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अपने ही देश में हिन्दी हुई बेहाल

सितंबर माह आते ही हरसाल हिन्दी दिवस और पखवाड़ा मनाने कीचहल पहल हर सरकारी दफ्तरों में शुरु हो जाती है और हिन्दी दिवस के नाम पर करोड़ो रुपयेपानी की तरह बहा दिया जाता है। चाहे वो राज्य की सरकारें हो या केन्द्र सरकार हो।हिन्दी को हमारे नेता राष्ट्रभाषा बनाने चाहते थे। गांधी जी ने सन् 1918मेंहिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था और ये भीकहा कहा था कि हिन्दी ही एक ऐसी भाषा, है जिसे जनभाषा बनाया जासकता है। 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को भारतीय संविधान में जगह दी गई पर दक्षिण भारतीय एवंअन्य कई नेताओं के विरोध के कारण राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन 1953में14 सिंतबर से हिंदी को राजभाषा का दर्जा दे दिया गया। परन्तु सन 1956-57मेंजब आन्ध्र प्रदेश को देश का पहला भाषायी आधार पर राज्य बनाया गया तभी से हिन्दी कोराष्ट्रभाषा बनाने की धार कुंद पड़ गई और इतनीकुंद हुई कि आज तक इसकी धार तेज नहीं हो सकी। और राष्ट्रभाषा की बात राजभाषा की ओरउन्मुख हो गई। आजहिन्दी हर सरकारी दफ्तरो में महजसितंबरमाह की शोभा बन कर रह गई है। हिन्दी को ब्यवहार में न कोई कर्मचारी अपनाना चाहताहै और नाहीं कोई अधिकारी जब तक कि उसकागला इसके प्रयोग में न फंसा हो। हिन्दीके दशा एवं दिशा देने के लिए उच्चस्तर पर कुछ प्रयास भी हुए। इसके लिए कुछ फांट भी आये और इसके दोषों को सुधारा भी गया और आज सारी दुनिया मेंअंग्रैजी की भांति हिन्दी के भीसर्वब्यापी फांट यूनीकोड आ गया है जो हर लिहाज से काफी सरल ,सुगम एवं प्रयोग में भीआसान है। सरकार हिंदी के उत्थान हेतु कई नियम एवं अधिनियम बना चुकी है परन्तु अंग्रैजी हटाने के लिए सबसे बड़ीबाधा राज्यसरकारेंहै।क्योकिं नियम में स्पष्ट वर्णन है कि जब तक भारत के समस्त राज्य अपने दृअपने विधानसभाओं में एकबिल(विधेयक) इसे हटाने के लिए पारित कर केन्द्रसरकार के पास नहीं भेज देती तब तक संसद कोई भी कानून इस विषय पर नहीं बना सकती है।ऐसे में अगर एक भी राज्य ऐसा नहीं करती है तोकुछ भी नहीं हो सकता है। नागालैण्ड एक छोटा दृसा राज्य है जहां कीसरकारी भाषा अंग्रेजी है। तो भला वो क्यों चाहेगा कि उसकी सता समाप्त हो। दूसरी ओर तामिलनाडूकी सरकार एंव राजनीतिज्ञ भी हिन्दीके घोर विरोधी है और नहीं चाहते की उन पर हिन्दी थोपी जाये जबकि वहां की अधिकांश जनता आसानी से हिन्दी बोलती एवं समझतीहै। आज भारत केराजनीतिज्ञों ने हिन्दी को कुर्सी से इस तरह जोड़ दिया है कि अब इसको राष्ट्रभाषाबनाने के सपने धूमिल हो गये हैं।आज हिन्दी विश्व पटल पर तो फैली है लेकिन भारत मेंही उपेक्षित है । विदेशों मेंबाजारीकरण के कारण काफी लोकप्रिय हो गई है।कई देशों ने इसे स्वीकार किया है। कई विदेशीकंपनिया भी आज अपनेउत्पादों के विज्ञापन हिन्दी मेंदेने लगी है। इंटरनेट की कई सोशल सर्विस देने वाली साइटें मसलन-ट्वीटर ,फेसबूक,गूगल आदि पर भी हिन्दी की उपलब्धता आसानी से देखीजा सकती है। हिन्दी के प्रचार-प्रसारके लिए 10 जनवरी 1975 को नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित की गई थी।तब से लेकर अब तक देश दुनिया में 10 विश्व हिन्दी सम्मेलन इसके प्रचार-प्रसार केलिए आयोजित की जा चुकी है। हर साल 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस भी मनाते है। हिन्दीआज विश्व में लगभग 137 देशों में बोली जाती है।विश्व के प्रमूख 16 भाषाओं में 5भारतीय भाषाएं शामिल है।2001 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदीबोलनेवाले 41.03 प्रतिशत थे। आज भारत मेंहिन्दी बोलने,लिखने तथा ब्यवहारिक प्रयोग करने वालों की संख्या लगभग 70 प्रतिशत हैफिर भी आज दुख इस बात का है कि सरकारी दफ्तरों में और न्यायालयों में अंग्रैजी काबोलबाला है। इसलिए आज अपने ही देश में हिन्दी बे-हाल होते जा रही है। 
लालबिहारी लाल

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