ता संदेश अग्रवाल के कार्यालय के नजदीक उक्त संग्रहित सामग्री के वितरण की व्यवस्था की है। भामाशाह समूह के सदस्यों ने अन्य लोगों से भी अपील की है कि वह भी इस मुहिम का हिस्सा बने।
समूह को लोगों का बहुत अच्छा समर्थन मिल रहा है जिससे समूह के सदस्यों का उत्साह बढ़ रहा है। प्रथम चरण संपन्न होने के बाद समूह की योजना है कि नगर में परिवारों तथा शादी पार्टी में बचने वाली खाद्य सामग्री एकत्रित करके झुग्गी- झोंपड़ियों तक या जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाई जाए। हालांकि अभी शुरुआती दौर में सिर्फ नित्य उपयोगी सामग्री का संग्रह करके वितरण किया जा रहा है। भामाशाह समूह को पूरे क्षेत्र से सहयोग मिल रहा है।
गरीबों को दिए जायेंगे कंबल
भामाशाह समूह को ग्राम पेंची के आईआरएस प्रद्दुम्न मीना (उपायुक्त आयकर) की धर्मपत्नी प्रियंका मीना की ओर से 100 कंबल भेंट किए गए हैं। इन कम्बलों को गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को वितरित किया जाएगा। भामाशाह समूह में तय किया है की 1 दिसंबर से कंबल वितरण के लिए गरीब और जरूरतमंद लोगों को चिन्हित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त कंबल के लिए जरूरतमंद व्यक्ति भामाशाह समूह के कार्यकर्ता संदेश अग्रवाल एडवोकेट को अपना नाम कंबल वितरण के लिए दर्ज करवा सकता है।
भामाशाह नाम रखने के पीछे
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल 1547 को ओसवाल जैन परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम भरमल कावंडिया था जो रणथंभौर के किलेदार थे। भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। मेवाड़ के अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया।
महाराणा प्रताप को दी गई उनकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी। भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहां संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे।
हल्दी घाटी के युद्ध में पराजित महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे 25000 सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उन्होंने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित करा और फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।