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अयोध्या में त्रेता युग की झलक

    डॉ दिलीप अग्निहोत्री

भारत के साँस्कृतिक राष्ट्रवाद का क्षेत्र बहुत व्यापक रहा है। आज भी दर्जनों देशों में रामलीला का मंचन होता है। त्रेता युग में भी दीपोत्सव का प्रकाश और उत्साह अयोध्या तक सीमित नहीं रहा होगा। योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से अयोध्या का दीपोत्सव वैश्विक प्रसंग बन चुका है। अनेक देशों में प्रचलित रामलीला का यहां मंचन होता है। इस नगरी में भारत के साँस्कृतिक राष्ट्रवाद के दर्शन होते है।

इस बार आठ देशों की रामलीला का मंचन हुआ। बड़ी संख्या में विदेशी अतिथि दीपोत्सव में सहभागी हुए। वस्तुतः व्यक्ति क्षमता सीमित होती है। वह अपने ही अगले पल की गारंटी नहीं ले सकता। इसके विपरीत नारायण की कोई सीमा नहीं होती। वह जब मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं, तब भी आदि से अंत तक कुछ भी उनसे छिपा नहीं रहता। वह अनजान बनकर अवतार का निर्वाह करते हैं। भविष्य की घटनाओं को देखते हैं, लेकिन प्रकट नहीं होते देते। इसी की उनकी लीला कहा जाता है। रामलीला इसी भाव की रोचक प्रस्तुति होती है।

समय बदला, तकनीक बदली ,लेकिन सदियों से रामलीला की यात्रा जारी है। भारत ही नहीं, विश्व के पैंसठ देशों में रामलीला होती है। प्रत्येक स्थान की अपनी विशेषता होती है। रामलीला के भी अनगिनत रूप हैं। यह इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देशों में भी खूब प्रचलित है। वहां लोग मजहबी रूप से मुसलमान हैं, लेकिन सांस्कृतिक रूप में अपने को श्री राम का वंशज मानते हैं। यह मॉरीशस, त्रिनिदाद, फिजी, आदि अनेक देशों में प्रचलित है, जहाँ भारतीय श्रमिक राम चरित मानस की छोटी प्रति को पूंजी के रूप में लेकर गए थे।

रामलीला उनकी भावनाओं से जुड़ी रही। भारत में रामलीला के विविध रूप रंग हैं। रामायण एक अद्भुत ग्रंथ है। इसे लोग कथा, गीत, प्रवचन, कहानी तथा अन्य किसी न किसी रूप में प्रदर्शित कर आनन्दित होते हैं। राम कथा सुनना तथा देखना सागर में डुबकी लगाने जैसा होता है। विश्व की अनगिनत भाषाओं में राम कथा का लेखन हुआ है। रामलीला लोक नाटक का एक रूप है। यह गोस्वामी तुलसीदास की कृति रामचरितमानस पर आधारित है।

रामलीला का मंचन तुलसीदास के शिष्यों ने सबसे पहले किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि उस दौरान काशी नरेश ने रामनगर में रामलीला कराने का संकल्प लिया था, तभी से रामलीला का प्रचलन देशभर में शुरू हुआ। नृत्य की विभिन्न शैलियों में भी रामलीला होती है। इन सबका भाव एक है लेकिन प्रस्तुति- विधि अलग अलग है। श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। उनकी कथा का मंचन मनोरंजन के साथ ही प्रेरणादायक होता है।

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