लोक आस्था एवं सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। छठ में पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। यह पर्व बिहार सहित उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल एवं अवध क्षेत्र में भी बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाये जाने वाले इस हिंदू पर्व में भगवान सूर्य और छठी मैया की विधि-पूर्वक पूजा होती है।
जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है और सप्तमी के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पूरी होती है। छठ महाव्रत के दौरान नहाय खाय और खरना से लेकर सूर्य को अर्घ्य देने तक का विशेष महत्व है। जिसमें खरना आज मनाया जाएगा और कल शाम को सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाएगा।
मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। घर-परिवार में खुशहाली बनी रहती है। मुख्य रूप से छठ व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना से रखती हैं। वहीं ये व्रत संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए भी खास माना जाता है।और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Please watch this video also
खरना के दिन छठ महापर्व का व्रत करने वाले लोग पूरे दिन उपवास पर रखते हैं। शाम को स्नान कर विधिवत छठी मैया की पूजा करती हैं। खरना की पूजा के बाद खीर और गेहूं के आटे से बनी रोटी खाकर व्रत तोड़ते हैं। इसे भी महाप्रसाद में शामिल किया गया है।
इस व्रत को करने वाले व्यक्ति के खाने के बाद घर-परिवार के बाकी सदस्य खात तौर पर घर के बच्चों को खिलाया जाता है। लोक मान्यता है कि ये व्रत संतान के दीर्घायु सुखी जीवन लिए किया जाता है।साथ ही संतान सुख प्राप्ति के लिए भी रखा जाता है।
छठ पूजा का प्रसाद खरना के दिन नहीं बनता है।इसकी तैयारी भले ही पहले से कर ली जाए लेकिन छठ के पकवान और ठेकुआ (ठोकवा) आदि पहले अर्घ्य के दिन सुबह के समय में तैयार किया जाता है। इसे पकाने या बनाने की जिम्मेदारी भी व्रत करने वाले व्यक्ति या महिला पर होता है।
यानी छठ महापर्व के लिए प्रसाद व्रत करने वाला व्यक्ति ही बनाता है।प्रसाद को बनाने में जरूर घर परिवार के लोग सहयोग करते हैं।सात्विक भोजन ही परिवार वाले करेंगे। जब तक छठ पूजा सम्पन्न नहीं हो जायेगी। तब तक परिवार को तामसी भोजन से निषेध रहेगा।
Please watch this video also
प्रसाद बनाने के लिए अनाज को पहले से ही साफ करके उसे धोकर सुखा लिया जाता है। इसके बाद उसे पिसवाकर इस्तेमाल में लाया जाता है। पूजा के लिए मिट्टी के नए चूल्हे में पीतल के बर्तन में प्रसाद बनाया जाता है।
साथ ही पूजा में चढ़ाए जाने वाली हर वस्तु अखंडित होनी चाहिए। चाहे वह फूल हो या फल. पूरा पर्व पवित्रता से जुड़ा हुआ है। ऐसे में साफ-सफाई का पूरे पर्व के दौरान खास तौर पर ख्याल रखा जाता है।
छठ पूजा में खरना के दिन ही तय हो जाता कि अगले तीन दिन व्रत करने वाले लोग कहां पर रात्रि विश्राम करेंगे यानी सोएंगे।फिर वो घर में चाहे कहीं भी काम करें, लेकिन रात को सोने के समय वो अपने स्थान पर पहुंच जाते हैं। ये स्थान पूजा घर भी हो सकता है।या फिर घर का कोई दूसरा कमरा।
खरना के दौरान व्रत करने वाली महिलाएं बिस्तर पर नहीं सोती हैं।वे चटाई बिछाकर जमीन पर सोती हैं। भक्ति गीतों की धूम रहती है। जिसमें भगवान आदित्य देव व छठ माता से सम्बंधित गीत ध्वनिविस्तारक यंत्रों से सुना सुनाया जाता है। लोक धुन पर आधारित भक्ति गीत संगीत चलता रहेगा।
रिपोर्ट-जय प्रकाश सिंह