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भारत की राजनीति,गधे से होते हुये कब्रिस्तान से श्मशान तक

अनिल मेहता-भला हो भारत में होने वाले पाँच राज्यों के विधान सभा चुनावों का।जिनके चलते भारत की लोकतांत्रिक रूप से भाग्यशाली जनता को वर्तमान में राजनीति में चल रही सभ्य भाषा शैली का श्रवणस्वाद प्राप्त हुआ। सन् 2017 का विधान सभा चुनाव आते-आते राजनीतिक अखाड़े के पहलवानों ने ऐसे शब्द राजनीतिक भाषणो में फिट किये जिसको सुन कर स्वर्गवासी हुये भारत के महान नेताओं की आत्मा ”वाह-वाह क्या बात है”’ कह उठी होगी। विशेष तौर से उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में राजनेताओं की भाषाशैली को सुन कर। वो तो गनीमत हुई कि बिहार व उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव एक साथ नहीं पड़े। वरना भारत के सारे व्यंगकार तथा भाषाविद् भारत छोड़ने पर मजबूर हो जाते।इस विधान सभा चुनाव मे पुलिस वालों को भी सभ्य भाषा में गाली देना आ गया होगा। भले ही बिहार में विधान सभा चुनाव न हो पर उत्तर प्रदेश में रिश्तेदारी तो है ही। नतीजा बिहार के कुछ चुनावी भाषा के पहलवान उत्तर प्रदेश के अपने-अपने भाईचारे तथा रिश्तेदारी निभाने के लिये उत्तर प्रदेश में अपने पूरे दम खम के साथ भाषाई जौहर दिखा रहे हैं।बिहार के एक मंत्री का भाषाई जौहर देखिये ”’भारत के प्रधान मंत्री डकैत,नक्सली,उग्रवादी आदि आदि ”’ इसके बाद का लिखने वाला नही है हमारे लेख को पढ़ने वाले सुधी पाठक गण सभ्य हैं।इसके अलावा भी तमाम शब्द इन राजनीतिक पहलवानो के मुह से झड़ रहे हैं मसलन श्मशान,कब्रिस्तान,कुत्ता,पिल्ला,गधा,गैंडा आदि-आदि।ये कुछ ऐसे शब्द हैं जो इस लोकतांत्रिक देश में नेताओं के लिये विधान सभा चुनावों में प्रयोग किये जा रहे हैं।हालांकि जो शब्द लोकतंत्र के पहरूये प्रयोग में ला रहे हैं  वो कहीं न कहीं उन्हीं लोगों पर सटीक बैठ रहे हैं।जैसे कि साँसद,विधायक के लिये कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं है फिर सत्ता प्राप्त होने पर मंत्री पद सुशोभित करते हैं।अब ये पाठकगण तय करें कि नेता लोग जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं उनमें से कौन सा शब्द इन लोगों के लिये फिट बैठता है।और जिन शब्दों का प्रयोग हो रहा है जैसे डाकू,नक्सली,उग्रवादी,कुत्ता,पिल्ला,गैंडा आदि शब्द हैं जिनका नेता लोग भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं।मैं अब ये अपने सुधी पाठकों पर छोड़ता हूँ कि वो ये तय करें कि ये शब्द किसके लिये और कहाँ फिट होते हैं?

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