• 10 फरवरी से शुरू होने वाले एमडीए चक्र की तैयारी शुरू
• हाइड्रोसील और एमएमडीपी के निर्धारित लक्ष्य पूरा करेंगे
लखनऊ। प्रदेश में अब हर हाइड्रोसील मरीज का ऑपरेशन हो सकेगा। साथ ही हर फाइलेरिया मरीज को फाइलेरिया किट यानि मॉरबिटी मैनेजमेंट डिसिबेलिटी प्रीवेंशन (एमएमडीपी) अवश्य मिलेगी। इसके अलावा अभियान के दौरान फाइलेरिया की दवा सेवन का लक्ष्य शत प्रतिशत पूरा किया जाएगा। कुछ ऐसा ही निष्कर्ष निकला राज्यस्तरीय प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण (टीओटी) सत्र में। दो दिवसीय यह टीओटी 10 फरवरी से शुरू होने वाले एमडीए राउन्ड की तैयारी के क्रम में हुआ। इस मौके पर राज्यस्तरीय अधिकारियों ने फाइलेरिया के पूर्व अभियानों की समीक्षा की।
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डॉ एके सिंह, निदेशक, वीबीडी ने बताया कि फाइलेरिया एक गंभीर बीमारी है। यह जान तो नहीं लेती है लेकिन जीने भी नहीं देती है। प्रदेश में 50 जिलों में फाइलेरिया का प्रकोप बरकरार है। मर्ज की गंभीरता और मरीजों का दर्द समझते हुए फाइलेरिया से बचाव के लिए प्रभावित जिलों में साल में अभियान चलाकर एक बार फाइलेरिया रोधी दवा खिलाई जाती है। इसी अभियान में शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह आयोजन हुआ। साथ ही इस राज्यस्तरीय कार्यशाला में पुराने अभियान यानि मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) और आईवरमेक्टिन डीईसी एल्बेंडाजोल (आईडीए) की समीक्षा भी हुई।
डॉ वीपी सिंह, अपर निदेशक, मलेरिया एवं वीबीडी ने बताया कि वर्ष 2030 तक प्रदेश को फाइलेरिया मुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित है। किसी भी जिले को फाइलेरिया मुक्त घोषित करने के पहले ट्रांसमिशन एसेस्मेंट सर्वे (टास) किया जाता है। टास प्रक्रिया पूरी करने में कम से कम 4 वर्ष लगते हैं। यह टास तीन बार किया जाता है l उन्होंने कहा कि अभियान के दौरान बनने वाली टास्क फोर्स, ब्लॉक स्तर पर भी सक्रिय रहेगी। साथ ही अभियान की हर दिन रिपोर्टिंग करेगी। उन्होंने बताया कि बरेली में 16 जनवरी से और शेष 18 जिलों में 10 फरवरी से एमडीए राउन्ड शुरू हो रहा है। इसी क्रम में उन्होंने जिले से आए स्वास्थ्य अधिकारियों को जिला स्तरीय प्रशिक्षण 19 से 31 दिसंबर तक करवाने के निर्देश दिए हैं।
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डॉ लक्ष्मण सिंह, महाप्रबंधक, राष्ट्रीय कार्यक्रम ने योजना संबंधित वित्तीय प्रावधान पर प्रकाश डाला। उन्होंने जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों के वित्त संबंधी सवालों के जवाब भी दिए। सत्र के अंत में सीएस प्रो एप का प्रेक्टिकल भी कराया गया। कार्यशाला में मुख्य तौर से एमडीए की तैयारी के लिए की जाने वाली गतिविधियों पर विस्तार से चर्चा हुई। इसमें माइक्रो प्लान बनाना, प्रशिक्षण देना, निगरानी रखना, कमियां चिन्हित करना और उसको दूर करना शामिल है। इसके अलावा कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मीडिया व सोशल मीडिया से मदद लेना, रोगी सहायता नेटवर्क सदस्यों को सामुदायिक जागरूकता गतिविधियां शामिल करना प्रमुख है।
इस मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज (जीएचएस), पाथ, पीसीआई इंडिया और सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के प्रतिनिधि शामिल हुए।
यह जिले हुए एकत्र
टीओटी में 19 जिलों आजमगढ़, बांदा, अंबेडकरनगर, अयोध्या, बाराबंकी, जालौन, अमेठी, जौनपुर, पीलीभीत, बरेली, बलिया, चित्रकूट, हमीरपुर, मऊ, भदोही, शाहजहांपुर, सोनभद्र और लखनऊ के स्वास्थ्य अधिकारी शामिल हुए।