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कर्नाटक विधानसभा चुनाव : अब मतदान के लिए बचा एक महीने का समय , पढ़े पूरी खबर

र्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा हो चुकी है। अब मतदान के लिए एक महीने के करीब ही समय बचा है। हालांकि, अभी तक ना तो भारतीय जनता पार्टी ने और ना ही कांग्रेस ने अपने सीएम कैंडिडेट की घोषणा की है।

वहीं, जेडीएस एचडी कुमारस्वामी को सीएम पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार मानकर चल रही है। सबसे पहले बात सत्तारूढ़ भाजपा की ही करते हैं। भगवा पार्टी ने यह तो तय कर दिया है कि वह वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की अगुवाई में ही चुनावी अखाड़े में उतरेगी, लेकिन यह भी कहा है कि नतीजे सामने आने के बाद मुख्यमंत्री तय किया जाएगा। बीजेपी के इस स्टैंड ने दुविधा बढ़ा दी है।

वहीं, कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी खेमेबाजी से जूढ रही है। कर्नाटक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डीके शिवकुमार और विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धारमैया दोनों ही खुद को सीएम कैंडिडेट मानकर चल रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस ने दिल्ली से किसी का नाम तय करके नहीं भेजा है। कांग्रेस और भाजपा आखिर मुख्यमंत्री उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करने से परहेज क्यों कर रही है? आइए जानने की कोशिश करते हैं।

2018 में जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक साल पहले ही बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया था। हालांकि, बीच में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पार्टी ने बसवराज बोम्मई के हाथों में प्रदेश की सत्ता सौंप दी। इस चुनाव में बीजेपी सतर्कता से आगे बढ़ रही है। पार्टी के पास वैसे भी येदियुरप्पा के कद का कोई कद्दावर चेहरा नहीं है।

लिंगायत की सियासी ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस सुमदाय के अब तक तीन मुख्यमंत्री रहे हैं। बीएस येदियुरप्पा, जगदीश शेट्टार और बीएस बोम्मई ने कर्नाटक की कमान संभाली थी। येदियुरप्पा ने अब अपने सियासी रिटायरमेंट की घोषणा कर दी है। वह न तो चुनाव लड़ेंगे और न ही सीएम पद के दावेदार हैं।

अब बीजेपी लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों को एक पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि बीजेपी चुनाव प्रचार समिति की जिम्मेदारी लिंगायत समुदाय से आने वाले बसवराज बोम्मई को दी है। वहीं, चुनाव प्रबंधन की कमान वोक्कालिगा समुदाय से आने वाली केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे के पास है।

हिंदी भाषी राज्यों की तरह कर्नाटक में भी जाति हावी है। यही कारण है कि सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता में बने रहने के लिए दो प्रभावशाली जातियों लिंगायत और वोक्कालिगा को साधने की कोशिश कर रही है। हाल ही में दोनों के आरक्षण के कोटे में 2-2 प्रतिशत का इजाफा किया गया था। कर्नाटक में लिंगायत भाजपा के पारंपरिक वोटर माने जाते हैं। लेकिन वोक्कालिगा का समर्थन जेडीएस के पास है।

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