अयोध्या, (जय प्रकाश सिंह)। डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में पीएम उषा योजना के अंतर्गत अर्थशास्त्र एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा पर्यावरण एवं अर्थशास्त्र विषय पर आयोजित पांच दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न हुआ। समापन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, प्रयागराज के पूर्व संकायाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र के प्रो पीके घोष (Prof PK Ghosh) ने पंचामृतः इंडियाज पाथवे टू नेट जीरो एमीशन्स विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि कि पंचामृत के अंतर्गत भारत को शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को सन 2070 तक प्राप्त करना है। पर्यावरण के संरक्षण के लिए सभी देशो को सम्मिलित प्रयास करने होंगे, भारत इसमें अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
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उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को रेखीय से चक्रीय बनाना होगा जिसमें रिन्यूएबल संसाधनों के उपयोग को प्राथमिकता देनी होगी। इसके अतिरिक्त नॉन रिन्यूएबल संसाधनों के उपयोग को सीमित करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें सौर, वायु, बायोमास, स्मॉल हाइड्रो ऊर्जा को न्यूक्लियर ऊर्जा के साथ प्रयोग करना होगा। इस संबंध में लैंसेट की रिपोर्ट की भी चर्चा की जिसके अनुसार शुद्ध शून्य अर्थव्यवस्था के अतिरिक्त कोई भी विकल्प नहीं है।
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उन्होंने ग्रीन हाउस बुलेटिन 2024 के अनुसार बताया कि वैश्विक उषमीकरण को नियंत्रण में रखने के लिए ग्रीन गैसों को नियंत्रित करना होगा। तभी शुद्ध शून्य उत्सर्जन एवं वास्तविक शून्य उत्सर्जन अन्तर कर पायेंगे।
कार्यशाला में कला एवं मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो आशुतोष सिन्हा ने कॉन्सेपचुअल इश्यूज इन एनवायरनमेंटल इकोनॉमिक्स विषय पर अपने संबोधन में पर्यावरणीय अर्थशास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों पर चर्चा की। उन्होंने पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था के मध्य संबंधों की चर्चा करते हुए बताया कि पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग अत्यंत समझदारी से करना होगा जिससे सतत विकास की प्रक्रिया निर्बाध रूप से चलती रहे। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति में हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
समापन सत्र में डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राशि कृष्ण सिन्हा ने ‘इंडियन एग्रीकल्चर एंड क्लाइमेट चेंज एन ओवरव्यू‘ पर बताया कि जलवायु परिवर्तन से कृषि उत्पादन में गुणात्मक एवं मात्रात्मक कमी आ रही है जो कि भारत के लिए विशेष रूप से अच्छी नहीं है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान एवं महत्व है। प्रो राशि सिन्हा ने बताया कि जलवायु परिवर्तन को रोकने एवं पर्यावरण संरक्षण को संरक्षित करने के लिए नई तकनीकी के व्यापक प्रयोग की आवश्यकता है जिसमें वर्तमान में कृषि का बहुत बड़ा हिस्सा अछूता है।
कार्यशाला के समापन के अवसर पर संयोजक प्रो आशुतोष सिन्हा व अन्य अतिथियों द्वारा प्रतिभागियों एवं शिक्षकों को प्रमाण पत्र वितरित किए। कार्यक्रम का संचालन प्रो विनोद कुमार श्रीवास्तव तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ प्रिया कुमारी ने किया। इस अवसर पर प्रो मृदुला मिश्रा, डॉ अलका श्रीवास्तव, डॉ अवध नारायण, डॉ मीनू वर्मा, गैर शैक्षणिक कर्मचारी विजय कुमार शुक्ला, कुशाग्र पाण्डेय एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।