इंडियन रेलवे वे को संसार के सबसे बड़े नियुक्ताओं में से एक माना जाता है. यहां तेरह लाख कर्मचारी कार्य करते हैं. केन्द्र सरकार ने रेलवे के निजीकरण की तरफ कदम बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया है. सरकार ने रेल मंत्रालय ने विभिन्न विभागों में कर्मचारियों की जरूरत का नए सिरे से आकलन कर नॉन-कोर गतिविधियों को आउटसोर्स करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है. इसके लिए रेलवे बोर्ड की ओर से विभिन्न कार्यो के लिए कर्मचारियों की जरूरत के नए मानदंड निर्धारित किए गए हैं.
महाप्रबंधकों से बोला गया है कि वे नए मानदंडों के मुताबिक हर विभाग में विभिन्न कार्यो के लिए आवश्यक कर्मचारियों की संख्या का नए सिरे से आकलन कर इस बात का पता लगाएं कि कहां कितने कार्यो को आउटसोर्स किया जा सकता है. ताकि रेलवे को फालतू सरकारी कर्मचारियों को बोझ से मुक्त कर वेतन व अन्य खर्चो में कमी की जा सके. केन्द्र सरकार की ओर से लोकसभा में जवाब दिया गया था कि रेलवे में 13 लाख कर्मचारी हैं. व सरकार इनकी संख्या को घटाकर 10 लाख करना चाहती है.
इसके लिए 2014 से 2019 के बीच ग्रुप ए तथा ग्रुप बी के 1.19 लाख अधिकारियों के कामकाज, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, हाजिरी तथा समयपालन की समीक्षा की गई है. सेवा नियमावली की ‘प्रीमेच्योर रिटायरमेंट क्लॉज’ के तहत प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करते हुए इनमें से अक्षम अधिकारियों को समय से पहले रिटायर करने का फैसला लिया गया है. दरअसल सरकार का मानना है कि यदि इंडियन रेलवे को जापान व चाइना से मुकाबला करना है तथा जनता को विश्वस्तरीय व हाईस्पीड सेवाएं प्रदान करनी है तो उसे कुशल व प्रतिस्पर्द्धी बनना होगा. जानकारी के लिए बता दें कि इंडियन रेलवे वे लंबे समय से घाटे में चल रही है. इसको लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं.