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दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना के 10 साल पूरे

      दया शंकर चौधरी

प्रधानमंत्री जन-धन योजना को आज 10 साल पूरे हो गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 अगस्त, 2014 को जन-धन योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत अबतक 53.13 करोड़ बैंक खाते खोले गए हैं, जिसमें 2.3 लाख करोड़ रुपये की धनराशि जमा है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 में तीन करोड़ से अधिक और जन-धन खाता खोलने का लक्ष्य रखा है। वित्त मंत्रालय ने आज बयान जारी कर कहा है कि 28 अगस्त, 2014 को शुरू की गई प्रधानमंत्री जन-धन योजना आज सफलतापूर्वक अपने क्रियान्वयन का एक दशक पूरा कर रही है। पीएमजेडीवाई दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन पहल है, वित्त मंत्रालय अपने वित्तीय समावेशन हस्तक्षेपों के माध्यम से हाशिए पर पड़े और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को सहायता प्रदान करने का निरंतर प्रयास करता है। यूनियन बैंक के कार्यकारी निदेशक नितेश रंजन ने अपने अनुभवों के आधार पर एक लेख लिखा है। प्रस्तुत है उस लेख के प्रमुख अंश..।

जनधन: भारत की डिजिटल वित्तीय क्रांति सशक्तीकरण के 10 साल और भविष्य

प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन पहल की आज 10वीं वर्षगांठ है। यह एक बुनियादी समावेशन परियोजना है जिसे हमारे प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में 2014 में सरकार द्वारा शुरू किया गया था। जनधन योजना ने अर्थव्यवस्था में वित्तीयकरण, औपचारिकरण और डिजिटलीकरण के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता की है।

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आज जबकि 53 करोड़ से अधिक जनधन बैंक खाते खोले जा चुके हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 80% वयस्कों का किसी बैंक या किसी वित्तीय संस्थान में खाता है। यह 2500 अमेरिकी डॉलर के बराबर प्रति व्यक्ति आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए वैश्विक मानदंडों की तुलना में कहीं अधिक है। बैंक खाते खोले जाने से महिलाओं (जनधन खातों में 55% हिस्सेदारी) के साथ-साथ पिरामिड के निचले हिस्से के लोगों को भी सशक्त बनाने में मदद मिली क्योंकि सरकार ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के हिस्से की सब्सिडी बिना किसी लीकेज के सीधे उन्हें प्रदान करने के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) का उपयोग किया।

भारत ने तीन महत्वपूर्ण आयामों को एक साथ जोड़कर अपनी डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना कार्यनीति को सावधानीपूर्वक तैयार किया जिससे यह संभव हुआ जैसे कि जैम ट्रिनिटी और बैंक खाता (जनधन) इस ट्रिनिटी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, इसके अतिरिक्त डिजिटल पहचान (आधार) और मोबाइल नंबर भी इसका हिस्सा हैं। डीबीटी के उपयोग के माध्यम से इसने राजकोषीय बचत को बढ़ावा दिया। मार्च, 2023 तक संचयी बचत रुपए 3.5 लाख करोड़ होने का अनुमान है क्योंकि सरकार लगभग रुपए 7 लाख करोड़ सालाना अंतरित करती है।

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“बैंक रहित” लोगों के पास अब बैंक खाते तक पहुँच है और उन्हें निःशुल्क रूपे कार्ड प्रदान किया गया है जिससे अर्थव्यवस्था में नकदी के कम उपयोग को बढ़ावा देने में सहायता मिली है। डीबीटी के 65% से अधिक लाभार्थी ग्रामीण क्षेत्रों से हैं जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में जनधन द्वारा निभाई गई भूमिका का संकेत मिलता है। जनधन की शुरुआत के दो साल बाद, अप्रैल, 2016 में भारत में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस या यूपीआई नामक एक तत्काल भुगतान प्रणाली की शुरुआत की गई जिसने खुदरा डिजिटल भुगतानों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

वर्तमान में यूपीआई के माध्यम से 1200 करोड़ मासिक डिजिटल भुगतान लेनदेन ने इसे विश्व स्तर पर मान्यता प्रदान की है। भुगतान/वित्तीय लेनदेन के मामले में यूपीआई क्रांति के लिए बुनियाद तैयार करके इसमें जनधन ने प्रमुख भूमिका निभाई है।

जनधन और यूपीआई ने मिलकर एक डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के निर्माण का बढ़ावा दिया है जो डेटा एक्सेस या अंतर-संचालनीयता के विस्तारीकरण बनाने में सहायता प्रदान करता है जिसका लाभ वित्तीय संस्थानों द्वारा छोटे टिकट की उधारी की ऋण हामीदारी के लिए लिया जा सकता है। इसने फिनटेक जगत में नवोन्मेषिता को भी बढ़ावा दिया है क्योंकि वे वित्तीय समावेशन को बढ़ाने में सहायता प्रदान करते हैं।

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कुल मिलाकर 2014 में जनधन से शुरू हुए सुधार उसके बाद 2016 में यूपीआई और फिर 2017 में जीएसटी ने भारत को “विश्व में सबसे बड़ा निजी डेटा-कैश” वाला “डेटा संपन्न देश” बनाने में सहायता प्रदान की है जिसने एआई क्रांति को सशक्त किया है।

….और अब आगे की राह

भारत, वर्तमान में विश्व में डिजिटल क्रांति का नेतृत्व कर रहा है डिजिटल अर्थव्यवस्था में सबसे तेज़ वृद्धि उचित इकोसिस्टम के माध्यम से प्राप्त हुई है जिसकी नींव 2014 में जनधन सुधार के माध्यम से रखी गई थी। इस डिजिटल वित्तीय इकोसिस्टम में नवीनतम जुड़ाव यूएलआई (यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफ़ेस) है जो विशेष रूप से ग्रामीण और छोटे उधारकर्ताओं को जिनकी ऋण मांग अभी भी पूरी नहीं हुई है उन्हें परेशानी रहित ऋण प्रदान करता है। यह कृषि, एमएसएमई आदि के क्षेत्र में छोटे उधारकर्ताओं के लिए एक वित्तीय क्रांति होगी।

भूमि रिकॉर्ड, इकाई का पंजीकरण, सी-केवाईसी, क्रेडिट इतिहास, वित्तीय पण्यावर्त आदि जैसे बेहतर डिजिटल रिकॉर्ड वित्तीय संस्थानों की परिचालन लागत को कम करने के साथ-साथ निर्धारित समय अवधि और मानवीय भूल को कम कर देंगे। आरबीआई गवर्नर के अनुसार, जैम-यूपीआई-यूएलआई की ‘नई ट्रिनिटी’ भारत की डिजिटल अवसंरचना यात्रा में एक क्रांतिकारी कदम होगी।

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बैंकिंग प्रणाली, पिरामिड के निचले हिस्से में लोगों हेतु छोटे-टिकट वाले उत्पादों के प्रावधान के माध्यम से बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था को प्राप्त करके उल्लेखनीय वृद्धि कर सकती है।

हम डीबीटी प्राप्तियों के आधार पर क्रेडिट इतिहास/क्षमता के साथ सूक्ष्म-ऋण, माइक्रो-इंश्योरेंस (जीवन, सामान्य और स्वास्थ्य बीमा के लिए पृथक और एक साथ) के साथ-साथ कम मूल्य के सुनियोजित निवेश योजना (एसआईपी) के माध्यम से सूक्ष्म-निवेश विकल्पों, सरकारी बॉन्ड में प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी के लिए आरबीआई के पोर्टल के माध्यम से कम टिकट निवेश जैसे उत्पादों पर विचार कर सकते हैं। बैंकों के लिए, बाद वाले विकल्प विभिन्न निवेश विकल्पों को ढ़ूढ़ने के इच्छुक युवा आबादी की बढ़ती आकांक्षाओं को समझने का एक सुनहरा अवसर हो सकता है।

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निष्कर्ष के तौर पर जनधन के कार्यान्वयन के एक दशक बाद ये सुधार डिजिटल वित्त क्रांति को बढ़ावा देकर विकसित भारत@2047 बनने की दिशा में भारतीय अर्थव्यवस्था के मार्ग को निरंतर प्रशस्त कर रहा है। जनधन इस बात का उदाहरण है कि देश के लिए एक सुविचारित दृष्टिकोण लोगों और समाज को कितना प्रभावित कर सकता है। ‘सभी के लिए बैंक खाता’ के उद्देश्य से जनधन अब भारत के लिए एक वित्तीय और डिजिटल क्रांति का रूप ले रहा है।

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