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स्त्री होना आसान कहाँ!

स्त्री होना आसान कहाँ!

सबको लगता है, आसान है एक स्त्री का स्त्री होना,
न न साहब!, स्त्री होना आसान कहाँ होता है,
कहाँ आसान होता है एक स्त्री का बेटी होना,
बनना पड़ता है समझदार और संस्कारी बेटी बनने के लिए,
आभारी होना पड़ता है माता-पिता का जन्म देने के लिए।

कहाँ आसान होता है एक स्त्री का पत्नी होना,
पत्नी बनने के लिए बहुत कुछ सहन करना होता है,
कभी-कभी तो मीठी और कभी-कभी तो बहुत ख़ारी झील होना पड़ता है,
कहाँ आसान होता है एक स्त्री का बहन होना,
भाई को समझ न आये पर खुद बहुत समझदार होना पड़ता है,
हाँ! कभी-कभी बहन को एक माँ की तरह ही ज़िम्मेदार होना पड़ता है ।

कहाँ आसान होता है स्त्री का बहू बनना,
बहू होने के लिए सर्वगुण सम्पन्न होना पड़ता है ,
चाहे काँटों से भरी रहे गृहस्थी फिर भी खुद मधुवन होना पड़ता है।
कहाँ आसान होता है एक स्त्री का भाभी होना,
भाभी होने के लिए कभी माँ, कभी बहन तो कभी सहेली बनना पड़ता है,
चाहे उलझी रहे अपनी ज़िंदगी पर सभी के लिए आसान सी पहेली बनना पड़ता है।

सबसे अहम और बहुत ज़रूरी..
कहाँ आसान होता है स्त्री का माँ बनना,
माँ बनने के लिए अपनी उँगलियों को चम्मच और हथेलियों को तश्तरी बनाना पड़ता है,
हाँ! आसान नहीं बिल्कुल स्त्री का माँ बन जाना,
क्योंकी “माँ” बनने के लिए भी तो पहले स्त्री को स्त्री होना पड़ता है…।

रीमा मिश्रा”नव्या”
आसनसोल(पश्चिम बंगाल)

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