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मायावती की सोच से आगे निकल चुकी है दलितों की नई पीढ़ी!

लखनऊ। क्या बहुजन समाज पार्टी (BSP) अवसान की ओर अग्रसर है? बीएसपी सुप्रीमो मायावती (BSP supremo Mayawati) द्वारा पहले अपने भतीजे आकाश आनंद (Akash Anand) को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक (National Coordinator) के पद से हटाने और अगले दिन पार्टी से ही निष्कासित करने और फिर भाई आनंद (Anand) को राष्ट्रीय समन्वयक ((National Coordinator)) के पद से हटाने के फैसले के बाद ये सवाल मौजू है। हालांकि मायावती अपनी धुन में मस्त हैं। वह अलग तरह की राजनीति करती हैं। उन्हें किसी की सलाह बिलकुल पसंद नहीं है। जिस भी नेता ने सलाह देने की गलती की बहन जी ने उसकी पार्टी से ही छुट्टी कर दी।

शायद मायावती को गलतफहमी है कि कम से कम उत्तर प्रदेश का दलित तबका आज भी सिर्फ बीएसपी और उनपर ही भरोसा करता है। दलित मतदाता सिर्फ हाथी का ही बटन दबाता है। इन्हीं सब वजहों से आज यूपी की सियासत में बीएसपी हासिये पर पहुँच चुकी और उसका सिर्फ एक विधायक है। हालांकि, ये सब अब गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं। आज दलित तबके के सामने विकल्पों की कमीं नहीं है। पूरब में ओम प्रकाश राजभर का तेजी से उभार हुआ है तो पश्चिम में चंद्रशेखर आजाद रावण दलितों की पहली पसंद बन चुके हैं। मध्य यूपी और बुंदेलखंड में भी नया दलित नेतृत्व उभरा है।

कांशीराम की राजनीतिक उत्तराधिकाई बनने के बाद मायावती ने एक-एक कर बीएसपी के सभी पुराने नेताओं बरखुराम वर्मा, आरके चौधरी, सोनेलाल पटेल, ओम प्रकाश राजभर, जंग बहादुर पटेल, नसीमुद्दीन सिद्दीकी आदि नाताओं को पार्टी से निकाल दिया। इन सभी नेताओं के दम पर ही बीएसपी का उभार हुआ था। इसके बाद भी मायावती द्वारा पार्टी के वफादारों को पार्टी से निष्कासित किया जाता रहा। इसी के साथ बीएसपी सुप्रीमों ने अपने भाई और भतीजे को भी पार्टी में स्थापित कर दिया। हालांकि अब उनका भाई और भतीजे से भी मोह भंग हो चुका है। इसलिए मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक पद से हटाए जाने के बाद प्रतिक्रया भी सार्वजानिक की थी।

दरअसल, दलितों की नई पीढ़ी की सोच ‘जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ की सोच से कहीं आगे निकल चुकी है। दलितों की नई पीढ़ी नेतृत्व के लिए उतावली है। नई सदी का पढ़ा-लिखा दलित नौजवान अपनी सोच पर अमल की आकांक्षा रखता है। वह नारे लगाने के साथ सभा को संबोधित भी करना चाहता है। वह नेतृत्व से सवाल करने और सलाह देने का हिमायती है। शायद, यही सोच आकाश की भी है। जाहिर है कि मायावती के रहते बीएसपी में ये सब संभव नहीं है।

Uttar Pradesh : भतीजे के बाद भाई पर कार्रवाई, BSP Supremo ने आनंद को पार्टी के National Coordinator पद से हटाया

उल्लेखनीय है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती का मिजाज सेना के कमांडर जैसा है। पार्टी में रहकर उनके आदेशों की अवहेलना करने की कोई सोच भी नहीं सकता। किसी भी नेता या विधायक को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना उनके लिए बाएं हाथ का खेल है। बीएसपी के जिस भी नेता ने उन्हें सलाह देने की हिम्मत की उसे पार्टी से बाहर होने में देर नहीं लगी। यही वजह है कि किसी भी पार्टी के साथ बीएसपी का गठबंधन अधिक दिनों तक नहीं चल सका।

अब मायावती बीएसपी के केंद्र में हैं और बचे-खुचे नेता व कार्यकर्ता उनकी परिक्रमा कर रहे हैं। तक दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बीएसपी में अब मायावती के बाद सिर्फ सतीश मिश्रा की ही चलती है। ये बात दलितों को खासतौर से खलती है। इन परिस्थितियों में सियासत के जानकार बीएसपी के अवसान की बातें करने लगे हैं। हालांकि कई दलित चिंतक ऐसी संभावना को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि आज बीएसपी सर्वजन की पार्टी बन चुकी है। समाज के हर तबके के लोग मायावती की सरकार को अन्य सरकारों से बेहतर मानते हैं। लेकिन मौजूदा सियासी हालातों के मद्देनजर 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा के चुनाव में मायावती के नेतृत्व में बीएसपी की कामयाबी नामुमकिन ही लगती है।

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