प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में 12 मार्च 2021 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस, डा.भीम राव अंबेडकर समेत कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ को समर्पित ‘‘आजादी के अमृत महोत्सव’’ की शुरुआत की।
समारोह में पीएम मोदी ने कहा, ”पंडित नेहरू, सरदार पटेल, बाबा साहब अंबेडकर, सुभाष चंद्र बोस ये सभी महान व्यक्तिव आजादी के आंदोलन के पथ दर्शक रहे हैं।हमें उनके सपनों का भारत बनाना है। हम सामूहिक संकल्प ले रहे हैं। इनसे प्रेरणा ले रहे हैं।” पीएम मोदी ने बताया कि 75वीं वर्षगांठ का समारोह 15 अगस्त 2023 तक चलेगा।उन्होंने कहा कि बीते छह वर्ष में देश के गुमनाम नायकों के इतिहास को संरक्षित करने के सजग प्रयास किए गए हैं।
प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी की दांडी यात्रा का स्मरण करते हुए गुजरात के साबरमती आश्रम से पदयात्रा को हरी झंडी दिखाई। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से 81 लोगों ने पदयात्रा शुरू की। वे 386 किमी दूर नवसारी के दांडी तक जाएंगे। 25 दिन की इस पदयात्रा का समापन 5 अप्रैल 2021 को होगा। उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में ‘नमक सत्याग्रह’ की घोषणा करते हुए 78 लोगों ने 12 मार्च 1930 से दांडी यात्रा शुरू की थी। नमक पर अंग्रेजों के दमनकारी कर के खिलाफ यह राष्ट्रपिता का अहिंसक विरोध था जिसकी भारत की आजादी के आंदोलन में अहम भूमिका रही।
कौन हैं ये गुमनाम नायक, जिनके इतिहास को संरक्षित करने के लिए सजग प्रयास किया जा रहा है। आइये जानते हैं कुछ ऐसे ही गुमनाम नायकों को, जिन्हें इतिहास में भी उचित स्थान नहीं मिल सका।
मातादीन भंगी ने रखी थी 1857 की क्रांति की नींव
दलितों को लेकर देश में अक्सर विरोधी माहौल बनते रहते हैं, पर सच यह है कि चाहे सामाजिक व्यवस्था हो, आजादी की लड़ाई हो या देश की रक्षा, दलितों ने हर जगह बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया है। आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में हम सभी मंगल पांडेय को जानते हैं, पर वास्तविकता यह है कि इसकी पटकथा लिखी थी मातादीन भंगी नाम के एक दलित ने।
वैसे तो 1857 की क्रांति की पटकथा 31 मई को लिखी गई थी, लेकिन मार्च में ही विद्रोह छिड़ गया। दरअसल जो जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म के लिए हमेशा अभिशाप रही, उसी ने क्रांति की पहली नीव रखी। मातादीन के पूर्वज मेरठ के रहने वाले थे। मगर वे नौकरी के सिलसिले में अंग्रेजों की तत्कालीन राजधानी कोलकाता में बस गए थे। वहां मातादीन बैरकपुर कारतूस फैक्ट्री में सफाई कर्मी थे। अंग्रेज फौज के संपर्क में रहने से मातादीन को वहां की सारी गतिविधियों की जानकारी रहती थी।
बात 22 जनवरी 1857 की है। वहां सैनिक के तौर पर मंगल पांडेय भी थे। हुआ यह था कि बैरकपुर छावनी कोलकत्ता से मात्र 16 किलोमीटर की दूरी पर था। फैक्ट्री में कारतूस बनाने वाले मजदूर मुसहर जाति के थे। एक दिन वहां से एक मुसहर मजदूर छावनी आया। उस मजदूर का नाम माता दीन भंगी था। मातादीन को प्यास लगी, तब उसने मंगल पांडेय नाम के सैनिक से पानी मांगा। मंगल पांडे ने ऊंची जाति का होने के कारण उसे पानी पिलाने से इंकार कर दिया। कहा जाता है कि इस पर माता दीन भंगी बौखला गये और उन्होंने कहा कि “कैसा है तुम्हारा धर्म जो एक प्यासे को पानी पिलाने की इजाजत भी नहीं देता और ‘गाय’ जिसे तुम लोग मां मानते हो, सूअर जिससे मुसलमान नफरत करते हैं, लेकिन उसी के चमड़े और चर्बी से बने कारतूस को मुंह से खोलते हो।” मंगल पांडेय यह सुनकर चकित रह गए। उन्होंने मातादीन को पानी पिलाया और इस बातचीत के बारे में उन्होंने बैरक के सभी लोगों को बताया। इस सच को जानकार मुसलमान भी बौखला उठे।
8 अप्रैल 1857 को शहीद हो गये माता दीन
मंगल पाण्डेय के अंदर अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। विरोध को दबाने के लिए अंग्रेज अधिकारियों ने मंगल पांडेय पर गोलियां चला दी। जवाब में मंगल पांडेय ने भी बंदूक चला दी। मंगल पांडेय घायल हो गए। इस घटना के कारण सैनिकों में विद्रोह भड़क उठा। मातादीन भंगी भी कर्तव्य निभाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने अंग्रेजों के रखे हथियारों, गोला-बारूद, रसद तथा ठिकानों का पता विद्रोही सिपाहियों को बता दिया और और 1857 की क्रांति में बड़े सहयोगी बन गए। बाद में अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को विद्रोह के लिए भड़काने का मुख्य आरोपी मातादीन भंगी को माना।
यह मुकदमा मातादीन भंगी के नाम से चला। सभी गिरफ्तार क्रांतिकारियों को कोर्ट मार्शल के जरिए फांसी की सजा दी गई। मातादीन भंगी भी मातृभूमि के लिए 08 अप्रैल 1857 को शहीद हो गए। पहली फांसी मातादीन भंगी दी गई। उसके बाद मंगल पांडेय और बाकी गिरफ्तार सैनिकों को फांसी दी गई। इस मुकदमे का नाम ही ‘ब्रिटिश सरकार बनाम मातादीन’ था। (देश के लिए शहीद होने वाले गुमनाम नायकों की अगली कड़ी में पूरन कोरी, झलकारी बाई कोरी, ऊदादेवी)