(राम कृपाल सिंह🖋️) क्या यह विश्वसनीय लगता है कि जिस समय मोहम्मद अली जिन्ना हिंदुओं को एक असभ्य कौम और हिंदू धर्म तथा संस्कृति को निकृष्ट बताकर भारत में मुसलमानों को लामबंद कर रहे थे, उस समय उनके ही घर में गीता, पुराण और भागवत पढ़ी जा रही थी। हिंदुओं की इन पौराणिक और धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करने वाली थी- मोहम्मद अली जिन्ना की पत्नी रत्ती जिन्ना। रत्ती जिन्ना का हिंदू धर्म से कोई सरोकार नहीं था। वे एक पारसी परिवार में पैदा हुई थी और एक मुसलमान- मोहम्मद अली जिन्ना से शादी की थी लेकिन वे भारतीय संस्कृति, चिंतन और अध्यात्म से अभिभूत थी। रत्ती जिन्ना में राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।
जिन्ना परिवार के निकट मित्र- कांजी द्वारकादास ने अपने संस्मरण में एक घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि “शिमला में वायसराय चैम्सफोर्ड ने एक भोज दिया था,जिसमें जिन्ना भी सपत्नीक आमंत्रित थे। भोज में तमाम शाही लोग आमंत्रित थे। वहां जब रत्ती जिन्ना का वायसराय से परिचय कराया गया तो रत्ती ने भारतीय तरीके से सम्मान के साथ वायसराय को नमस्कार कियाऔर पूरी सभा में सन्नाटा छा गया।
वायसराय ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधि होता था और नियमानुसार उसे अभिवादन भी हमेशा ब्रिटिश तरीके से ही किया जाता था। रत्ती का भारतीय तरीके से नमस्कार करना वायसराय को बुरा भी लगा और सरकार की अवहेलना भी लगी। भोज के बाद वायसराय ने अपने एडीसी द्वारा रत्ती जिन्ना को अलग से बुलवाया और नाराजगी व्यक्त करते हुएकहा-“मिसेज जिन्ना, आपके पति का राजनीतिक भविष्य बहुत उज्ज्वल है। आपको उसे नष्ट नहीं करना चाहिए। जिस जगह आप हैं, वहां का शिष्टाचार अपनाना चाहिए।”
रत्ती जिन्ना ने जवाब दिया- ” सर आपकी आज्ञा सर माथे। मैं जिस जगह हूं, वहीं का शिष्टाचार पालन करती हूं। यह मेरा देश है भारत और भारतीय शिष्टाचार में नमस्कार करके ही सम्मान दिया जाता है।”ऐसी ही एक और घटना का वर्णन उन्होंने किया है। 1921 में नई दिल्ली में लॉर्ड रीडिंङ के साथ लंच था। लंच के दौरान बातचीत के क्रम में लॉर्ड रीडिंङ ने कहा- “मेरी जर्मनी जाने की बहुत इच्छा है। मैं जाना चाहता हूं पर नहीं जा सकता।” “क्यों?” रत्ती ने पूछा। “जर्मनी वाले हम अंग्रेजों से बहुत नफरत करते हैं। हमें वे बिल्कुल पसंद नहीं करते फिर वहां कैसे जाऊं?”- लॉर्ड रीडिंङ ने कहा।
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“तो फिर आप लोग हिंदुस्तान कैसे आ गए?”– रत्ती ने पूछा था। भारत और भारतीय संस्कृति को समर्पित रत्ती जिन्ना का भारतीय अध्यात्म और ब्रह्म विद्या का बहुत गहन अध्ययन था। उनका कहना था कि “हम पारसी, ईसाई, मुसलमान, हिंदू-कुछ भी हो सकते हैं लेकिन संस्कृति तो हमारी भारतीय ही है। पुराणों, उपनिषदों और वेदों का ज्ञान तथा दर्शन हम सबका है एवं सभी भारतीयों की धरोहर है- हमारी उपासना पद्धति चाहे जो हो।” उसका यह भी कहना था कि “भारतीय अध्यात्म से तो हजरत मोहम्मद भी प्रभावित थे।”
रत्ती जिन्ना को महात्मा गांधी भी बहुत स्नेह देते थे। हालांकि मोहम्मद अली जिन्ना ने गांधी जी को हमेशा अपने स्तर के बराबर ही माना और सदा मिस्टर गांधी ही कहा लेकिन रत्ती जिन्ना जब भी उनसे मिलती, वह गांधी जी के पैर छूूतीं और वे हमेशा सर पर हाथ फेर कर उसे आशीर्वाद देते। रत्ती जिन्ना की औपचारिक शिक्षा बहुत अधिक नहीं थी लेकिन उसमें स्वाध्याय की ललक बहुत थी और उसका अध्ययन क्षेत्र बहुत गहन और व्यापक था। त्ती जिन्ना का मायका और ससुराल-दोनों बहुत संपन्न थे। रहन-सहन भी पूरी तरह आधुनिक था। रत्ती जिन्ना का न तो किसी धार्मिक कर्मकांड में विश्वास था, न वह कोई कर्मकांड करती थी बल्कि वह विचारों में भी किंचित विद्रोही प्रकृति के साथ पूरी तरह आधुनिक थी।
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इस प्रकार की सोच के व्यक्ति में भारतीय संस्कृति में अटूट आस्था, वेद, पुराण, गीता के दर्शन और अध्यात्म में गहराई तक चिंतन और पैठ तथा पूरी तरह भारतीय संस्कृति को समर्पित सोच- भले ही यह विरोधाभास लगता हो किंतु यह एक ऐतिहासिक यथार्थ है।अपने पति मोहम्मद अली जिन्ना के विचारों से यह भिन्नता ही रत्ती के उनसे अलगाव का कारण बनी और संभवतः अत्यंत अल्पावस्था (कुल 29 वर्ष) में उसकी मृत्यु का कारण भी बनी।