● 5 जनवरी 1921 की बैठक में अपने किसानो की गिरफ्तारी से नाराज थे किसान
रायबरेली। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा। वर्षों पहले 7 जनवरी रायबरेली के इतिहास में किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गई थी। जो मुंशीगंज गोलीकांड के नाम से चर्चित है। यूं तो आंदोलन बहुत से हुए लेकिन रायबरेली का किसान आंदोलन ने 1921 में अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत में कील ठोकने का काम किया था । इस किसान आंदोलन की रायबरेली में ही नहीं बल्कि भारत की आजादी में भी अहम भूमिका रही। इस किसान आंदोलन की कड़ियां दीनशाह गौरा विकासखंड के भगवंतपुर चंदनिहां गांव से जुड़ी हैं।
गौरतलब है किस गांव के तालुकेदार त्रिभुवन बहादुर सिंह के अत्याचारों से त्रस्त होकर पूरे खुशहाल मजरे भगवंतपुर चदनिहां निवासी पंडित अमोल शर्मा के नेतृत्व में 5 जनवरी 1921 को भगवंतपुर चंदनिहां में किसानों की बैठक की गई। जहाँ नाराज किसानों ने तालुकेदार त्रिभुवन बहादुर सिंह के महल को घेर लिया। हजारों की संख्या में किसानों से घिरे महल को देखकर भयभीत तालुकेदार ने इसकी सूचना तत्कालीन जिलाधिकारी ए.जी. शैरिफ को दी जिस पर जिलाधिकारी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे और किसान सभा के नेताओं में अवध प्रांत के अग्रणी पंडित अमोल शर्मा बाबा जानकी दास वह बद्री नारायण सिंह को समझौते के लिए महल के अंदर बुलवाया गया । वहीं से उन्हें गिरफ्तार कर रायबरेली जेल भेज दिया गया। जहां से उन्हें तत्काल लखनऊ जेल भेज दिया गया। इस समय किसानों को अपना योगदान देने वाले बाबा रामचंद्र जी नहीं थे। फिर भी किसान अपने लोकप्रिय नेताओं को छुड़ाने के लिए रायबरेली की ओर पैदल ही चल पड़े और 6 जनवरी 1921 की शाम तक मुंशीगंज पहुंच गए।
अपने नेताओं की गिरफ्तारी खबर पर अवध प्रांत के किसानों में खलबली मच चुकी थी चारों ओर से गरीब मजदूर व किसान रायबरेली आना शुरू हो गए। रायबरेली को चारों ओर से गिरता देख बौखलाए तत्कालीन जिलाधिकारी ने उन्हें रोकने के प्रयास शुरू कर दिए और बैल गाड़ियों को रास्ते में लगाकर मुंशीगंज पुल को जाम कर दिया गया। किसानों की भीड़ ने किसानों की भीड़ ने उग्र रूप को देखकर अंग्रेज पुलिस ने किसानों को सई नदी पर ही रोक दिया। इसकी सूचना मार्तंड वैद्य ने पंडित मोतीलाल नेहरु को तार से भेज कर दी। उन्होंने इस घटना से अवगत कराते हुए उन्हें वहां आने का आग्रह भी किया। उनकी अनुपस्थित में वह तार पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिला और वह तुरंत चल पड़े।
इधर 7 जनवरी 2021 की सुबह एक सरदार वीरपाल सिंह की गोली का शिकार हुए किसान बदलू गोड़िया जैसे ही धराशाई होकर जैसे ही गिरा उसे एक आदेश मानकर अंग्रेज सिपाहियों ने निहत्थे किसानों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में सड़क से लेकर सही नदी तक का पानी किसानों के खून से लाल हो गया। इधर गोलीबारी शुरू हो चुकी थी उधर मुंशीगंज पहुंच रहे श्री नेहरू को रायबरेली में ही रोक लिया गया। इस गोलीकांड में हजारों किसान शहीद हो गए।
उधर पकड़े गए किसानों को ₹100 का अर्थदंड व 6 माह का सश्रम सजा सुनाई गई। इस गोलीकांड की याद में प्रतिवर्ष 7 जनवरी को किसानों के पुरोधा पंडित अमोल शर्मा भगवंतपुर चदनिहां घाट से जल लेकर शहीदों को नमन करने आते थे। उसके बाद उनके दत्तक पौत्र शिव बाबू शुक्ला ने वर्ष 1998 में जलांजलि की परंपरा को आरंभ किया। वे बताते हैं बाबा की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम कुछ बुजुर्गों के साथ पैदल शहीद स्थल मुंशीगंज पहुंच कर यह यात्रा शुरू की थी। इसी तरह 2000 में साइकिल से 2001 से 2004 तक ट्रैक्टर से पहुंचे वर्ष 2005 से प्रशासन द्वारा एक बस उपलब्ध कराई गई जो आज भी जारी है।
रिपोर्ट-दुर्गेश मिश्र