लखनऊ. पूर्व चुनाव आयुक्त डा0 एस वाई कुरैशी ने ईवीएम मशीनों की गुणवत्ता और सत्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले नेताओं को स्पष्ट किया है कि ईवीएम मशीनों का प्रयोग पिछले 20 वर्षों से किया जा रहा है जिसमे गड़बड़ी की कोई गुंजाईश ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि यदि ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी की आशंका होती तो सत्तारूढ़ दल हमेशा चुनाव जीतकर सत्ता में बने रहते। ईवीएम
मशीने सरकार के अधीन होती है और इस पर काम करने वाले कर्मचारी भी सरकारी ही होते है।मतदान से पूर्व पोलिंग एजेंट के सामने इसकी पूरी टेस्टिंग की जाती है और मतदान के बाद पोलिंग एजेंट के सामने ही इसे सील बंद किया जाता है।मतगणना शुरू होने से पूर्व इसे पोलिंग एजेंट्स को दिखाया भी जाता है,अतः ऐसी स्थिति में मशीनों में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईवीएम मशीनों के प्रयोग से पूर्व कई स्तरों पर इसकी जाँच कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि यह तकनीकि दृष्टि से सही हैं। ज्ञात हो की भारत के अलावा दुनिया के अन्य कई देशो में भी भारतीय ईवीएम मशीनों का प्रयोग किया जाता है और कही से किसी प्रकार की कोई शिकायत आज तक नहीं मिली है।
मालूम हो कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव के अप्रत्यशित नतीज़ों से आहत होकर आरोप लगाया था कि ईवीएम मशीनों को इस प्रकार सेट किया गया है कि उसमें कोई भी बटन दबाने पर वोट भाजपा को ही जाता है।उत्तर प्रदेश के निःवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इसका समर्थन अनौपचरिक रूप से किया था।इस हास्यास्पद बयान पर देश के कुछ बुद्धजीवियो ने भी सहमति जताने का प्रयास किया था पर भजपा के प्रति सभी वर्गों और धर्मो की आस्था देखते हुऐ उन्होंने अपना मुँह बंद रखना ही उचित समझा। मायावती के आरोप को यदि सच भी मान लिया जाये तो इस प्रकार का प्रयोग पंजाब, मणिपुर या गोवा में क्यों नहीं किया गया, यह महत्वपूर्ण प्रश्न बनता है। यदि यह आरोप सही था तो क्या उन स्थानों की मशीने हाथी और साईकिल के निशान पर सेट थी,जहाँ बीएसपी या सपा के उम्मीदवार जीते है? शायद इसका जवाब बीएसपी या सपा के पास नहीं होगा।
एक समाचार पत्र के माध्यम से डा0 कुरैशी ने यह भी कहा कि जो पार्टिया हार जाती है वो इसी प्रकार के आरोप लगाती है।उत्तराखंड में भी इस प्रकार के आरोप,पराजित पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा लगाए जा रहे है । पहले बैलेट पेपर पर बेईमानी के आरोप लगते थे जिनमें सत्यता पाये जाने पर ईवीएम मशीनों को प्रचलन में लाया गया जिससे विगत 20 वर्षों से निष्पक्ष चुनाव संपन्न हो रहे है। हार की हताशा और निराशा में निष्पक्षता की कार्यवाही पर संदेह किया जाना ओछी राजनीति का प्रमाण है!