हम अपने आस-पास की दुनिया पर प्रभाव डाले बिना एक दिन भी नहीं जी सकते हैं और हमारे पास एक विकल्प है कि हम किस तरह का प्रभाव उत्पन्न करते हैं। आज हम उन सभी के लिए प्रार्थना करते हैं जो किसी भी तरह से देश की सेवा कर रहे हैं। आप हमें उम्मीद बंधाते हैं। आप हमें ऐसे ही नयी ऊँचाइयों तक उठाते रहें जिससे हम पुनः ऊँची उड़ान भर सकें। स्वामी चिन्मयानंद जी कहते हैं कि जब भी बुद्धि वस्तुओं को सही ढंग से नहीं देख पाती है, तो हमारा दिमाग गलत चीजों को प्रक्षेपित करता है। जैसे अंधकार में किसी खंबे को अज्ञानता वश मैं भूत समझत लेता हूं और इस कारण मुझे दुख होता है। प्रकाश डालने पर भूत की आशंका खंबे के अनुभव में समाप्त हो जाती है। अपने स्व में वास्तविकता पर पड़ा यह आवरण मुझे एक सीमित प्राणी होने का भ्रम देता है, और यही भ्रम, असुरक्षा बोध बाद में आंतरिक और बाहरी संघर्षों, पीड़ा की ओर ले जाता है। फलस्वरूप भीतर या बाहर कोई शांति नहीं रहती। भगवान कहते हैं अर्जुन, उस उच्चतर प्रकृति को महसूस करो, जो उच्च अथवा कुछ अलग नहीं है परंतु यह तो आपकी अपनी ही उच्च प्रकृति है। निम्न प्रकृति के साथ तादात्म्य न करें और इस तरह पीड़ित न हों बल्कि अपने स्वयं के उच्च स्वभाव तक उठें।
कृष्ण कहते हैं ‘नाहं प्रकाशः सर्वस्य’। भले ही मैं, आपका अपना उच्च स्वभाव, हर एक के हृदय में हूं, लेकिन हर कोई मुझे पहचान नहीं सकता। क्यों? ’योगमायासमावृतः’। व्यक्ति योग-माया, वासनाओं से आच्छादित है और वासनाओं से जुड़कर उसकी मन और बुद्धि बाहर की ओर हो गई है। इच्छाऐं एक के बाद एक आ रही हैं, व्यक्ति अपने स्वयं के बहिर्मुखीपन से मोहित है और इसलिए यह अंतर्दृष्टि हर किसी के पास उपलब्ध नहीं है। ईश्वर इतना पास और फिर भी बहुत दूर।
स्वामी जी कहते हैं ‘मूढोऽयं नाभिजानाति लोको’ – इस जगत में ऐसे लोग जिन्होंने चिंतन से अपनी स्थूल बुद्धि सूक्ष्म नहीं की है, ईश्वर को नहीं समझ सकते हैं। ‘मामजमव्ययम्’ वह अपरिवर्तनीय है, कालातीत है, वह पैदा नहीं हुआ है लेकिन उससे सब कुछ पैदा हुआ है। जैसे सागर में लहरें पैदा होती है परंतु सागर कभी पैदा नहीं होता।
यह हर किसी की गलती नहीं है कि हम उसे पहचानने में सक्षम नहीं हैं। वासना इतने शक्तिशाली होते हैं कि अगर हम ध्यान और सब कुछ शांत करने की कोशिश करते हैं, तो हम खुद को ‘गहरी निद्रा’ की स्थिति में डुबो देते हैं। भले ही हमने स्थूल और सूक्ष्म शरीर से खुद को वापस ले लिया हो, हम ‘कारण शरीर’ में कूद जाते हैं। हम इसे पार नहीं कर सकते क्योंकि इस समय यह बहुत शक्तिशाली है। इस प्रकार, मेरी अनंत प्रकृति दुनिया के मोहितों द्वारा नहीं समझी जाती है।
भगवान कहते हैं कि मैं आप में से प्रत्येक के बारे में सब कुछ जानता हूं क्योंकि मैं वह चेतना था, जिसे प्रकाशित करने पर आप चेतन हो गए। मैं, चेतना के रूप में, आपके सभी अनुभवों को प्रकाशित करता हूं, चाहे भूत, वर्तमान और भविष्य। आप एक निष्क्रिय, असंवेदनशील चीज नहीं हैं। आप एक गतिशील, संवेदनशील प्राणी हैं। सभी में यह ‘जीवंत सार’ है कि जिसे हम सत्य या वास्तविकता कहते हैं। भगवान कहते हैं कि इस प्रकार मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं, लेकिन मुझे कोई नहीं पहचानता।
स्वामी जी कहते हैं कि हम वासना और उसके कार्यों – इच्छाएं, विक्षेप, कार्य, संपत्ति, सुरक्षा की भावना, अस्तित्व की भावना आदि के कारण बहुत अधिक भ्रमित हैं । हम विचारों में इतने बंधे हुए हैं कि भले ही भगवान हर समय हमारे साथ हैं, चाहे हम कुछ भी कर रहे हों, भले ही ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हों, वह हमारे साथ है और हमारी मदद करता है।
आज के ज्ञान यज्ञ के प्रारंभ में चेन्नई स्थित चिन्मय विद्यालयों – टेलर्स रोड, अन्नानगर, हायर सेकेण्डरी स्कूल, विरूगम्बक्कम सीनियर सेकेण्डरी स्कूल के साथ वी. जी. एन. अवाडी के छात्रों ने ‘‘तपोवन षटकम्’’ तथा चिन्मय विद्यालय कोझीकोडे के छात्रों ने ‘तपोवन आरती’ का गायन किया। वेदांत पाठ्यक्रम बैच – 18 के साधकों द्वारा अध्याय 7 भगवत गीता के श्लोकों का उच्चारण किया गया। साथ ही चिन्मय विश्वविद्यापीठ, चेन्नई का एक परिचयात्मक वीडियो भी दिखाया गया। यह ऑनलाइन वीडियो गीता ज्ञान यज्ञ यूट्यूब के चिन्मय चैनल पर 25 मई, 2021 तक प्रतिदिन शाम 7ः15 बजे से उपलब्ध रहेगा।