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अनर्थ से होगा समाज का अहित

रामचरित मानस महाकाव्य है। इसमें रचयिता पात्रों के माध्यम उसके कथन को रखते हैं। लेकिन महाकाव्य के नायक का कथन कार्य और व्यवहार ही वास्तविक संदेश होता है। प्रभु श्री राम निषाद राज को गले लगाते हैं। शबरी के जूठे बेर खाते हैं। जननी सम जानहू पर नारी का संदेश देते हैं। ऐसे नायक कभी नारी या किसी अन्य के उत्पीड़न का बात नहीं नहीं करते हैं। जिस चौपाई की निंदा की गई, वह समुद्र का कथन है। महाकाव्य को समझने के लिए यह देखना चाहिए कि सम्बन्धित कथन किसका है।

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महाकाव्य का वास्तविक संदेश केवल नायक के माध्यम से दिया जाता है। दूसरी बात यह कि निंदक लोग शूद्र और ताड़ना दोनों का गलत अर्थ निकाल रहे हैं। ताड़ना शब्द का अर्थ उत्पीड़न या प्रताड़ना नहीं है। ऐसा कहना अज्ञानता मात्र नहीं है। यह बहुसंख्यकों के विरुद्ध सुनियोजित साजिश है। अवधी भाषा का यह शब्द देखने और ध्यान रखने के लिए प्रयुक्त होता है। हिन्दू दर्शन में पशुओं के प्रति दया भाव दिखाया गया है। नारी के प्रति सम्मान का संदेश दिया गया। सम्बन्धित चौपाई का अनर्थ निकाला गया है। इसी प्रकार शूद्र शब्द का वर्तमान अनुसूचित जाति जनजाति से कोई मतलब नहीं है।

इसका प्रयोग क्षुद्र मानसिकता वालों के लिए किया गया है। इनका किसी जाति विशेष से संबंध नहीं है। इस शब्द को सेवक के संदर्भ में भी देख सकते हैं। लेकिन इस महा काव्य के किसी अन्य पात्र के कथन पर हंगामा करना निरर्थक है। प्रभु राम के कथन को अभिव्यक्त करने वाली चौपाई ही मंत्रवत हैं। शबरी प्रभु राम से कहती हैं..

केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी।
अधम जाति मैं जड़मति भारी।।
अधम ते अधम अधम अति नारी।
तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी।।

इतना सुनते ही भगवान तत्क्षण शबरी को रोकते हुए कह हैं.

कह रघुपति सुनु भामिनि बाता।
मानउँ एक भगति कर नाता।।
जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई।
धन बल परिजन गुन चतुराई।।
भगति हीन नर सोहइ कैसा।
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।।

वह शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देते हैं। ये भक्ति भागवत धर्म का आधार है। इसका निहितार्थ है प्रभु की भक्ति सबके लिए सुलभ है। प्रभु श्री राम शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान देते हैं। कहते हैं कि इन नौ में से एक भक्ति भी किसी में हो तो वो मुझे अतिशय प्रिय हो जाता है। फिर तुम्हारे भीतर तो ये नौ की नौ भक्तियां हैं। योगियों को भी जो गति दुर्लभ है, वो भीलनी शबरी को सुलभ हो जाती है।

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प्रभु श्री राम शबरी को भक्ति के धरातल पर योगियों से भी ऊपर प्रतिष्ठित करते हैं. ऐसी रामकथा में स्वामी प्रसाद मौर्य को केवल एक चौपाई दिखाई दी। वह भी समुद्र का कथन है। बसपा प्रमुख मायावती ने स्वामी प्रसाद के शरारती बयान का सटीक बयान दिया है। इस बयान के कुछ घण्टों के बाद उन्हें सपा ने राष्ट्रीय महासचिव के पद से पुरस्कृत किया। इससे इससे पार्टी हाई कमान भी मायावती के निशाने पर आ गया है। उन्होने समाजवादी पार्टी को संविधान की अवहेलना ना करने की चेतावनी दी है। कहा कि भारतीय संविधान है, जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव आम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी-एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है। अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे और न ही संविधान की अवहेलना करे।

गेस्ट हाउस कांड का याद दिलाते हुए मायावती ने कहा कि सपा प्रमुख लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस की घटना को भी याद कर अपने गिरेबान में जरूर झांककर देखना चाहिए। जब मुख्यमंत्री बनने जा रही एक दलित की बेटी पर सपा सरकार में जानलेवा हमला कराया गया था। वैसे यह देखना दिलचस्प है कि राम चरित मानस की निंदा कर कौन रहा है। वह तेज आवाज में अपनी बात रखने में माहिर हैं। बयान वीरों की श्रेणी में हैं. बिल्कुल विपरीत धाराओं के राजनीतिक खेमों में अपने को खपा लेते हैं। शायद इसी विशेषता के चलते पहले बसपा और भाजपा के बाद सपा ने उन पर विश्वास जताया है। बसपा और भाजपा सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे। सपा में भी इसी उम्मीद से गए होंगे। लेकिन इस बार मौसम का मिजाज समझने में विफल रहे। विधानसभा चुनाव हारे तो विधान परिषद में भेजे गए। राम चरित मानस पर विवादित बयान दिया। कुछ ही दिन में राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए।

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विडंबना यह कि उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में इसी पार्टी पर ही सर्वाधिक हमले किए थे. सपा संस्थापक पर बेहिसाब अमर्यादित बयान देते रहे। अखिलेश यादव को अब तक का सर्वाधिक विफल मुख्यमन्त्री क़रार दिया था। जिस पार्टी में रहे उसके अनुरूप अंदाज बदलते रहे। बसपा में थे तो बहिन जी की वंदना करते रहे। भाजपा में आए तो साँस्कृतिक राष्ट्रवाद का रंग दिखाई दिया। जिस पार्टी में रहे, उसके प्रति रहम दिल रहते हैं। शेष दो पार्टियों को सांप नाथ और नाग नाथ घोषित करते रहे। भाजपा सरकार में मंत्री रहे तो सपा को निशाने पर रखा। ऐसे लोगों के लिए विचारधारा वस्त्रों की भांति होती है, जिन्हें कभी भी बदला जा सकता है। ये खुद नहीं जानते कि कब और कहां इनका दम घुटने लगेगा, कब इनकी घर वापसी होगी, कब ये अपना घर छोड़ देंगे, आदि। ऐसे प्रत्येक अवसर के लिए इनके पास बयान तैयार रहते हैं। इनके माध्यम से अपनी मासूमियत छिपाने का प्रयास किया जाता है।

इनको लगता है कि इनकी सभी बातों पर जनता विश्वास करेगी। ऐसा लगता है कि गरीबों, वंचितों, किसानों, दलितों, पिछड़ों का इनसे बड़ा कोई हमदर्द नहीं है। इस कारण ये सदैव बेचैन रहते हैं। इसके लिए बार बार पार्टी बदलने का कड़वा घूंट इन्हें पीना पड़ता है। ऐसे लोगों में विपरीत ध्रुवों को नाप लेने की क्षमता होती है। जिस पार्टी में जब तक रहते हैं, उसका गुणगान करते है। उसके नेतृत्व में आस्था व्यक्त करते हैं। उसकी नीतियों पर न्योछावर हो जाते हैं। विरोधी पार्टी पर दलित, वंचित, पिछड़ा, गरीबों किसानों की उपेक्षा का आरोप लगाते है। इधर पार्टी बदली,उधर बयान को घुमा दिया। इसके साथ ही दूसरी पार्टी गरीब, वंचित, दलित, पिछड़ा, किसान विरोधी घोषित हो जाती है। कई बार उनका यह ज्ञान पांच वर्ष तक सत्ता भोग के बाद जागृत होता है।

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उन्हें चुनाव के ठीक पहले क्यों लगा कि सरकार जनविरोधी थी। पांच वर्ष कैबिनेट का सुख भोगा. फिर कहा कि दलितों, पिछड़ों, किसानों,बेरोजगारों, नौजवानों एवं छोटे,लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैया के कारण उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे रहा हूं। यदि इनकी बात पर एक पल को विश्वास करें तो यह भी मानना पड़ेगा कि इसके लिए वह बराबर के दोषी हैं। मंत्री रहते हुए वह अपने दायित्व का उचित निर्वाह नहीं कर सके। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इतनी प्रतिकूल परिस्थिति थीं तो वह पांच वर्ष खामोश क्यों रहे। इस्तीफा देने के कुछ समय पहले उन्होंने अपने मन्त्रालय से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण बयान दिया था. उनका कहना था कि पिछली सरकार में छत्तीस लाख श्रमिकों का पंजीयन व सात लाख को योजनाओं का लाभ मिला था।

योगी सरकार ने साढ़े चार साल में एक करोड़ बीस लाख श्रमिकों का पंजीयन कराते हुए सतहत्तर लाख श्रमिकों को योजनाओं का लाभ दिलाया है। कोरोना काल में सरकार श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों के साथ खड़ी रही। मुफ्त राशन व धन लगातार वितरित हो रहा है। सामूहिक विवाह के आयोजन फिर शुरू होने जा रहे हैं। प्रदेश सरकार श्रमिक एवं उनके परिवार के कल्याण के लिए तथा उनके जीवन स्तर को उन्नतिशील बनाने का प्रयास कर रही है। इसके लिए श्रम विभाग द्वारा श्रमिकों के लिए अठारह कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इस प्रकार के नेताओं के किस रूप और किस बयान पर विश्वास किया जाए।

वस्तुतः श्रीराम कथा के प्रत्येक प्रसंग आध्यात्मिक ऊर्जा है। भक्ति के धरातल पर पहुंच कर ही इसका अनुभव किया जा सकता है। महर्षि बाल्मीकि और तुलसी दास सामान्य कवि मात्र नहीं थे। ईश्वरीय प्रेरणा से ही इन्होंने रामकथा का गायन किया था। इसलिए इनका काव्य विलक्षण हो गया। साहित्यिक चेतना या ज्ञान से कोई यहां तक पहुंच भी नहीं सकता। रामायण व रामचरित मानस की यह दुर्लभ विशेषता है। प्रभु बालक रूप में है,वह वनवासी रूप में है, वह राक्षसों को भी तारने वाले है। उनका अवतार अद्भुत है।

जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल। चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥

उस समय चर अचर सहित समस्त लोकों में सुख का संचार हुआ था। गोस्वामी जी लिखते है- रामकथा सुन्दर कर तारी, संशय बिहग उड़व निहारी। प्रभु श्री राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अवतार लिया था। श्री रामकथा आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करने वाली है। गोस्वामी तुलसीदास की चौपाइयों में मंत्र जैसी शक्ति है-

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भवभय दारुणं।

प्रभु जब मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं, तब भी आदि से अंत तक कुछ भी उनसे छिपा नहीं रहता। वह अनजान बनकर अवतार का निर्वाह करते हैं। भविष्य की घटनाओं को देखते हैं, लेकिन प्रकट नहीं होते देते। इसी की उनकी लीला कहा जाता है। भारत ही नहीं, विश्व के पैंसठ देशों में रामलीला होती है।

जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई॥
भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥

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