लखनऊ। राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष डाॅ. मसूद अहमद ने कहा कि दिल्ली में एनसीसी छात्रों के बीच भाषण करते हुये देश के प्रधानमंत्री ने केवल पाकिस्तान का छद्मयुद्ध तथा नागरिकता संशोधन बिल में अपनी भूमिका का गुणगान किया जबकि देश के युवाओं को सम्बोधित करते समय प्रधानमंत्री को देश की गिरती हुयी अर्थव्यवस्था को सुधारने तथा नौजवानों को नौकरियां देने का वर्णन होना चाहिए था, क्योंकि इसके माध्यम से युवाओं में जन्म ले रही निराशा की भावना कुछ हदतक समाप्त हो सकती थी।
डाॅ. अहमद ने कहा कि विगत पंचवर्षीय योजना में सरकार की नोटबंदी के फलस्वरूप हजारों करोड़ नौकरियां समाप्त होने से देश के युवाओं में कुण्ठा पैदा हुयी हैै और प्रधानमंत्री का यह दायित्व है कि युवाओं को नौकरियां देने की बात धरातल पर उतारे ताकि कुण्ठाएं समाप्त हो सके। उन्होंने आगे कहा कि एनसीसी के कैडेट भी छात्र ही हैं और छात्रों को सम्बोधित करते समय 22 दिन पूर्व जेएनयू में छात्रों पर हुये नकाबपोश द्वारा हमले पर भी प्रकाश डालना चाहिए था कि अब तक उन नकाबपोषों का पता लगाने के लिए सरकार क्यों फेल हो रही है। वास्तविकता यह है कि देश के प्रधानमंत्री को अपनी नाकामियां छुपाने के लिए पड़ोसी देश की चर्चा आवष्यक हो जाती हैं। यदि इतनी ही चर्चा अपने देष की समस्याओं के प्रति करे तो निश्चित रूप से निराकरण सम्भव होगा।
रालोद प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री को समय और स्थान की आवश्यकता को देखते हुये अपना भाषण करना चाहिए ताकि श्रोतागणों को कुछ मिल सके अथवा मिलने की आषा बने। देश का युवा विगत 6 वर्षो से भाषणों के माध्यम से कोरी कल्पनाएं सुनकर ऊब चुका है और कुण्ठाग्रस्त हो चुका है। 2014 में 2 करोड़ नौकरियां प्रतिवर्ष देने का वादा करने वाली सरकार ने विगत वर्षो में हजारों करोड नौकरी पेशा लोगो को बेरोजगार करके देश में भुखमरी बढाने का काम किया है और इसी को देखकर देखकर देश का युवा स्वयं को अपना रास्ता तय करने में मजबूर पा रहा है।