नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो’, इस लोकोक्ति के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है। इस बार नहीं हो सकेंगे ‘नीलकंठ’ के दर्शन। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे संकट देश दुनिया के सामने हो, तब भारत का विज्ञान फिर नए सिरे से देश-दुनिया का नेतृत्व कर सकता है। अभी समय है कि हम भारतीय ज्ञान को समझे और शिक्षा में इसका समन्वय बनाएं।
अंधाधुंध शिकार करने और किसानों द्वारा खेतों में कीटनाशकों के लगातार प्रयोग के कारण सुंदर और सबका प्यारा ‘नीलकंठ’ पक्षी आज लुप्त होता जा रहा है और सरकार ने इसके संरक्षण के लिए इसे रेड जोन में घोषित किया है।
मान्यता यह है कि भगवान श्रीराम ने आज के दिन सुबह ‘नीलकंठ’ पक्षी के दर्शन करने के बाद युद्धभूमि में रावण का वध किया था। इस कारण ‘नीलकंठ’ को पूज्य पक्षी माना जाता है। आज भी लोग दशहरे के दिन सुबह-सुबह नीलकंठ पक्षी के दर्शन कर यह त्यौहार मनाते हैं। दशहरे पर नीलकण्ठ के दर्शन की परंपरा बरसों से जुड़ी है। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की एवं ब्राह्मण हत्या के पाप से खूद को मुक्त कराया। तब भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रुप में धरती पर पधारे थे।
इसके अलावा इस दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है, और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत् होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है।
शाश्वत तिवारी