कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को ‘बूस्टर डोज’ की तरह बताया है लेकिन क्या यह राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे चुनावी राज्यों में उसके लिए नयी जान फूंक सकेगी, यह लाख टके का सवाल है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बार-बार दोहराया है कि यह कोई चुनावी यात्रा नहीं बल्कि वैचारिक यात्रा थी, लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इसकी असली परीक्षा यह होगी कि क्या इसका चुनावों पर कोई असर होगा और क्या यह 2024 के चुनाव में कांग्रेस में नयी जान फूंककर उसका चुनावी भविष्य तय कर पाएगी।
इस साल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने की संभावना है और यात्रा इनमें से चार राज्यों-कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना से होकर गुजरी है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 4,000 किलोमीटर की यात्रा ने निश्चित रूप से इन राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा है लेकिन क्या यह इन संबंधित राज्यों में विधानसभा चुनाव में रंग दिखा पाएगी यह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या संबंधित प्रदेश इकाइयां इस गति को बनाए रख सकती हैं और आगे क्या, के सवाल का जवाब देना जारी रख सकती हैं।
रैलियों में अपने संबोधन में पायलट ने गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को बार-बार पेपर लीक की घटनाओं, पार्टी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर सेवानिवृत्त नौकरशाहों की राजनीतिक नियुक्ति जैसे मुद्दों पर घेरा। वहीं, पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की उनके खेमे की मांग ने फिर से जोर पकड़ लिया और उनके विश्वस्त नेता खुलेआम राज्य में उन्हें मुख्यमंत्री पद दिए जाने की वकालत कर रहे हैं। राज्य में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि अगर कांग्रेस राज्य में सत्ता में आती है तो गहलोत-पायलट सवाल को सुलझाने की जरूरत है, नहीं तो यात्रा से मिले फायदे का कोई लाभ नहीं होगा।
पार्टी के एक कार्यकर्ता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ”यात्रा से पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा मिला है लेकिन कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं के बीच अब भी मुद्दे अनसुलझे हैं जो निश्चित रूप से अगले चुनावों में पार्टी की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।” अन्य पार्टी कार्यकर्ता ने कहा कि यह पार्टी के सभी नेताओं के लिए जरूरी है कि वे एकजुट रहें और गहलोत-पायलट की लड़ाई पार्टी को कमजोर कर सकती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे अन्य चुनावी राज्यों में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी यही भावना है, क्योंकि नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाना नेतृत्व के लिए बड़ा सवाल बना हुआ है। कांग्रेस महासचिव रमेश ने हाल में पीटीआई-भाषा से कहा था कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और निजी लक्ष्य कांग्रेस के लिए अभिशाप रहे हैं।
साथ ही, संगठन के स्तर पर एकता भी एक महत्वपूर्ण चुनौती-विशेषकर राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में है जहां पारंपरिक रूप से पार्टी गुटबाजी से प्रभावित रही है। कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस को इस यात्रा से कुछ फायदा हासिल होता दिख रहा है लेकिन राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके कट्टर विरोधी सचिन पायलट खेमे के बीच गुटबाजी जारी है और पैदल मार्च इसे सुलझाने में नाकाफी रहा है।
कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का राजस्थान चरण जैसे ही 21 दिसंबर को आखिरी चरण में पहुंचा, कांग्रेस ने राहत की सांस ली क्योंकि यात्रा सड़कों पर नारेबाजी के बावजूद राज्य में गहलोत एवं पायलट समर्थकों के बीच बिना किसी टकराव के आगे बढ़ी। लेकिन इसके तुरंत बाद पायलट ने राज्य में कई जनसभाओं की घोषणा की जिसमें लोगों ने उनकी ताकत देखी और यह आलाकमान के लिए एक संदेश की तरह था कि उनकी चिंताओं का अब तक समाधान नहीं हुआ है।