लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सरकार का आदेश है कि प्रवासी मजदूरों को उत्तर प्रदेश की सीमा में ना घुसने देंगे, ना रेल ट्रैक पर चलने देंगे, ना ट्रक-दुपहिया से जाने देंगे। भाजपा की गरीब विरोधी नीतियां ही लोगों को ये सब काम करने को मजबूर कर रही हैं। अच्छा हो, सरकार गरीब की जिंदगी पर ही रासुका लगा दे।
दतिया, झांसी, जालौन, कानपुर, गाजियाबाद, सहारनपुर की सीमाओं पर संघर्ष तबाही के शिकार श्रमिकों का कसूर क्या है? राज्य की सीमाओं पर क्या कोई विदेशी हमला होने वाला है? क्या अपने राज्य के कामगार विदेशी है? उन्नाव में सड़क जाम है। प्रशासन ने 10-10 किलोमीटर का जाम क्यों लगाया? इसका जवाब तो टीम-इलेवन को देना पड़ेगा। सिर पर सामान नदी को पार करते श्रमिकों का जत्था क्या यही उत्तर प्रदेश का परिचय है? ये सभी कितनी बेबसी के शिकार है। ऐसा तो बेगानों के साथ भी दुव्र्यवहार नहीं होता है।
अगर सरकार का गरीब मजदूरों के प्रति ऐसा ही दुर्भावनापूर्ण और उपेक्षापूर्ण व्यवहार बना रहा तो भला किस पर विश्वास कर ये प्रवासी मजदूर काम पर वापस लौटेंगे? अमीरों की इस सरकार ने अब तो श्रमकानूनों का रक्षा कवच भी छीन लिया है। प्रदेश में प्रशासन की पंगुता से जैसी अफरातफरी मची है उससे साबित होता है कि ‘‘समाज में दूरी‘‘ पैदा करने वाली भाजपा का सारा ध्यान कोरोना नियंत्रण और गरीब को रोजी-रोटी की सुविधा देने पर नहीं अपनी चुनावी चालों पर है।
भाजपा ने श्रमिकों-कामगारों और गरीबों को जितना अपमानित किया, वह दुखभरी अनन्त दास्तान है। इस पीड़ा और कश्ट को श्रमिक कभी भूल नहीं पायेगा। श्रमिकों पर दोहरी मार एक कोरोना और दूसरी भाजपा सरकार का आचरण। यह कैसी विडम्बना है आजाद भारत में लाचार श्रमिक और उनकी भूख साथ चलने को मजबूर है। यह स्थिति राष्ट्रीय त्रासदी से कम नहीं है।
देश का मजदूर और कामगार बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। 1947 के बाद भारत में ऐसी स्थिति कभी नहीं आयी। जिनसे न्याय की उम्मीद है वही सरकार अन्याय और असहनीय पीड़ा पहुंचा रही है। बे-सहारों पर लाठियां बरसाई जा रही है। यह घोर अमानवीय कृत्य है। इस संकट का जिम्मेदार कौन है? आखिर 54 दिन से केन्द्र और राज्य की सरकारें क्या करती रही? यह लोकतंत्र के साथ भद्दा मजाक है।