होली का त्यौहार नजदीक था। घर में मेहमानों की चहल-पहल बढ़ रही थी। कल ही बनारस से सुधा की ननद और उसके दो बच्चे आए थे । जेठ-जेठानी और उनकी प्यारी सी दो साल की बिटिया नेहा भी सप्ताह भर की छुट्टियों के चलते बेंगलुरु से आए हुए थे ।सुधा उन लोगों के आने पर बहुत खुश थी और उनकी आवभगत में लगी हुई थी। किंतु इस खुशी के पीछे का सूनापन किसी से छिपा नहीं था।
सुधा ,माथुर परिवार की छोटी बहू थी जिससे जीवन की खुशियां अब छिन चुकी थी ।सुधा का पति अमित ,आर्मी में कर्नल था। अमित एक विवाह समारोह में शामिल होने के लिए छुट्टियों में घर आया हुआ था ।सुधा को उसने पहली बार वहीं पर देखा था ।सुंदर नैन नक्श ,गोरा रंग ,सौम्य स्वभाव और मंत्रमुग्ध कर देने वाली मुस्कान ने पहली नजर में ही उसका मन मोह लिया था। अमित ने एक रिश्तेदार के माध्यम से सुधा के घर विवाह प्रस्ताव भिजवाया ।बिना दान दहेज के घर बैठे बिठाए इतना अच्छा रिश्ता पाकर सुधा के माता-पिता भी अति प्रसन्न थे ।
आजकल के समय में नौकरी वाला लड़का मिलना बहुत ही मुश्किल है कितनी नसीबों वाली है हमारी सुधा कहते हुए,सुधा की दादी भावुक हो गईं थीं। अमित अगली छुट्टियों तक इंतजार करने के लिए तैयार नहीं था इसलिए दोनों परिवारों की आपसी सहमति से एक साधारण सा समारोह आयोजित करके दोनों का विवाह कर दिया गया । ऊंची कद काठी, आकर्षक व्यक्तित्व और हंसमुख स्वभाव वाले अमित को पाकर सुधा भी अति प्रसन्न थी ।मिलनसार स्वभाव तथा सेवा भाव के चलते सुधा ने परिवार के सभी सदस्यों का मन जीत लिया था। छुट्टियां समाप्त हो गई और अमित वापस अपनी ड्यूटी पर लौट गया ।
सुधा को बेसब्री से होली का इंतजार था क्योंकि अमित छुट्टियों में आने वाला था ।किंतु इसी बीच सीमा पर तनाव बढ़ जाने के कारण फौज की एक अतिरिक्त बटालियन को इमरजेंसी में भेजना पड़ा। अमित इसी बटालियन का एक सदस्य था। अतः उसकी छुट्टियां निरस्त हो गईं।पड़ोसी देश से घुसपैठ कर आने वाले आतंकवादियों के अचानक हमले में भारतीय सेना के सात जवानों को वीरगति प्राप्त हो गई ।
इन जवानों में एक नाम अमित का भी था।होली के दिन अमित घर तो पहुंचा किंतु निष्प्राण। उस के पार्थिव शरीर को देखकर सुधा बेसुध होकर गिर पड़ी ।होश आया तो होली के वे सभी रंग उसे हमेशा के लिए छोड़कर जा चुके थे जो कभी उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे ।रंगो का यह त्योहार उसके जीवन को हमेशा के लिए बेरंग कर चुका था। उसने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया और स्वयं को परिवार के प्रति समर्पित कर अमित की यादों के सहारे जीवन व्यतीत करने का फैसला कर लिया। इस घटना को पांच वर्ष हो चुके थे। घरवालों के लाख समझाने पर भी उसने दोबारा विवाह करने से इंकार कर दिया। सुधा के सास ससुर और परिवार के अन्य सदस्य इस ग्लानि से भरे हुए थे कितना लंबा जीवन वह अकेले कैसे गुजारेगी? इस बार सुधा की ननद का मुंह बोला भाई अर्जुन भी होली मनाने उसके साथ आया हुआ था जो बनारस में ही एक मल्टीनेशनल कंपनी में पार्टनर था।
उसने मथुरा की होली के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था इसलिए इस बार समय निकालकर वह यहां आया था ।वह एक खुले विचारों वाला व्यक्ति था जो रूढ़ीवादी और दकियानूसी विचारधारा का सख्त विरोधी था। उसकी नजर सुधा पर पड़ी ।सफ़ेद लिबास में लिपटी,फीकी मुस्कान वाली काया ने उसे विचलित कर दिया।उसके बारे में पूरी जानकारी मिलने के बाद अर्जुन ने उसके जीवन को रंगों से एक बार फिर से रंगने का निश्चय किया और अपने मन की बात परिवार वालों के समक्ष रखी।परिवार वाले तो जाने कब से यह चाह रहे थे कि सुधा के जीवन में खुशियां एक बार फिर से दस्तक दें। सुधा के ससुर भाव विभोर होकर अर्जुन से बोले,” बेटा यदि ऐसा हो जाए तो उस अभागी के जीवन में भी खुशियां लौट आएंगी।”
अगले दिन होली का त्यौहार था। सभी एक दूसरे को रंग गुलाल लगाने में मशगूल थे ।अर्जुन ने जब सुधा को रंग लगाना चाहा तो उसने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि विधवा को रंग लगाने का कोई अधिकार नहीं है।लोग क्या कहेंगे?वैसे भी अब इन रंगों से मेरा कोई सरोकार नहीं है।अर्जुन ने बिना कुछ सुने एक मुट्ठी गुलाल लेकर सुधा की मांग भर दी।सुधा हतप्रभ होकर उसे देखती रह गई।होश आया तो उसने अपनी साड़ी से रंग झाड़ते हुएअपना हाथ मांग से रंग को मिटाने के लिए उठाया।
सुधा की सास ने उसका हाथ नीचे करते हुए कहा,”बेटा कब तक अमित की यादों के सहारे अपना जीवन गुजारोगी? हम लोग भी अमर होकर नहीं आए हैं जब विधाता ने तुम्हें एक और मौका दिया है खुशियों को पाने का तो उसे सहर्ष स्वीकार कर लो।”सुधा निरुत्तर होकर चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी ।तभी नेहा अपने नन्हे नन्हे हाथों से सुधा के गालों पर रंग लगाते हुए बोल पड़ी,”बुरा न मानो होली है ।”होली की जिस त्यौहार ने सुधा के जीवन के सभी रंग छीन लिए थे आज उसी ने उसके जीवन में नए रंगों की बौछार कर दी थी।