उत्तराखंड में आयुर्वेदिक दवाओं की बिक्री के लिए आयुर्वेदिक फार्मेसी का लाइसेंस अनिवार्य किया जाएगा। इसके साथ ही अब राज्य में आयुर्वेदिक डाइटीशियन का कोर्स भी शुरू किया जाएगा। लाइसेंस अनिवार्य किए जाने के बाद राज्य में बिना लाइसेंस के आयुर्वेदिक दवाओं की बिक्री नहीं की जा सकेगी।
इसके लिए लाइसेंस लेना पड़ेगा। इस दौरान प्रस्ताव में यह भी शामिल किया गया कि आयुर्वेदिक दवाओं के साथ यूनानी दवाओं की बिक्री के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ेगा। इस दौरान कई अन्य पहलुओं पर भी चर्चा हुई और कोर्स शुरू करने की बात कही गई है।
इस दौरान आयुर्वेदिक तथा यूनानी फार्मेसिस्टों के लिए एलोपैथी तथा होम्योपैथी के अनुसार औषधि बिक्री के लिए लाइसेस अनिवार्य करने का प्रस्ताव भी पारित किया गया। इसके अलावा आयुर्वेदिक अस्पतालों का पंजीकरण आयुर्वेद कार्यालय में कराए जाने, क्षार सूत्र सहायक , ओटी टैक्नीशियन, मर्म चिकित्सा सहायक, आयुर्वेदिक डाइटिशियन, आयुर्वेदिक ब्यूटीकेयर आदि के कोर्स शुरू करने का निर्णय लिया गया।
मंगलवार को भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड की बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पास होने के बाद अब आयुर्वेदिक दवा बेचने वालों को भी आयुर्वेदिक फार्मेसी का लाइसेंस लेने अनिवार्य हो गया है। साथ ही बैठक में अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की गई।
भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड की बोर्ड बैठक मंगलवार को आयोजित हुई। इस दौरान आयुर्वेद से जुड़े कई निर्णय लिए गए। भारतीय चिकित्सा परिषद के अध्यक्ष डॉ. जेएन नौटियाल ने बताया कि बैठक में डॉ. वीरेन्द्र चन्द को चिकित्सा परिषद का उपाध्यक्ष, डॉ विशाल वर्मा को संकाय उपाध्यक्ष, डॉ दिनेश जोशी को संकाय सदस्य, डॉ धीरज आर्य को सलाहकार समिति का संयोजक तथा डॉ सुनील कुमार रतूड़ी, डॉ अजीत तिवारी, डॉ मतिउल्ला व डॉ पंकज कुमार को सलाहकार समिति का सदस्य नियुक्त करने का निर्णय लिया गया है ।