नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में महिला डॉक्टर (प्रशिक्षु) के दुष्कर्म-हत्या मामले से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश की गई कि पीड़िता के नाम और फोटो का खुलासा करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट बहुत सारे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को दोहराया कि आरजी कर अस्पताल मामले में किसी भी मध्यस्थ को पीड़िता का नाम और फोटो प्रकाशित करने की अनुमति नहीं है।
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पीड़िता के माता-पिता ने जताई आपत्ति
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ को बताया कि मृतक पीड़िता के माता-पिता सोशल मीडिया पर उसके नाम और फोटो का खुलासा करने वाले बार-बार क्लिप से परेशान हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस मुद्दे पर पहले ही आदेश पारित कर दिया है और आदेश को लागू करना कानून प्रवर्तन एजेंसियों का काम है। इसने अपने पहले के आदेश को स्पष्ट किया और कहा कि यह सभी मध्यस्थों पर लागू होता है। पीठ ने कहा कि सीबीआई जांच में पर्याप्त सुराग मिले हैं और उसने दोनों पहलुओं – कथित बलात्कार और हत्या और वित्तीय अनियमितताओं पर बयान दिए हैं।
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पहले शीर्ष अदालत ने क्या की थी टिप्प्णी
शीर्ष अदालत ने 17 सितंबर को कहा था कि वह बलात्कार-हत्या मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की तरफ से दायर स्थिति रिपोर्ट में दिए गए निष्कर्षों से परेशान है, लेकिन उसने विवरण का खुलासा करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि कोई भी खुलासा चल रही जांच को खतरे में डाल सकता है।
9 सितंबर को, शीर्ष अदालत ने कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बलात्कार और हत्या की शिकार जूनियर डॉक्टर के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने वाले एक महत्वपूर्ण दस्तावेज चालान के उसके समक्ष प्रस्तुत रिकॉर्ड से गायब होने पर चिंता व्यक्त की थी और पश्चिम बंगाल सरकार से रिपोर्ट मांगी थी।