लखनऊ। कला दीर्घा, अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका एवं द सेंट्रम द्वारा आयोजित युवा कलाकार सुमित कुमार (Sumit Kumar) के नवीनतम चित्रों की नॉस्टैल्जिया 0.25 प्रदर्शनी का गोल्फ सिटी, शहीद पथ स्थित द सेंट्रम की कलावीथिका में दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन करते हुए अपर मुख्य सचिव जितेंद्र कुमार ने कहा कि सुमित कुमार एक ऊर्जावान और उत्साही कलाकार हैं। उनकी कला प्रदर्शनी का अवलोकन करना, अपने बचपन में लौट जाना है।
इस अवसर पर सीमा गुप्ता, अदिति कुमार, सुमित कुमार के गुरु और संरक्षक डॉ अवधेश मिश्र, प्रदर्शनी की क्यूरेटर डॉ लीना मिश्र, समन्वयक डॉ अनीता वर्मा एवं नगर के अनेक कला प्रेमी उपस्थित थे। कला दीर्घा, अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका के संपादक डॉ अवधेश मिश्र ने कहा कि इस प्रदर्शनी की एक-एक कलाकृति हमारे पूर्वजों की थाती और उनकी दैनिक गतिविधियों के साथ सांस्कृतिक मूल्यों का उद्घाटन करती है। ये कलाकृतियाँ जितनी अपने संवेदनशील विषय के कारण महत्त्वपूर्ण हैं, उतनी ही तकनीकी परिपक्वता और नवाचार के कारण भी ध्यातव्य हैं।
प्रदर्शनी की क्यूरेटर डॉ लीना मिश्र ने कहा कि कला दीर्घा पत्रिका ने सदैव अग्रजों और वरिष्ठ कलाकारों को आदर और नवोदित कलाकारों को स्नेह और संरक्षण दिया है। पत्रिका आज एक होनहार कलाकार सुमित कुमार की प्रदर्शनी आयोजित कर भारतीय कला में एक नया अध्याय जोड़ रही है।
इन चित्रों में एक आकर्षण है, एक बुलावा है स्वयं का स्वयं से जुड़ने का। अपने अतीत की उन गतिविधियों को जिन्हें हम लगभग भूल चुके हैं और प्रायः आधुनिक बनने और दिखाने की कीमत पर अपने मौलिक ज्ञान-विज्ञान, स्वभाव और व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। कुछ पल के लिए ही सही, इस प्रदर्शनी में आकर हम अपने को भूलते हुए एक नई, रचनात्मक और अनंत दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं।
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हमारी पीढ़ी याद कर सकती है कि गांव के बच्चों का पुराने टायर को चलाते हुए आगे बढ़ना, पेड़ों की पत्तियां की फिरकी बनाना, गांव की ताल-तलैया में मेढक की टर्र-टर्र और झींगुर की चीं-चीं, सरसों के फूलों पर मंडराती तितलियां और मधुमक्खियां, बगिया में कु-कू करती कोयल को सुनना और अनुभूत करना, नगरीकरण के आकर्षण के कारण संभव नहीं रह गया है। अब हमारे आसपास केवल और केवल कंक्रीट के जंगल हैं। प्रकृति से हमारा साहचर्य समाप्त हो गया है।
नॉस्टैल्जिया.25 प्रदर्शनी में सुमित कुमार ने अपनी संस्कृति की सुरक्षा, संरक्षा और वापस गांव की ओर लौटने का आह्वान किया है। थोड़ी देर के लिए इस प्रदर्शनी में हम अपने अंदर बैठे बच्चे को जी सकते हैं। उछल-कूद सकते हैं और आम-अमरूद के पेड़ पर चढ़कर ताजा फ़ल भी खा सकते हैं।
कलाकार सुमित कुमार ने कहा कि अपने गुरु के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को मैं सूक्ष्मता से देखता और आत्मसात करता रहा हूं। मेरी कलाकृतियों में जो संवेदनशीलता है, वह अपने गुरु के सानिध्य से मुझे प्राप्त हुई है। मुझे दुनिया को देखने की दृष्टि अपने गुरु से मिली है। मैं जो कुछ रच रहा हूं, यह उन्हीं का मार्गदर्शन और संरक्षण है। मैं भारतीय कला में कुछ जोड़ सकूंगा तो अपने गुरु के आशीर्वाद से।
प्रदर्शनी में डॉ फौजदार, निधि चौबे, अमित, सत्यम चौबे, सुमित कश्यप, नीलू, सनी केसरी और नगर के अनेक कला प्रेमी उपस्थित थे। प्रदर्शनी की समन्वयक डॉ अनीता वर्मा ने बताया कि यह प्रदर्शनी 19 फरवरी तक दर्शकों के अवलोकनार्थ दोपहर 12:00 से शाम 7:00 बजे तक खुली रहेगी।