उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपा का परचम लहराया है। विपक्ष सकते में है। एक बार फिर वह अपनी पराजय का ठीकरा व्यवस्था पर फोड़ रहे है। लेकिन इससे चुनाव का सटीक विश्लेषण नहीं हो सकता। विपक्ष के लिए यह आरोप लगाने का नहीं आत्मचिंतन का अवसर होना है। लेकिन इससे बच निकलने का प्रयास चल रहा है। इसके अंतर्गत आत्मचिंतन की जगह आरोप से काम चलाया जा रहा है। विगत सात वर्षों में इसके लिए नायाब तरीका अपनाया जा रहा है।
भाजपा जीते तो कहा जाता है ईवीएम खराब थी। विपक्ष जीता तो उसकी लोकप्रियता का दावा। इस दोहरे मापदंड से विपक्ष की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ी। इसके साथ ही विपक्ष को अपनी सरकारों का समय भी याद करना चाहिए। दूसरे पर आरोप लगाने के लिए नैतिक बल व पृष्ठिभूमि का होना आवश्यक होता है। तभी उन आरोपो में असर होता है। अन्यथा उनका किसी ठीकरे से अधिक महत्व नहीं होता। उस समय की पृष्ठभूमि अलग थी। अध्यक्ष पद के निर्वाचन में धनबल बाहुबल के प्रकरण जगजाहिर हुआ करते थे।
इस समय की स्थिति ऐसी नहीं थी। सत्ता पक्ष को मनोवैज्ञानिक व राजनीतिक लाभ मिला है। उसका उत्साह बढा है। विपक्ष की स्थिति इसके विपरीत है। वह समीकरण के सही आकलन में भी विफल रहा। पंचायत सदस्य चुनाव में सपा ने सर्वाधिक सीट जीतने का दावा किया था। इस दावे को सही मान लें तब भी अध्यक्ष पद की अधिक सीट हासिल करना संभव नहीं था। बड़ी संख्या में निर्दलीय चुनाव जीते थे। इनमें सर्वाधिक संख्या में भाजपा के असंतुष्ट ही थे। सत्ता में होने के कारण सर्वाधिक दावेदार भी इसी पार्टी के थे। ऐसे निर्दलीय अध्यक्ष पद के लिए सपा को समर्थन देने पर सहमत नहीं थे।
बसपा ने अध्यक्ष पद चुनाव से किनारा कर लिया था। उसके जो समर्थक सदस्य बने थे,वह भी सपा के साथ जाने को तैयार नहीं थे। बसपा प्रमुख मायावती का बयान भी सपा के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। चुनाव के ठीक पहले उन्होंने सपा को धोखेबाज बताया था। कांग्रेस तो कहीं लड़ाई में ही नहीं थी। कुछ समय पहले भी मायावती ने कहा था कि वह सपा को रोकने के लिए कुछ भी कर सकती है। यह भाजपा के लिए अनुकूल माहौल था। बड़ी संख्या में उसके भी सदस्य विजयी रहे थे।
इसके साथ ही उसे समीकरण का भी लाभ मिला। ऐसे में चुनाव परिणाम को अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता। कोरोना काल के दौरान भाजपा संगठन ने अपनी जमीनी सक्रियता को कायम रखा। राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष तक सभी स्तर पर सक्रियता थी। बड़ी संख्या में राहत कार्यों का संचालन किया गया। दूसरी तरफ विपक्ष इस मामले में पिछड़ गया। उसके नेता ट्विटर पर तो अत्यधिक सक्रिय था। प्रत्येक मसले पर प्रतिक्रिया देने को वह हर समय तैयार रहते थे। लेकिन जमीन सक्रियता का अभाव था। अपने ही कार्यकर्ताओं के साथ संवादहीनता की स्थिति थी। पंचायत चुनाव में इसका असर भी दिखाई दिया। कथित किसान आंदोलन को समर्थन देना भी विपक्ष के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। दिल्ली सीमा पर सात महीने से किसानों के नाम पर आंदोलन चल रहा है।
सरकार ने इसके प्रतिनिधियों से बारह बार वार्ता की। लेकिन ये लोग तीन कृषि कानूनों की वापसी पर अड़े रहे। विपक्षी नेताओं ने इस बेगाने आंदोलन को समर्थन दिया। इसका भी उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। उत्तर प्रदेश के किसानों की इस आंदोलन में कोई दिलचस्पी नहीं थी। विकल्प व अधिकार मिलने से किसान नाराज भी नहीं थे। इससे तो केवल बिचौलियों को ही नुकसान होना था। इसको किसानों का नुकसान बता कर प्रचारित किया गया। इससे वास्तविक किसान प्रभावित नहीं हुए। कृषि मंडी व न्यूनतम समर्थन मूल्य की समाप्ति संबधी दलीलों पर भी वास्तविक किसानों ने विश्वास नहीं किया।
उल्टे पिछली सरकारों से सवाल होने लगे। पूंछा गया कि उनके समय में समर्थन मूल्य कितना बढ़ाया गया। उनके समय में कृषि मंडी से कितने प्रतिशत अनाज की खरीद होती थी। आंदोलन को समर्थन देने वाले नेताओं के लिए यह सवाल शर्मिंदा करने वाले थे। क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य में सर्वाधिक वृद्धि वर्तमान सरकार के समय की गई। इसी प्रकार पिछली सरकारों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में कई गुना अधिक अनाज की खरीद की गई। किसानों को बहत्तर घण्टे में शत प्रतिशत भुगतान भी सुनिश्चित किया गया। वर्तमान सरकार की उपलब्धियों से भी पंचायत सदस्य प्रभावित दिखाई दिए। अब प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर चौबीस घण्टे,तहसील मुख्यालय में करीब बाइस घण्टे,ग्रामीण क्षेत्र में सोलह से सत्रह घण्टे बिजली आपूर्ति दी जा रही है। आने वाले समय में पूरे प्रदेश में चौबीस घण्टे विद्युत आपूर्ति देने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।
विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर एवं कनेक्टिविटी से परिवेश बदला है। आज प्रदेश में एयरपोर्ट,हवाई पट्टी विकास,पूर्वांचल एक्सप्रेस वे,बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे,गंगा एक्सप्रेसवे,गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे, बलिया लिंक एक्सप्रेसवे के कार्य हो रहे हैं। अयोध्या जन्मभूमि पर श्री राम मंदिर का निर्मांण,अनुच्छेद तीन सौ सत्तर समाप्ति, तीन तलाक की समाप्ति, नागरिकता संशोधन कानून,कृषि कांनून, आत्मनिर्भर भारत अभियान,कोरोना संकट में प्रभावी आपदा प्रबंधन,किसान सम्मान निधि,अस्सी करोड़ गरीबों को छह माह तक राशन,भरण पोषण भत्ता,करोड़ों निर्धन आवास,शौचालय आदि अनेक अभूतपूर्व उपलब्धियां सत्ता पार्टी को उत्साहित करने वाली है। राज्य सरकार ने अब तक गन्ना किसानों को सवा लाख करोड़ रुपए के गन्ना मूल्य का भुगतान कराया है।
करण्ट ईयर आधे से अधिक का गन्ना मूल्य का भुगतान कराया जा चुका है। कोरोना काल में भी सभी एक सौ उन्नीस चीनी मिलें संचालित की गईं। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लगभग छत्तीस लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की। छियासठ लाख मीट्रिक टन से अधिक धान की खरीद की जा चुकी है। किसानों को ग्यारह हजार करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान किया गया है। राज्य सरकार द्वारा मक्के की खरीद कर किसानों को करीब दो सौ करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि का भुगतान किया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अन्तर्गत प्रदेश के दो करोड़ बयालीस लाख किसानों को लाभान्वित किया गया है। इसके लिए राज्य को भारत सरकार से प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। प्रदेश के शहरी और ग्रामीण इलाकों में चालीस लाख आवास उपलब्ध कराए गए हैं।
करीब ढाई करोड़ से अधिक किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना से लाभान्वित किया गया। चौवन लाख कामगार श्रमिक,स्ट्रीट वेण्डर्स आदि को भरण।पोषण भत्ते का लाभ मिला। कामगारों श्रमिकों की सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा तथा सर्वांगीण विकास के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उत्तर प्रदेश कामगार एवं श्रमिक सेवायोजन एवं रोजगार आयोग का गठन किया गया है। एक करोड़ अड़तीस लाख घरों में निःशुल्क विद्युत कनेक्शन दिए गए हैं। सत्तासी लाख से अधिक लोगों को वृद्धावस्था,महिला व दिव्यांगजन पेंशन दी गई हैं। हर घर नल योजना के तहत तीस हजार ग्राम पंचायतों में शुद्ध पेयजल योजना लागू की गई है। हर जिला मुख्यालय को फोर लेन से तथा तहसील मुख्यालयों और विकास खण्ड मुख्यालयों को दो लेन से जोड़ने की कार्यवाही की जा रही है।