बिधूना। क्षेत्र के कस्बा रुरुगंज में नवदुर्गा पूजा पंडाल में विजय दशमी की रात्रि एक दिवसीय श्रीरामलीला का आयोजन किया गया। जिसमें धनुष यज्ञ व परशुराम-लक्ष्मण संवाद का मंचन किया गया। धनुष टूटते ही दर्शकों ने भगवान राम व सीता पर फूलों की वर्षा शुरू कर दी, चारों और राम व सीता की जय-जयकार लगे। परशुराम और लक्ष्मण का संवाद सुन दर्शक भाव विभोर हो उठे।
रूरूगंज में दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के बाद नवदुर्गा पूजा पंडाल कमेटी ने एक दिवसीय धनुष यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें रामलीला के मंचन में श्रीराम व लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाते हैं। राम व सीता दोनों एक-दूसरे को पहली बार फुलवारी में देखते हैं। फूल तोड़कर श्रीराम वापस गुरु विश्वामित्र के पास लौटते हैं और फुलवारी की सारी बात बताते हैं। इधर धनुष यज्ञ महोत्सव में लंकापति रावण और पातालपुरी नरेश बाणासुर का आगमन होता है। रावण स्वयंवर बंद करने को कहता है।
इधर समय बीतता जाता है और धनुष ज्यों का त्यों रखा रहता है। इससे जनक को आत्मिक कष्ट होता है। वह कहते हैं, लगता है पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है। इस पर मुनि विश्वामित्र धनुष तोड़ने के लिए राम को आदेश देते हैं। आदेश पाते ही श्रीराम धनुष उठाते हैं और जैसे ही धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते है धनुष टूट जाता है।
धनुष टूटने से तपस्या में लीन परशुराम का ध्यान भंग हो जाता है। वे जनकपुर पहुंचते हैं। परशुराम की निगाह टूटे हुए शिव धनुष पर पड़ती है तो वे आक्रोशित हो उठते हैं। कहते हैं कि ‘वेगि देखाऊ मूढ़ नत आजू, उल्टउ महि जहं लहि तब राजू’। राजा जनक उसे मेरे सामने लाओ जिसने शिव धनुष को तोड़ा है। अन्यथा सब राजा मारे जाएंगे। अचानक मुनि की मौजूदगी देखकर सीता जी की मां सुनैना दुखी हो जाती हैं।
भगवान श्रीराम परशुराम जी को प्रणाम कर कहते हैं कि ‘नाथ शंभु धनु भंजनिहारा, होइहहिं कोई एक दास तुम्हारा’ इस पर परशुराम जीकहते हैं कि ‘सुनहु राम जेहि शिक धनु तोरा, सहसबाहु सम सो रिप मोरा’ परशुराम का बढ़ता क्रोध देखकर लक्ष्मण मुस्कुराते हुए कहते हैं कि ‘बहु धनुही तोरी लरिकाई कबहुं न अस रिसि कीन्हिं गोसाई ‘एहि धनु पर ममता केहि हेतू, सुनि रिसाई कह भृग कुल केतू परशुराम-लक्ष्मण की यह संवाद घंटो तक चलता है।
अंत में भगवान श्रीराम ने परशुराम से कहा कि आप श्रेष्ठ हैं। श्रीराम के विनम्र भाव को देखक परशुराम जी का क्रोध शांत हो जात है। वे संदेह खत्म करने के लिए राम को धनुष देते हुए उस पर चाप चढ़ाने के लिए कहते हैं। श्रीराम क्षण भर में धनुष पर चाप चढ़ा देते हैं। इसके बाद परशुराम जी उनक स्तुति करते हैं और लीला समाप्त हो जाती है। राम का पाठ मोनू चौहान ने दिया जबकि लक्ष्मण की भूमिका गौपाल दुवे ने परसुराम की भूमिका सुदेश यादव व जनक की भूमिका आर.डी मिलन ने निभाई।
रिपोर्ट – संदीप राठौर चुनमुन