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सरकारों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं…

कोई भी युद्ध यदि लंबा खींच तो उसमें शामिल सेनाओं के थकने का अंदेशा गहरा जाता है। जंग में शामिल कमांडरों की एक रणनीति प्रतिरक्षी को थका डालने की भी होती है। लेकिन कोरोना से मोर्चा लेती सरकारों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है।

अब देश को व्यापक जांच, ज्यादा से ज्यादा आइसोलेशन और तेजी से व्यापक टीकाकरण की नीति को ही अपनाना होगा।

बल्कि उनकी जरा सी उदासीनता या शिथिलता से लाभ की स्थिति में सिर्फ और सिर्फ वायरस होगा, जो ना सिर्फ अलग-अलग क्षेत्रों को अपनी जद में समेटेगा। बल्कि नए-नए रूपों में भी लोगों की जान के लिए खतरा बनता रहेगा। पिछले 01 साल में देश- दुनिया में इंसानियत ने कई गुना नुकसान उठाया है। इसलिए इससे लड़ाई में किसी किस्म की कोताही स्वीकार नहीं हो सकती। देश के कुछ राज्यों में कोरोना की नई लहर के गंभीर रूप लेते ही कई सख्त पाबंदीया फिर से लौट आई हैं। तो वहीं दूसरी तरफ ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि कई राज्यो में पर्याप्त जांच नहीं हो रही है और कहीं-कहीं अस्पताल में बेड की कमी पड़ गई है।

कल ही महाराष्ट्र के नागपुर सरकारी अस्पताल की एक तस्वीर मीडिया में वायरल हुई थी, जिसमें एक ही बेड पर दो कोरोना मरीज लेटे हुए थे। दिल्ली में भी कुछ निजी अस्पतालों में आईसीयू में बेड कम पड़ जाने के समाचार आ रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब केंद्र समेत तमाम राज्य सरकारे कोरोना की नई लहर की आशंकाओं से वाकिफ थी और इसे नियंत्रित करने को लेकर निरंतर सक्रिय भी रही है।

पिछले 01 साल में स्वास्थ्य ढांचे में बड़ा सुधार है। मगर कहीं ना कहीं अब इन मौजूदा इंतजाम में बेहतर तालमेल की जरूरत है।

महाराष्ट्र से लगातार आ रही रिपोर्ट में हालात बता रहे हैं, की चुनौती कितनी मुश्किल है। वहां रोज नए मामले 30,000 के पार चले गए हैं। देश के कुल नए मामलों में आधे से अधिक अकेले महाराज से सामने आए हैं। पुनः एक बार लॉकडाउन महाराष्ट्र सरकार कुछ और इलाकों में उनके विकल्प पर विचार कर रही है। लेकिन इसका कितना बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है, राज्यों के कोषागार इसकी गवाही दे रहे हैं। इसलिए एक बार फिर लॉक डाउन का विकल्प अंतिम होना चाहिए। इसी मोर्चे पर हम लगातार पीट रहे हैं।

एक तरफ तो हम समान नागरिकों से मास के पहनने और शारीरिक दूरी बनाने की अपेक्षा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग हजारों की भीड़ को संबोधित करने को लालायित हैं। यही बिहार विधानसभा चुनाव में दिखा, यही नजारा अभी असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु में दिख रहा है। इसलिए देश को व्यापक जांच ज्यादा से ज्यादा आइसोलेशन और तेजी से व्यापक टीकाकरण की नीति को ही अपनाना होगा। देश के जिन 10 जिलों में सबसे ज्यादा सक्रिय मामले हैं। वहां युद्ध स्तर पर वायरस जांच और टीकाकरण अभियान चलाने की जरूरत है।

 शाश्वत तिवारी

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