समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि केन्द्रीय वित्तमंत्री के बजट में गरीबों, महिलाओं, किसानों, नौजवानों और मध्यम वर्ग के लोगों को राहत के नाम पर कुछ मिला नहीं, कर्ज और राष्ट्रीय सम्पत्ति बेचकर सत्ता सुख भोगने का जुगाड़ अवश्य करने की साजिश को परवान चढ़ाया गया है। यह बजट दिशाहीन और निराशाजनक है। डबल इंजन की सरकार को भी एक तरह से झटका दिया गया है। क्या इस बजट से 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बन सकेगी?
भाजपा सरकार ने इस बजट के माध्यम से कई राज्यों में होने वाले आगामी चुनावों के लिए थोथे वादों का पिटारा खोला है और कारपोरेट घरानों को देश-प्रदेश का भाग्य नियंता बनाया गया है। रेल, रोड, पुल, बीमा, बंदरगाह, एयरपोर्ट और बैंक तक को बेचने की तैयारी है। 100 सैनिक स्कूल खुलेंगे उनमें भी एनजीओ का सहयोग लेने की बात है। प्रच्छन्नरूप से आरएसएस को इसमें भागीदार बनाने का यह षडयंत्र है।
किसानों से तो भाजपा का बैरभाव पुराना है। किसान दिल्ली बार्डर पर महीनों से आंदोलनरत है। लगभग 200 किसान शहीद हो गए है। किसान एमएसपी की अनिवार्यता और कृषि कानून वापस लेने की मांग कर रहे है। भाजपा सरकार को उनकी मांगे मान लेनी चाहिए। देश की जनता की भावनाएं किसानों के साथ हैं। जनता जानती है कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती है। भाजपा सरकार जितनी मदद उद्योगपति मित्रों की कर रही है, उतनी किसानों की कभी नहीं रही। भाजपा सरकार के बजट में उनकी कोई चर्चा नहीं, उनकी मांगो पर कुछ नहीं कहा। भाजपा की संवेदनहीनता की यह पराकाष्ठा है।
बजट में कृषि के काम आने वाले डीजल पर 4 रूपये और पेट्रोल पर 2.50 रूपये प्रति लीटर कृषि सेस लगा दिया गया है। यूरिया, डीएपी खाद मंहगी कर दी गई है। 2022 आने में दस माह ही बचे है लेकिन अभी तक किसानों की आय दुगनी करने की कोई ठोस योजना सामने नहीं आई पर कृषि सुधार का ढोंग खूब है। एमएसपी पर सरकारी रूख पूर्ववत संदिग्ध हैं किसान को सुनिश्चित आय मिलने की दिशा में कोई संकेत नहीं है। मनरेगा का जिक्र तक न होना आश्चर्यजनक है।
नौजवानों के लिए रोजगार के अवसरों पर सरकार चुप है। होटल, परिवहन, सेवा क्षेत्र, हास्पिटैलिटी सेक्टर कोरोना की मार से अभी उबर नहीं पाए हैं सरकार ने उनको कोई राहत नहीं दी जबकि वे रोजगार का बड़ा सहारा बनते हैं। पेट्रोल-डीजल के बढ़े दामों से यातायात और ढुलाई से माल की कीमतों में बढ़ोत्तरी होगी जिससे उपभोक्ता की जेब कटेगी।
बजट से नौकरी पेशा वाले बहुत मायूस होंगे। कोरोना संकट में उनके वेतन भत्तों में पहले ही कटौती हो चुकी है। उनकी हालत सुधारने के लिए कुछ भी इस बजट में नहीं है। टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ और वरिष्ठ नागरिकों को भी सिर्फ बहकाने का काम किया गया है।
भजपा की पूंजीघरानों के प्रति पक्षपाती नीति का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि प्रधानमंत्री जी ने नोटबंदी के समय टैक्स चोरी के मामलों के कई पुश्तों तक के रिकार्ड निकालने का वादा किया था परन्तु अब 3 साल पर आकर उनकी सुई अटक गई है। इससे पहले के कर चोर अवश्य खुशहाल रहेंगे। कारपोरेट घरानों को बराबर टैक्स में छूट दी जाती रही है जबकि आम आदमी 35 प्रतिशत टैक्स अदा कर रहा है।
समझ में नहीं आता कि एक हजार मंडियों को ई-नाम के साथ जोड़कर क्या फायदा होगा? पेपरलेस बजट और डिजिटल जनगणना दिल बहलाने को अच्छा ख्याल है। लाकडाउन में जिनका रोजगार छिना उनके पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं। गांव-गरीब के लिए कुछ भी नहीं। भाजपा सरकार के निजीकरण से गरीबों, पिछड़ों और दलितों का आरक्षण स्वतः समाप्त हो जाएगा।
सच तो यह है कि भाजपा की केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय सम्पत्तियों को बड़े पूंजीघरानों के हाथों में बंधक रखने के साथ उनकी खुशहाली के सभी सम्भव रास्ते खोलने का संकल्प लिया है। वह खेती-गांव गरीब का सफाया करने पर तुली है। देश की विकास दर में भारी गिरावट है और अर्थव्यवस्था संकट में है। नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना महामारी ने तबाह कर दिया है। इससे उबारने की जगह और ज्यादा गर्त में डालने का काम भाजपा ने किया है।
भाजपा सरकार से बजट में राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सौहार्द, किसान-मजदूर के सम्मान, महिला युवा के मान और अभिव्यक्ति की पुनस्र्थापना के लिए कुछ प्रावधान किए जाने की अपेक्षा थी किन्तु भाजपा ने अपनी कुनीतियों से इन सबकों खण्डित करने का काम किया है।