(डॉ दिलीप अग्निहोत्री)। पूर्व राज्यपाल राम नाईक (Ram Naik) को राष्ट्रपति द्वारा पद्म विभूषण से सुशोभित किया गया। यह उनकी विशिष्ट समाजसेवा का यथोचित सम्मान है। उनके अनेक अभिनव कार्य इतिहास में दर्ज हैं। राज्यपाल के रूप में उनके कार्यों से तो एक नया अध्याय जुड़ा है। भारत में मजबूत संवैधानिक लोकतंत्र है। लेकिन राजभवन का स्वरूप और रचना उसे लोक से दूर करती है।
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प्रायः राज्यपालों ने अपने को इसी व्यवस्था में ही सीमित रखा। पहले मेरी भी यही धारणा थी। किंतु उत्तर प्रदेश में राम नाईक के कार्यकाल ने राजभवन के संबन्ध में प्रचलित मान्यता को दूर किया। यह सब उन्होंने संविधान के दायरे में रहकर ही किया है।ब दलाव की बयार का मुझे स्वयं अनुभव हुआ था।
राम नाईक ने बाईस मई दो हजार चौदह को राज्यपाल पद की शपथ ली थी। इसके कुछ महीने बाद मेरे पास एक फोन आया। अपरिचित मोबाइल नम्बर था। मैंने फोन उठाया, उधर से आवाज आई ”मैं राम नाईक बोल रहा हूँ”, मैं आश्चर्यचकित था, राज्यपाल और राजभवन के सम्बंध में मेरे विचार इसके बिल्कुल अलग थे। मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति को राज्यपाल का फोन, मेरे लिए अद्भुत पल था। मैंने प्रतिउत्तर में प्रणाम किया। उन्होंने एक हेडिंग बताई, वह मेरे लेख की हेडिंग थी, यह मेरे लिए दूसरा आश्चर्य था। उन्होंने कहा ”यह लेख पढ़ा, अच्छा लगा, सोचा आपसे बात की जाए, किसी दिन आकर मिलिए”।
उनकी इस संक्षिप्त फोन वार्ता से मुझे उनकी कार्यशैली को समझने का अवसर मिला। इसके पहले मेरा उनसे कोई परिचय नहीं था। मेरे जैसे साधरण व्यक्ति को राम नाईक ने फोन किया। इस आधार पर मैने उनके राजनीतिक और सामाजिक जीवन का पूरा अनुमान लगा लिया। आमजन से जुड़ाव और सतत संवाद ने ही उन्हें महाराष्ट्र का जननेता बनाया।
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मुम्बई के बारे में कहा जाता है कि वहां पड़ोसी भी एक दूसरे को ठीक से नहीं जानते। उसी मुम्बई में वह तीन बार विधायक और पांच बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल राज्य मंत्री, फिर पेट्रोलियम मंत्री बने। उसमें भी विकास का कीर्तिमान बनाया। राज्यपाल बने,तो अपनी इसी कार्यशीली के चलते एक नया संवैधानिक अध्याय रच दिया। पांच वर्ष में तीस हजार लोगों से मुलाकात की। पत्रचार का सिलसिला अनवरत चलता रहा।
चरैवेति चरैवेति पुस्तक लिखी, तो सोलह संस्करण के साथ उसका भी कीर्तिमान बन गया। वस्तुतः यह चरैवेति चरैवेति ही उनका जीवन दर्शन रहा है। इसी पर वह सतत अमल करते रहे। चरैवेति चरैवेति के प्रारंभ में वह इस श्लोक और इसके अर्थ का उल्लेख भी करते है। ऐतरेय की सूक्तियों में एक जगह उल्लेख है कि एक राजा को आत्मोन्नति का बोध कराने हेतु इंद्र देवता ने मनुष्य का रूप धारण किया था। अच्छे भाग्य का अधिकारी बनने के लिए सतत चलते रहने का उपदेश देते हुए इंद्र कहते है…
आस्ते भग आसिनस्य
ऊर्ध्वंम तिष्ठति तिष्ठतः
शेते निपद्य मानस्य
चराति चरतो भग:!
चरैवेति चरैवेति!!
अर्थात बैठे हुए व्यक्ति का भाग्य बैठ जाता है। खड़े हुए व्यक्ति का भाग्य वृद्धि की ओर उन्मुख होता है। सो रहे व्यक्ति का भाग्य भी सो जाता है। किन्तु चलने वाले व्यक्ति का भाग्य प्रतिदिन बढ़ता जाता है। अतः तुम चलते रहो !चलते रहो!! उदहारण के रूप में इंद्र आगे कहते है…
चरनवो मधुविन्दति
चरनस्वा दुमुदुम्बरम
सूर्यस्यपश्य श्रेमाण
यो न तन्द्रयते चरश
चरैवेति ! चरैवेति!!
अर्थात मधु मक्खियां घूम घूम कर शहद जमा करती है। पक्षी मीठे फल खाने के लिए सदा भृमण करते है। सूरज कभी सोता नहीं, चलता रहता है। इसलिए जगतवन्दनीय है। अतः है मानव तुम भी चलते रहो! चलते रहो !!
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राम नाईक को ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया। ऐसे अनेक लेखक है जिन्हें केवल एक पुस्तक के कारण अपार ख्याति मिली। इस सूची में राम नाईक का नाम भी शामिल हुआ। उनकी पुस्तक चरैवेति चरैवेति को उल्लेखनीय चर्चा मिल रही है। साहित्य का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। इस पुस्तक ने साहित्य की संस्मरण विधा में गौरवशाली स्थान बनाया है। स्वतंत्रता के बाद राजनीति से जुड़े लोगों की किसी पुस्तक के डेढ़ दर्जन भाषाओं और ब्रेल लिपि की तीन भाषाओं के संस्करण प्रकाशित नहीं हुए। इतना ही नहीं इसके विभिन्न संस्करणों के लोकार्पण समारोहों और उनमें राष्ट्रपति से लेकर विशिष्ट व साहित्य प्रेमी जनों की भागीदारी का भी कीर्तिमान बना।
दिलचस्प यह कि राम नाईक अपने को एक्सिडेंटल राइटर ही मानते है। उनका कहना है कि वह लेखक नहीं है। शायद राजनीति और समाजसेवा में उन्हें इसके लिए समय भी ना मिला हो। मराठी के दैनिक साकाल ने उनसे संस्मरण लिखने का आग्रह किया था। इसमें उनके जो संस्मरण प्रकाशित हुए, चरैवेति चरैवेति उन्हीं का संकलन है। राम नाईक अपने को भले ही एक्सिडेंटल राइटर मानते हों, लेकिन पुस्तक की विषयवस्तु, भाषा शैली आदि सभी बहुत स्तरीय और रोचक है। दृष्टिबाधित दिव्यांगजन हेतु भी अब यह पुस्तक उपलब्ध है।
चरैवेति चरैवेति के ब्रेल लिपि संस्करणों हिन्दी, अंग्रेजी एवं मराठी भाषा का लोकार्पण मुंबई में हुआ था। राम नाईक यहां के सी कालेज से विधि की पढ़ाई की थी। मुंबई में रहने और खाने के लिये उन्हें मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। आने जाने के लिये साईकिल का प्रयोग भी उन्होंने किया। सामाजिक क्षेत्र में कार्य करते हुये वे तीन बार विधायक और पांच बार सांसद बने। लोगों के प्रेम और मुंबई ने उन्हें बहुत कुछ दिया। पुस्तक उनके जीवन से जुड़े इन्हीं संस्मरणों का संकलन है।
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। पुस्तक चरैवेति चरैवेत मराठी भाषी संस्मरण संग्रह चरैवेति चरैवेति का विमोचन मुंबई में हुआ था। हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू तथा गुजराती संस्करणों का लोकार्पण नौ नवम्बर दो हजार सोलह को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में, ग्यारह नवम्बर दो हजार सोलह को लखनऊ के राजभवन में तथा गुजराती भाषा संस्करण का तेरह नवम्बर दो हजार सोलह को मुंबई में हुआ।
छब्बीस मार्च दो हजार अठारह को संस्कृत नगरी काशी में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा संस्कृत संस्करण का लोकार्पण हुआ था। पुस्तक के सिंधी संस्करण का लोकार्पण इक्कीस फरवरी दो हजार उन्नीस को लखनऊ एवं बाइस फरवरी दो हजार उन्नीस को अरबी एवं फारसी भाषा में नई दिल्ली में हुआ था। मराठी, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, गुजराती, संस्कृत, सिंधी, अरबी एवं फारसी सहित नौ भाषाओं में तथा अब ब्रेल लिपि के तीन संस्करणों हिन्दी, अंग्रेजी और मराठी में प्रकाशित हो चुकी है। पुस्तक के जर्मन संस्करण का लोकार्पण तीस जून दो हजार उन्नीस को पुणे विश्वविद्यालय और असमिया भाषा संस्करण का छह जुलाई को गौहाटी में लोकार्पण हुआ।
पुस्तक चरैवेति चरैवेति के लोकार्पण समारोह में दो राष्ट्रपति, तीन मुख्यमंत्री एवं सात राज्यपालों के साथ मंच साझा करने का अवसर मिला है। पुस्तक चरैवेति चरैवेति सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिये महत्वपूर्ण है। राम नाईक ने जनप्रतिनिधि, मंत्री और राज्यपाल रहते हुए कुष्ठ पीड़ितों के लिये बहुत कार्य किये हैं। पुस्तक से जीवन में निरंतर कर्म करते हुये आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। श्री नाईक का जीवन चरैवेति चरैवेति का उदाहरण है। तीस जून दो हजार नौ को पुणे विद्यापीठ में चरैवेति चरैवेति के जर्मन संस्करण का लोकार्पण हुआ था। राम नाईक यहां आकर भावुक हुए थे।
इस विद्यापीठ एवं पुणे से उनकी पुरानी स्मृतियाँ जुड़ी है। उन्होंने यहाँ से बी काम की परीक्षा उन्नीस सौ चौवन में उत्तीर्ण की थी। इसी एम्पी थियेटर में विद्यार्थी के रूप में पढ़ाई करते थे। भारत रत्न अटल जी ने राम नाईक से कहा था कि कैंसर के बाद मिला बोनस जीवन समाज सेवा के लिये समर्पित करें। वह आज भी समाजसेवा के प्रति समर्पित भाव से कार्य करते है।चरैवेति चरैवेति के असमिया संस्करण का लोकार्पण गुवाहाटी में छह जुलाई दो हजार नौ को हुआ। इसमें छह राज्यपाल और दो मुख्यमंत्री सहित अनेक विशिष्टन उपस्थित थे। बांग्ला, कश्मीरी एवं तमिल भाषाओं में अनुवाद के प्रस्ताव राज्यपाल राम नाईक को उसी समय प्राप्त हुये थे। राम नाईक ने चरैवेति चरैवेति के श्लोक का मर्म बताते है। जीवन में निरंतर चलने वाले को ही सफलता प्राप्त होती है।
संसद में पहली बार ‘जन-गण-मन’ एवं ‘वंदे मातरम् का गायन उनके प्रयास से प्रारम्भ हुआ। बाम्बे को उसका मूल नाम मुंबई कराया जिसके बाद अनेक स्थानों के नाम परिवर्तित हुये। कारगिल युद्ध में चार सौ उनतालीस शहीद सैनिकों के परिजनों को सरकारी खर्चे पर पेट्रोल पम्प एवं गैस एजेन्सी का आवंटन कराया। सांसद निधि की शुरूआत करायी।