चाचौड़ा। ब्लॉक के नगर बीनागंज में घोसी समाज द्वारा प्रति वर्षानुसार इस वर्ष भी भुजरिया पर्व मनाया गया। घोसी धर्मशाला से समाज बंधुओं द्वारा एकत्रित होकर पूर्वजों के रीति रिवाज के साथ डंडों से अखाड़ा खेलते हुए भुजरिया पर्व का जलूस निकाला गया। इस अखाड़े में घोसी समाज के बुजुर्गों द्वारा आल्हा ऊदल के गीत गाए गए एवं नव युवकों द्वारा हाथ में डंडे लिए हुए अखाड़ा खेला गया।
भुजरिया पर्व : पूर्वजों की प्रथा आज भी यथावत
घोसी समाज के पूर्वजों ने जिस प्रकार यह भुजरिया प्रथा मनाने का चलन चलाया था, उस प्रथा को आज भी घोसी समाज द्वारा यथावत रखा गया है। समाज के लोगों द्वारा यह बताया गया कि भुजरिया पर्व हमारे पूर्वजों द्वारा इसी तरह आल्हा ऊदल के गीत गाकर एवं अखाड़ा खेल कर निकाला जाता था। उस प्रथा को आज भी हमारे द्वारा चलाया जा रहा है। यह प्रथा सैकड़ों वर्ष पुरानी प्रथा है। समाज के बुजुर्ग एवं नव युवकों द्वारा अखाड़ा खेलते हुए एवं गीत गाते हुए जुलूस को आगे बढ़ाया जाता है, पीछे पीछे महिलाएं अपने सिर पर भुजरियों को लेकर जलूस में चलती हैं।
भुजरिया पर्व पर निकाले जाने वाला जुलूस अखाड़ा घोसी समाज धर्मशाला से झंडा चौक होते हुए निचला बाजार तक ले जाया जाता है। अखाड़े को भुजरिया तोड़ने जा रही महिलाओं के स्थान से लगभग एक किलोमीटर दूर रखा जाता है।
भुजरिया बांधने का चलन सैकड़ों वर्षो पुराना
क्षेत्र में भुजरिया पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भुजरिया पर्व पर घोसी समाज द्वारा विशेष आयोजन किए जाते हैं। इसी प्रकार अन्य समाज द्वारा भी भुजरिया पर्व पर एक दूसरे को भुजरिया बांधने का चलन सैकड़ों वर्षो से क्षेत्र में चला आ रहा है। महिलाओं द्वारा लोकगीत गाकर भुजरिया तोड़ने के लिए नदी, तालाब या किसी पानी वाले स्थान पर जाकर भुजरियों को तोड़ा जाता है। इन भुजरियों को तोड़ने के बाद सभी वर्ग के लोग आपस में एक दूसरे के हाथों में भुजरिया देकर गले लगते हैं और आपस में हमेशा एक दूसरे के साथ रहने का वादा करते हैं।
रिपोर्ट – विष्णु शाक्यवार