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कल्याण सिंह :जन्मभूमि आंदोलन के जन नायक

कल्याण सिंह ने भाजपा को मजबूत बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया था। कुछ समय के लिए वह भाजपा से रूठे भी थे। लेकिन उनके अंतर्मन में उस समय भी राष्ट्रवादी चेतना थी। वापस लौटे तो आंसुओं के साथ इसकी अभिव्यक्ति भी हुई। इस अवसर पर लखनऊ में समारोह आयोजित किया गया था। कल्याण सिंह भावुक थे। उनके भाषण की एक एक लाइन का भावपूर्ण अर्थ था।

उन्होंने कहा था कि संघ और भाजपा का संस्कार मेरे रक्त की एक एक बूंद में है। मैं जीवन भर भाजपा में रहूंगा। जब मेरे जीवन का अंत हो,तब मेरा शव भी भाजपा के झंडे में लपेटा जाए। इसी प्रकार बाबरी ढांचा विध्वंस के समय भी उनका बयान एक लाइन का था। उन्होंने कहा था कि वह कार सेवकों पर गोली नहीं चलाएंगे,गोली नहीं चलाएंगे,गोली नहीं चलाएंगे। इस एक लाइन से ही श्री रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण के प्रति उनकी आस्था को समझा जा सकता है।

यही लाइन भाजपा और अन्य पार्टियों के अंतर को रेखांकित करती है। यह संयोग था कि अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन कल्याण सिंह के जीवन काल में ही सम्पन्न हुआ। कोरोना प्रोटोकाल के कारण कल्याण सिंह वर्चुअल माध्यम से भूमि पूजन समारोह के सहभागी बने थे। लेकिन जन्म भूमि पर निर्मित हो रहे श्री राम मंदिर में पूजा अर्चना का उनका सपना पूरा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने लखनऊ पहुंचे। उन्होंने प्रभु श्री राम से प्रार्थना की-वह कल्याण सिंह को अपने श्री चरणों में स्थान दें। कल्याण सिंह राम मंदिर के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। उस समय देश में दो तरह की विचारधारा चल रही थी।

एक विचारधारा कहती रही कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता। दूसरी तरफ एक विचारधारा कहती रही कि मंदिर वहीं बनाएंगे। कल्याण सिंह दूसरी विचारधारा के समर्थन में रहे। बाबरी ढांचा विध्वंस के समय वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने एक लाइन का इस्तीफा दिया था। तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री से बात करते समय उन्होंने तीन बार एक ही शब्द को दोहराया था ‘मैं गोली नहीं चलाऊंगा,मैं गोली नहीं चलाऊंगा,मैं गोली नहीं चलाऊंगा’ और उन्होंने यह करके भी दिखाया था। उस समय कई कारसेवक बाबरी मस्जिद के गुंबद पर चढ़ गए और कुदालों से उसे तोड़ने लगे। वहां बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बल तैनात था। लेकिन कारसेवकों ने उनके और बाबरी मस्जिद के बीच एक घेरा सा बना दिया था ताकि वो वहां तक पहुंच न सके। वर्ष 1992 में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था।

कल्याण सिंह उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहाया गया था। बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने बाबरी मस्जिद को बचाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि बाबरी ढांचे को पूरी तरह से बचाने का काम किया जाएगा। लेकिन कारसेवकों का लाखों की संख्या में अयोध्या में हुजूम उमड़ा तो उन्होंने गोली चलाने को लेकर एक लाइन में आदेश दिया कि गोली नहीं चलाई जाएगी।

6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों का लाखों की संख्या में हुजूम अयोध्या में उमड़ पड़ा। बड़ी संख्या में कारसेवकों को देख पुलिस-प्रशासन परेशान हुआ। अधिकारियों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से गोली चलाने की अनुमति मांगी। कल्याण सिंह ने अधिकारियों को आदेश दिया कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलाई जाएगी। बाद में बाबरी ढांचे को कारसेवकों ने ढहा दिया। तब इसकी जिम्मेदारी लेते हुए कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। बाबरी मामले की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के मामले में कल्याण सिंह को एक दिन की सजा सुनाई और उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था।

कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। वह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अनेक बार बार अतरौली से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। वह लोक सभा सांसद और राजस्थान तथा  हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने। जनता पार्टी की सरकार में वह स्वास्थ्य मंत्री बने थे। पहली बार कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वर्ष 1991 में बने और दूसरी बार यह वर्ष 1997 में मुख्यमंत्री बने थे। 1993 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अतरौली और कासगंज से विधायक निर्वाचित हुये थे। चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरा था। लेकिन मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी ने गठबन्धन सरकार बनाय थी। तब  कल्याण सिंह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने थे।

वह सितम्बर 19967 से नवम्बर 1999 तक पुनः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। 4 सितम्बर 2014 को वह राजस्थान के राज्यपाल बने थे। योगी आदित्यनाथ ने बताया कि कल्याण सिंह का नाथ पंथ के विश्व प्रसिद्ध गोरक्ष पीठ से आत्मिक जुड़ाव था। वह राममंदिर आंदोलन के प्रणेता ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ के कृपापात्र थे। बड़े महराज का उनसे विशेष स्नेह जगजाहिर था। शनिवार को उनके निधन की खबर पहुंचते ही गोरक्ष पीठ से जुड़े लोगों में शोक की लहर दौड़ गई। सीएम योगी आदित्यनाथ तो गोरखपुर का दौरा पहले ही रद्द कर लखनऊ के पीजीआई पहुंच गए थे। यहां मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों और पुजारियों ने उनके निधन पर गहरा दु:ख जताया है।

कल्याण सिंह भी ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ की ही तरह श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण को अपने जीवन का लक्ष्य बनाए हुए थे। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन कल्याण सिंह को गोरक्ष पीठ के करीब लाया था। इस मुद्दे पर कल्याण सिंह की सोच स्पष्ट थी। उन्हें तत्कालीन पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ का पूरा आशीर्वाद और स्नेह मिला। मंदिर आंदोलन की रूपरेखा पर तत्कालीन पीठाधीश्वर अवैद्यनाथ के साथ उनकी गहन मंत्रणा चलती रहती थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार को विशेष विमान से लखनऊ अमौसी एयरपोर्ट पहुंचे। यहां उनकी अगुवानी राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तथा भाजपा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने की। इसके बाद वह कल्याण सिंह के मॉल एवेन्यू आवास गए। यहां उनके अंतिम दर्शन कर पुष्पचक्र अर्पित किया। कहा कि कल्याण सिंह ने जीवन ऐसे जिया कि माता पिता द्वारा दिए गए नाम को सार्थक कर दिया। उन्होंने जनकल्याण को अपना जीवन समर्पित कर दिया। देश ने एक मूल्यवान शख्सियत और सामर्थवान नेता खोया है। हम उनके आदर्शों को ध्यान में रखते हुए उनका सपना साकार करने का प्रयास करेंगे।

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