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आईपीजीए, पल्स ऑस्ट्रेलिया और ऑस्ट्रेड द्वारा चना व मसूर दाल पर वेबिनार का आयोजन

भारत के दलहन व्यापार एवं उद्योग की केंद्रीय संस्था, भारत दलहन एवं अनाज संघ (आईपीजीए) द्वारा ‘आईपीजीए नॉलेज सीरीज़’ के तत्वावधान में चने और मसूर दाल पर एक वेबिनार का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। आईपीजीए, जो दलहन क्षेत्र की भारत की अग्रणी थिक टैंक और ज्ञान केंद्र है, ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार के ऑस्ट्रेलिया इंडिया बिज़नेस एक्सचेंज (एआईबीएक्स) कार्यक्रम के अंतर्गत इस वेबिनार का आयोजन किया। वेबिनार में अनुराग तुलशान, मैनेजिंग डायरेक्टर- इसार्को एक्ज़िम और आईपीजीए के पूर्वी ज़ोन के संयोजक द्वारा मसूर दाल पर भारतीय सिंहावलोकन प्रस्तुत किया गया। और निक पौटनी, डायरेक्टर- पल्स ऑस्ट्रेलिया की ओर से ऑस्ट्रेलियाई सिंहावलोकन पेश किया गया। भारतीय चने पर सिंहावलोकन नीरव देसाई, मैनेजिंग पार्टनर – जीजीएन रिसर्च द्वारा प्रस्तुत किया। जबकि पीटर विल्सन, मैनेजिंग डायरेक्टर- विल्सन इंटरनेशनल ट्रेड की ओर से ऑस्ट्रेलियाई सिंहावलोकन पेश किया गया। इस वेबिनार में दुनियाभर से लगभग 600 सहभागी शामिल हुए जिनमें से ज़्यादातर भारत और ऑस्ट्रेलिया के थे।

वेबिनार का विषय प्रवेश कराते हुए सौरभ भारतीय, सीनियर ट्रेडर, विटेरा इंडिया, आईजीपीए और जीपीसी एक्ज़ीक्यूटिव कमिटी मेंबर ने कहा कि, पिछले सात-आठ वर्षों में भारत के आयात में ऑस्ट्रेलियाई मसूर दाल का हिस्सा 10-15 प्रतिशत रहा है और दिसंबर 2017 तक इसकी चनों की ज़रुरतों का लगभग 80-90 प्रतिशत ऑस्ट्रेलिया से आया। हालाँकि भारत सरकार द्वारा लगाए गए 66 प्रतिशत आयात कर के कारण ऑस्ट्रेलिया से आयात करना मुश्किल हो गया है जिसके परिणामस्वरुप आयात लगभग शून्य के स्तर तक गिर गया है। साल 2021 में भारत में सभी दलहन न्यूनतम आधार मूल्य के ऊपर कारोबार कर रहे हैं और सरकार का माल काफी कम हो गया है। दोनों ही चीज़ें यही दर्शाती हैं कि पिछले खरीफ़ और रबी के मौसम में दलहन के उत्पादन को लेकर समस्याएं रही हैं।

अनुराग तुलशान, मैनेजिंग डायरेक्टर- इसार्को एक्ज़िम और आईपीजीए के पूर्वी क्षेत्र के संयोजक ने भारत के मसूर दाल परिदृष्य पर संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि, आपूर्ति और माँग की मौजूदा स्थिति काफी तंग है। सरकार द्वारा आगे आकर कर संरचना के संबंध में कुछ बदलाव करने की आवश्यकता है, ताकि ज़्यादा कार्गो आ सके क्योंकि भविष्य को देखते हुए जुलाई के महीने से लेकर दिसंबर 2021 तक हमें कम से कम 500,000 टन मसूर दाल आयात करने की आवश्यकता होगी।

श्री तुलशान ने निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला :

  • इस साल भारत सरकार का अनुमान है कि मसूर दाल का उत्पादन करीब 1.35 मिलियन टन होगा, लेकिन व्यापार के अनुमान के मुताबिक यह 900,000 से एक मिलियन टन (दस लाख टन) से ज़्यादा नहीं होगा। इस साल फसल की औसत पैदावार कम थी और वर्तमान कीमतें इसकी गवाह हैं।
  • हमारे देश में प्रति वर्ष कुल खपत है करीब 1.80 से 2 मिलियन टन, जिसका मतलब है लगभग 150,000-170,000 टन प्रति महीना। तो निश्चित रुप से हम मसूर दाल के आयात पर निर्भर हैं। 
  • वर्तमान में भारत के पास करीब 350,000-400,000 टन की लाल मसूर दाल की इन्वेंटरी (माल-सूची) जिसमें करीब 200,000 टन की आयात की गई लाल मसूर दाल शामिल है, जबकि हमारे पास लगभग 150,000-200,000 टन की भारतीय लाल मसूर दाल है। यह दो से ढाई महिने तक चलेगी जिसके बाद हमें ज़्यादा आयात करने की आवश्यकता होगी।
  • ऑस्ट्रेलिया का पिछले साल के करीब 700,000 टन उत्पादन का प्रमुख हिस्सा पहले ही निर्यात किया जा चुका है और ज़्यादा कुछ बचा नहीं है। हालाँकि, अनुमान है कि पिछले साल की तुलना में मसूर दाल की ऑस्ट्रेलिया से होने वाली आपूर्ति निश्चित ही कम होगी।

निक पौटनी, डायरेक्टर – पल्स ऑस्ट्रेलिया ने ऑस्ट्रेलियाई मसूर दाल परिदृष्य का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि, हो सकता है जहाँ भारत सरकार उनके मसूर दाल उत्पादन को लेकर ज़्यादा अनुमान लगा रही है, वहीं ऑस्ट्रेलियाई सरकार ऑस्ट्रेलियाई मसूर दाल उत्पादन का कम आकलन कर रही है। ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा ऑस्ट्रेलियाई मसूर दाल का कम आकलन किया जा रहा है।

श्री पौटनी ने निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला :

  • हो सकता है भारतीय सरकार मसूल दाल उत्पादन 1.20 से 1.30 मिलियन टन होने का अनुमान लगा रही है जबकि व्यापार के अनुमान के मुताबिक यह 900,000 से 1 मिलियन टन तक हो सकता है।
  • इंडस्ट्री से जुड़े ज़्यादातर अनुमान यही है कि 2020/21 में ऑस्ट्रेलियाई मसूर दाल पैदावार ~800,000 एमटी या उससे ज़्यादा की होगी (एबीएआरईएस 634,000 एमटी)।
  • प्रति एकड़ स्थिर से लेकर थोड़ी ज़्यादा बुआई के साथ लेकिन औसत पैदावार पर लौटने के साथ साल 2021/22 में ~500,000 एमटी फसल हासिल होनी चाहिए।
  • हाल के वर्षों के आधार पर 250,000 एमटी से ज़्यादा की माँग के साथ बांग्लादेश एक समान खरीदार रहा है। श्रीलंका की माँग बढ़कर 100,000 एमटी से ज़्यादा हो गई है। शेष माल इजिप्ट, पाकिस्तान और यूएई में निर्यात किया जाएगा।
  • यदि 2021/22 में ऑस्ट्रेलिया ~500,000 एमटी मसूल दाल का उत्पादन करता है तो भारत की ओर से सीमित माँग के साथ निर्यात करना तुलनात्मक रुप से आसान होगा।
  • यदि भारत की ओर से आयात की अनुमति के लिए मसूर दाल पर आयात करों में कटौती की जाती है, तो इससे तुलनात्मक रुप से तंग ऑस्ट्रेलिया से की जाने वाली आपूर्ति पर दबाव बढ़ेगा। 

नीरव देसाई, मैनेजिंग पार्टनर – जीजीएन रिसर्च ने चने के भारतीय परिदृष्य का संक्षिप्त विवरण देते हुए कहा कि, मुख्य रुप से मध्य प्रदेश और राजस्थान में खराब पैदावार के कारण भारत में चने का कुल उत्पादन औसत से नीचे रहा है और केवल गुजरात ही इकलौता राज्य है जहाँ उत्पादन ज़्यादा हुआ है। लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों की तुलना में गुजरात में चने का उत्पादन तुलनात्मक रुप से कम यानी केवल 800,000 एकड़ क्षेत्र में होता है।

श्री देसाई ने अपने प्रेज़ेन्टेशन में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला :

  • 14 अप्रैल (2021) तक नाफेड ने लगभग 248,000 टन चना अधिप्राप्त किया था जबकि लक्ष्य था 2.7 मिलियन टन से भी ज़्यादा का था। इस साल नाफेड के पास बहुत ज़्यादा माल नहीं है इसलिए हमें नहीं लगता की नाफेड मार्केट में बार बार हस्तक्षेप करेगा।
  • हम मोटे तौर पर बाजार आपूर्ति पर निर्भर रहेंगे जो पिछले साल की तुलना में 12 से 15% कम होने का अनुमान है।
  • सीमित आपूर्ति के कारण इस साल चने की कीमतें मज़बूत रहने और इसमें काफी उछाल की संभावना है। हालाँकि, बड़ा झटका सरकार की ओर से आ सकता है यदि वे आयात कर में कोई बदलाव करते हैं।  

पीटर विल्सन, मैनेजिंग डायरेक्टर – विल्सन इंटरनेशनल ट्रेडिंग ने चने के ऑस्ट्रेलियाई परिदृष्य का संक्षिप्त विवरण देते हुए कहा कि, मैं यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम एक दूसरे के लिए हैं, ऑस्ट्रेलिया, पल्स ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच जारी संवाद की सराहना करता हूँ और जैसे-जैसे नीतियाँ विकसित होंगी, व्यापार के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार होता जाएगा। ऑस्ट्रेलिया में हम गहरे अवमृदा नमी पर देसी चना उगाते हैं। पिछले कुछ महिनों में उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में नमी के अच्छे स्तर ने हमें उत्तरी और उत्तर-पूर्वी फसल क्षेत्र में फसलों के लिए आदर्श बुआई की स्थितियाँ प्रदान की है। इसलिए हमें उन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ रहा है जिनसे वर्तमान में दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में मसूर दाल उत्पादक जूझ रहे हैं।

श्री विल्सन ने निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला :

  • ऑस्ट्रेलियाई देसी चने के मार्केट में इस साल फरवरी से 40 डॉलर-50 डॉलर प्रति टन का उछाल देखा गया है और यह फिलहाल 700 डॉलर के आसपास है जो ऑस्ट्रेलियाई किसानों के लिए मुनाफे के हिसाब से काफी अच्छा पैसा है। साल 2021 में हम निश्चित ही क्षेत्र में वृद्धि और इसके साथ ही पैदावार में कुछ रिकवरी का अनुमान लगा सकते हैं।
  • पिछले साल ऑस्ट्रेलिया ने 800,000 टन फसल तैयार की थी और कीमतों ने किसानों को भरोसा दिया है कि वे वापस जाएं और बुआई क्षेत्र में वृद्धि करें।
  • पाकिस्तान और बांग्लादेश से हमने उल्लेखनीय माँग देखी है और नेपाल भी उल्लेखनीय वॉल्यूम के लिए स्पर्धा कर रहा है। जैसे-जैसे हम ऑस्ट्रेलियाई देसी चने के लिए अच्छे बाज़ार का अभिगम देख रहे हैं और एक वृद्धिशील बाज़ार रहा है, इससे किसानों को साल 2021-22 के लिए महत्वपूर्ण भरोसा प्राप्त हो रहा है। यदि इसके साथ ही इरान भी सीधे आयात बिज़नेस में लौटता है, तो बाजार वास्तव में खुला हो जाएगा। 
  • इस साल ऑस्ट्रेलिया में सितंबर / अक्तूबर से हमारे पास चने की अच्छी पैदावार के नतीजे के लिए सहायक नमी की स्थितियाँ हैं। यदि भारतीय नीतिनिर्धारक अपनी नीतियों में बदलाव करते हैं तो भारत की आयात की माँग को पूरा करने के लिए फसल के लिए पर्याप्त समय के साथ ऑस्ट्रेलिया तैयार रहेगा।

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