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संकट में पाकिस्तान: अंदर-बाहर हर तरफ हाहाकार

           संजय सक्सेना

पड़ोसी देश पाकिस्तान चौतरफा मुसीबतों से घिरता जा रहा है। चीन की दोस्ती उसे डूबों रही है तो भारत और अफगानिस्तान से दुश्मनी (Enmity with India and Afghanistan) उसे भारी पड़ रही है। अमेरिका में भी ट्रम्प सरकार  आने के बाद वहां से पाकिस्तान पर मेहरबानियों का सिलसिला थम गया है। पाकिस्तान के अंदरूनी हालात भी कम खराब नहीं है। एक तरफ पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके,सिंध प्रांत की जनता पाकिस्तान सरकार के खिलाफ जहर उगल रही है, वहीं बलूचिस्तान (Balochistan) प्रांत की विद्रोही जनता  तो पाकिस्तान की अखंडता के लिये ही खतरा बन गया है।यहां के लोग पाकिस्तान से अलग पूर्ण आजादी चाहते हैं। इसके चलते बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (Balochistan Liberation Army) और पाकिस्तान सेना के बीच लगातार संघर्ष होता रहता है। हद तो तब हो गई जब 11 मार्च 2025 को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को ही हाईजैक कर लिया, जिसमें लगभग 440 यात्री सवार थे। इस हमले में बीएलए ने ट्रेन को रोककर यात्रियों को बंधक बना लिया और सुरक्षाबलों पर हमला किया, जिससे 21 यात्रियों और 4 अर्धसैनिक बलों के जवानों की मौत हो गई। पाकिस्तानी सेना ने जवाबी कार्रवाई में 33 आतंकवादियों को मार गिराया और बचे हुए यात्रियों को सुरक्षित छुड़ा लिया।

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इस घटना के बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharif) ने राष्ट्रीय एकता का आह्वान किया और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक बुलाई, जिसमें सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। बैठक में आतंकवाद के खिलाफ रणनीतिक राजनीतिक संकल्प और बेहतर शासन की आवश्यकता पर बल दिया गया। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तानी सेना ने इस हमले के लिए भारत को दोषी ठहराया, हालांकि उन्होंने इसके समर्थन में कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया। भारत ने इन आरोपों को खारिज किया है।
ट्रेन हाईजैक के बाद, बलूच विद्रोहियों ने बलूचिस्तान के नोशकी इलाके में पाकिस्तानी सेना के काफिले पर एक और बड़ा हमला किया, जिसमें कई सैनिक हताहत हुए। यह घटना बलूच विद्रोहियों की बढ़ती गतिविधियों को दर्शाती है, जो बलूचिस्तान में अधिक स्वायत्तता और संसाधनों पर नियंत्रण की मांग कर रहे हैं।

संकट में  पाकिस्तान: अंदर-बाहर हर तरफ हाहाकार

इन घटनाओं के मद्देनजर, पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर (General Asim Munir) ने देश को सख्त राष्ट्र बनाने और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बेहतर शासन और राजनीतिक संकल्प की आवश्यकता पर भी जोर दिया, ताकि आतंकवाद का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके। पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने 18 मार्च, 2025 को अपने एक बयान में पाकिस्तान को एक कठोर राज्य में बदलने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष देश के अस्तित्व के लिए एक लड़ाई है। जनरल मुनीर ने यह टिप्पणी राष्ट्रीय सुरक्षा पर संसदीय समिति की एक उच्चस्तरीय बैठक में की, जो बलूच आतंकवादियों द्वारा एक यात्री ट्रेन का अपहरण करने के कुछ दिनों बाद बुलाई गई थी , जिसके परिणामस्वरूप 25 यात्रियों की मौत हो गई थी।

मुनीर ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष “हमारे और हमारी भावी पीढ़ियों के अस्तित्व की लड़ाई है।” उन्होंने बेहतर शासन और पाकिस्तान को एक “कठोर राज्य” बनाने का आह्वान किया और पूछा, “हम कब तक एक नरम राज्य की शैली में अनगिनत लोगों की जान कुर्बान करते रहेंगे?” जनरल मुनीर ने कहा, “स्थायी विकास के लिए, राष्ट्रीय शक्ति के सभी तत्वों को सामंजस्य के साथ काम करना होगा।”

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बात बलूचिस्तान, के भौगोलिक और राजनैतिक परिदृश्य की कि जाये तो यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत, लंबे समय से देश के लिए एक गंभीर सुरक्षा चुनौती बना हुआ है। यहां के अलगाववादी आंदोलन, प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की मांग, और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप पाकिस्तान की स्थिरता के लिए खतरा बने हुए हैं। दरअसल, 1947 में भारत से अलग मुसलमानों के लिये पाकिस्तान देश बनने के बाद, बलूचिस्तान के कलात राज्य ने पाकिस्तान में विलय से इंकार कर दिया था। हालांकि, 1948 में पाकिस्तानी सेना ने इस पर कब्जा कर लिया, जिससे बलूच राष्ट्रवादियों में असंतोष बढ़ा। तब से, बलूचिस्तान में कई बार विद्रोह हुए हैं, जिनमें 1950, 1960, 1970 और 2000 के दशक शामिल हैं।

पिछले कुछ वर्षों में, बलूच अलगाववादी समूहों की गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2015 से 2024 के बीच, इन समूहों द्वारा किए गए हमलों की संख्या चार गुना बढ़कर 171 हो गई है। इन हमलों में लगभग 590 लोग मारे गए हैं, जिनमें पाकिस्तानी सेना के जवान भी शामिल हैं। गौरतलब हो बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, जिसमें गैस, सोना, और तांबा शामिल हैं। हालांकि, स्थानीय निवासियों का आरोप है कि इन संसाधनों का लाभ उन्हें नहीं मिलता, बल्कि पाकिस्तान के अन्य प्रांतों को मिलता है। यह आर्थिक असंतोष अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा देता है।

बलूचिस्तान हमेशा से पाकिस्तान सेना की हैवानियत का भी शिकार होता रहा है। बलूच कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों के जबरन गायब होने की घटनाएं बलूचिस्तान में आम हैं। वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स (वीबीएमपी) के अनुसार, बलूचिस्तान से 7,000 से ज्यादा लोग लापता हैं। हालांकि, सरकारी आंकड़े इससे कम हैं, लेकिन यह मुद्दा स्थानीय निवासियों में गहरा असंतोष पैदा करता है।

बलूचिस्तान में यहां के निवासियों के भारी विरोध के बाद भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) और अन्य विदेशी निवेश परियोजनाएं चल रही हैं,जबकि अलगाववादी समूह इन परियोजनाओं को अपने संसाधनों के शोषण के रूप में देखते हैं और इन्हें निशाना बनाते हैं। अगस्त 2024 में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने एक घातक हमला किया, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए। फरवरी 2025 में कलात जिले में एक बड़े संघर्ष में 18 पाकिस्तानी अर्धसैनिक बलों और 23 विद्रोहियों मतलब बीएलए के सदस्यों की मौत हुई थी।

बलूचिस्तान में जारी संघर्ष पाकिस्तान के लिए कई मोर्चों पर खतरा पैदा कर रहा है। लगातार हमलों से पाकिस्तान सुरक्षा बलों पर दबाव बढ़ता है और देश की आंतरिक स्थिरता खतरे में पड़ती है।सीपीसाीई जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर हमलों से विदेशी निवेशकों का विश्वास कम होता है, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित होता है। वहीं मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल होती है, जिससे कूटनीतिक संबंध प्रभावित होते हैं।

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच खींची तलवारें

अफगानिस्तान और पाकिस्तान में तनाव की वजह पर नजर दौड़ाई जाये तो दोनों देशों के बीच डुरंड रेखा विवाद का बड़ा कारण है। 1893 में ब्रिटिश शासन द्वारा खींची गई डुरंड रेखा को अफगानिस्तान ने कभी मान्यता नहीं दी है। यह सीमा विवाद दोनों देशों के बीच तनाव का एक ऐतिहासिक स्रोत है।उधर, पाकिस्तान का आरोप है कि  तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान अफगानिस्तान की जमीन से संचालित होकर पाकिस्तान में आतंकी हमले कर रहा है। पाकिस्तान ने अफगान तालिबान से टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है, लेकिन तालिबान ने इसे अस्वीकार कर दिया है।हाल ही में, तोरखम सीमा चौकी पर पाकिस्तानी और अफगान सुरक्षा बलों के बीच झड़पें हुई हैं, जिससे कम से कम एक व्यक्ति की मौत और कई घायल हुए हैं। यह संघर्ष सीमा पर एक नए चौकी के निर्माण को लेकर हुआ, जिससे तनाव और बढ़ गया है।दिसंबर 2024 में, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में ठीटीपी के ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिसमें कई नागरिकों की मौत हुई। अफगान रक्षा मंत्रालय ने इन हमलों की निंदा की और इसे अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का उल्लंघन बताया।

चीन के चंगुल में फंसता पाकिस्तान

चीनी ने पाकिस्तान को लोन देकर अपने चंगुल में फंसा लिया है। पाकिस्तान ने चीन से सबसे अधिक लोन दिया है। यह लोन लगभग 28.6 बिलियन डॉलर है, जो उसके कुल कर्ज का 22 प्रतिशत है। विश्व बैंक के अनुसार, देश पर कुल मिलाकर लगभग 130 अरब डॉलर का कर्ज है। आज पाकिस्तान की हालत बेहद खस्ता है। यहां तक कि वहां पर आटे-दाल-चावल, सब्जियां और दूध तक आम आदमी की पहुंच से दूर जा चुके हैं। देश में बेरोजगारी चरम पर है।पाकिस्तान ने अपनी नाजुक वित्तीय स्थिति के चलते आईएमएफ से आपातकालीन फंड मांगता रहा है। हालांकि, चीन के लिए पाकिस्तान चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का घर है। यह चीन के पश्चिमी प्रांतों को बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने वाला लगभग 3,000 किलोमीटर लंबा गलियारा है।कहने का तात्पर्य यह है कि चीन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को कर्ज देकर वहां अपना आधिपत्य बनाता जा रहा है।

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