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समाज में बिखराव और अलगाव के विवादों को जन्म देना RSS का पुराना इतिहास: सुरेन्द्रनाथ त्रिवेदी

लखनऊ। राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश प्रवक्ता सुरेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने कहा कि भाजपा के मूल और स्थायी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपना राजनैतिक एजेण्डा छिपाने में महारत रखता है। देश की आजादी की लड़ाई से लेकर अब तक अपना एजेण्डा पिछले दरवाजे से लागू कराना अथवा उस सन्दर्भ में अपने क्रियाकलापों को संचालित करना आरएसएस का विशेष गुण रहा है। सफलता प्राप्त हो जाने के बाद अपनी दावेदारी को भी छिपते छिपाते हुये प्रस्तुत करना संगठन की कूटनीति रही है। स्वयं को सामाजिक और देशभक्त संगठन से महिमा मण्डित करना और आम चुनावों में खुलकर दल “विशेष” के पक्ष में वोट मांगना इस संगठन की कूटनीति का अहम हिस्सा कहा जा सकता है।

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चिर प्रतीक्षित अयोध्या के राम मन्दिर आन्दोलन का शुभारम्भ अखाडा परिषद के द्वारा किया गया और विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा उसका विस्तार किया गया परन्तु मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पष्चात समाज में आरएसएस का प्रत्येक सदस्य राम मन्दिर आन्दोलन की सफलता का श्रेय स्वयं को देता है।

श्री त्रिवेदी ने कहा कि राम मन्दिर आन्दोलन की विजयश्री के पश्चात अखाड़ा परिषद द्वारा कशी और मथुरा का विवाद आगे बढ़ाने का प्रयास प्रारम्भ हो चुका है जबकि मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में स्पष्ट लिखा है कि अन्य सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 जैसी ही रहेगी। आरएसएस इस मुददे को भी अन्दर से हवा देने और राजनीतिक स्वार्थ हासिल करने के लिए अपनी छिपी हुयी रणनीति का पुनः परिचय दे रहा है। उन्होंने कहा कि समाज में बिखराव और अलगाव के विवादों को जन्म देना इस संगठन का इतिहास रहा है। देशभक्त कहने वाले संगठन के किसी भी सदस्य अथवा पदाधिकारी ने स्वतंत्रता संग्राम में किसी भी बलिदान का परिचय नहीं दिया है।

रालोद प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि मा. सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के फलस्वरूप देश की गंगा जमुनी संस्कृति को किसी भी प्रकार धक्का नहीं लगा है और न ही समाज में हिन्दू मुस्लिम जैसी जहरीली भावनाओं को कोई हवा मिली है लेकिन अब आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी मिलकर केवल हिन्दू मुस्लिम के बिखराव और भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के साथ साथ सामाजिक ताना बाना तहस नहस करने के एजेण्डे पर ही काम कर रही है जिसका प्रमाण काषी और मथुरा जैसे विवाद का पुर्नजन्म होना है।

इस विवाद के द्वारा स्पष्ट रूप से मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अवमानना दृष्टिगोचर हो रही है। उन्होंने देश के प्रबुद्ध नागरिकों और समाज सुधारकों से अपेक्षा की है कि आरएसएस और भाजपा के षड़यंत्र से जनता को सावधान करने में हर सम्भव प्रयास करें ताकि देश की एकता और अखण्डता को तार तार होने से बचाया जा सके।

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