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धर्म की नगरी काशी ने हिंदी को दिया पहला मानक कोश, व्याकरण और इतिहास

वाराणसी। मां भारती के भाल का शृंगार है हिंदी, हिंदोस्तां के बाग की बहार है हिंदी। घुट्टी के साथ घोल के मां ने पिलाई थी, स्वर फूट पड़ा वही मल्हार है हिंदी…। डॉ जगदीश व्योम (Dr Jagdish Vyom) की यह कविता हिंदी की कहानी कहती है। धर्म और संस्कृति की नगरी काशी ने भी हिंदी और हिंदीभाषियों को बहुत कुछ दिया है। पहले शब्दकोश से लेकर पहले व्यवस्थित व्याकरण, हिंदी साहित्य और भाषा के पहले इतिहास के साथ ही हिंदी शॉर्टहैंड का पहला विद्यालय भी काशी से ही शुरू हुआ था।

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धर्म की नगरी काशी ने हिंदी को दिया पहला मानक कोश, व्याकरण और इतिहास

20 सालों की मेहनत से तैयार हुआ हिंदी भाषा का पहला मानक कोश

हिंदी भाषा के लिए बनाया गया वृहद शब्द संग्रह और मानक कोश है हिंदी शब्दसागर। 20 साल के अनवरत प्रयास के बाद नागरी प्रचारिणी सभा ने इसका निर्माण किया और इसका पहला प्रकाशन 1922-29 के बीच हुआ था।

शब्दकोश मूल रूप में चार खंडों में बना था। इसके प्रधान संपादक श्यामसुंदर व बालकृष्ण भट्ट और लाला भगवानदीन, अमीर सिंह व जगमोहन वर्मा सहसंपादक थे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य रामचंद्र वर्मा ने भी इसमें योगदान दिया। इस कोश में एक लाख शब्द थे।

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बाद में 1965-1976 के बीच इसका परिवर्धित संस्करण 11 खंडों में प्रकाशित हुआ। हिंदी शब्दकोश के निर्माण के लिए दरभंगा नरेश ने 125 रुपये की आर्थिक सहायता दी थी। 1910 की शुरुआत में शब्द संग्रह का कार्य समाप्त हुआ और 1912 में छपाई का कार्य शुरू हुआ। इस तरह 1917 तक काम चलता रहा। 1924 में 22 बंडल कोश कार्यालय से चोरी हो गए। इस वजह से ये काम 1929 में पूरा हुआ। इससें 93,115 शब्दों के अर्थ और विवरण दिए गए थे। इसमें सभा ने 1,02,735 रुपये खर्च किए।

कामता प्रसाद और किशोरी दास ने दी व्याकरण की पहली व्यवस्थित पुस्तकें
कामता प्रसाद गुरु की हिंदी व्याकरण और आचार्य किशोरी दास वाजपेयी की हिंदी शब्दानुशासन व्याकरण पर हिंदी में पहली व्यवस्थित पुस्तकें हैं। कामता प्रसाद गुरु की रचना हिंदी व्याकरण को हिंदी का सबसे बड़ा प्रमाणिक व्याकरण माना जाता है। इसका प्रकाशन सर्वप्रथम नागरिक प्रचारिणी सभा ने अपनी लेखमाला में 1974 से 1976 के बीच किया।

इसके बाद सन 1977 में पहली बार सभा से पुस्तक के रूप में इसे प्रकाशित किया गया। यह हिंदी भाषा का सबसे बड़ा और प्रामाणिक व्याकरण माना जाता है। विदेशी भाषाओं में इसके अनुवाद भी हुए हैं। संक्षिप्त हिंदी व्याकरण, मध्य हिंदी व्याकरण और प्रथम हिंदी व्याकरण इसी के संक्षिप्त संस्करण हैं। किशोरी दास वाजपेयी ने खड़ी बोली हिंदी के व्याकरण के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई। व्याकरण के क्षेत्र में उनकी प्रमुख देन हिंदी शब्दानुशासन ही है। सबसे पहले उन्होंने ही घोषित किया कि हिंदी एक स्वतंत्र भाषा है।

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आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास लिखकर एक नए युग की शुरुआत की। आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पुस्तक हिंदी साहित्य का इतिहास शीर्षक निबंध पिछले एक हजार साल के साहित्य के इतिहास की सबसे विश्वसनीय पुस्तक के तौर पर आज तक पढ़ी जाती है। हिंदी साहित्य के अब तक लिखे गए इतिहास में आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पुस्तक हिंदी साहित्य का इतिहास को सबसे प्रामाणिक और व्यवस्थित इतिहास माना जाता है।

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