भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्वों का विशिष्ट सन्देश व सामाजिक पृष्ठिभूमि को महत्व दिया गया।
एक हजार गरीबों को भोजन
लायंस क्लब राजधानी अनिंद द्वारा इसी भावना के अनुरूप गोवर्धन पूजा समारोह का आयोजन किया। इसमें ब्रह्मकुमारी की बहन स्वर्णलता जी का प्रवचन हुआ। इसके अलावा एक हजार गरीबों को अन्नकूट भोजन का वितरण किया गया।
प्रभु प्रेम का प्रकाश
स्वर्णलता ने कहा कि दीवावली में भी परमात्मा व आत्मा के अद्वैत का भाव है। प्रभु श्री राम परमात्मा है। उनके अयोध्या आगमन पर जन सामान्य प्रफुल्लित हुआ। वह आत्मा के प्रतीक है। दीप प्रज्ज्वलित किये गए। इसी प्रकार प्रभु श्री कृष्ण परमात्मा है। गोपियां,ग्वाल व अन्य लोग परमात्मा के अंश है। प्रभु श्री कृष्ण लीला करते है। जन सामान्य इस पर उत्सव मनाता है। गोवर्धन पूजा में अहंकार के नाश का सन्देश है। इसी के साथ कृषि,जलवायु, गोवंश, पर्यावरण, प्रकृति आदि के संरक्षण का भी सन्देश है। यह समाज की शक्ति को भी रेखांकित करता है।
श्री कृष्ण अकेले ही इंद्र को परास्त कर सकते है। लेकिन उन्होंने यह कार्य समाज के सहयोग से किया। प्रभु श्री राम अकेले ही लंका विजय कर सकते थे। लेकिन उन्होंने भी समाज के सहयोग से यह कार्य किया। भारतीय पर्वों में भी सामाजिक चेतना संगठन और सौहार्द का विचार समाहित है। भारतीय मान्यता में आस्तिकता, अवतार, कर्मफल में विश्वास रखने की बात कही गई। वस्तुतः भारतीय समाज उत्सवधर्मी है। दीपावली का सन्देश है कि आयो जगाएं प्रेम का दीपक। यह सामाजिक बोध है। स्वर्णलता जी ने कहा कि पर्व उत्सव या महापुरुषों की जन्मजयंती बड़ा अवसर प्रदान करती है।
इस अवसर के सन्देश को जीवन में उतारना चाहिए। पर्व एक दिन का होता है। किंतु इसमें समाहित विचारों पर अमल करना चाहिए। धन भी शुभ मार्ग से ही अर्जित करना चाहिए। लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू। यदि धन को सब कुछ मान लेना अनुचित है। संकल्प सदैव सकारात्मक होना चाहिए। खुश रहने के लिए चिंतन बदलना चाहिए। सोच को सामान्य रखना होगा। अपने ऊपर विश्वास रहे। समय के महत्व को समझा जाये।
स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना चाहिए। भारतीय ऋषियों ने भी यही सन्देश दिया। सत्कर्मों पर अमल करना चाहिए। इसके बाद सम्प्पति का महत्व रहता है। लेकिन आज सम्पत्ति को सब कुछ मान लिया। इससे अन्य चार तत्वों का महत्व कम होने लगता है। गलत कर्मों से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इससे समय का सदुपयोग असंभव हो जाता है।
प्रेम का व्यापक सन्दर्भ होता है। लेकिन इसमें प्रकाश होना चाहिए। प्रकाश व्यापक होता है। यह सीमित नहीं रहता। प्रेम में प्रकाश हो तभी उसका सकारात्मक परिणाम होता है। प्रभु की हम सभी संतान रुप में है। जिस प्रकार माता पिता बच्चों का अहित नहीं चाहते। उसी प्रकार प्रभु की व्यवस्था है। लेकिन कर्मफल महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रभु भेदभाव नहीं करते। कर्म के अनुरूप प्रारब्ध बनता है।
वाणी,कर्म और विचार भी शुभ होने चाहिए। जन्म से कोई गलत नहीं होता। गलत संगत से व्यक्ति पथभ्रष्ट होता है। इसी से बचने की आवश्यकता है। कोरोना महामारी ने सच्चाई को दिखाया है। किसी को अपने अगले पल की खबर नहीं है। इसलिए अच्छे कर्मों के मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए। इस सबके लिए प्रकाश का होना आवश्यक है। यह दीप पर्व का सन्देश है। यह मान कर चलना चाहिए कि आत्मा वस्तुतः परमात्मा का अंश है।
दीपक आत्मा का ही प्रतीक है। व्यक्ति किसी को एक जैसा प्रेम सदैव नहीं कर सकता। व्यक्ति का जीवन वैसे भी नश्वर है। प्रभु शाश्वत है। वह प्रेम के सागर है। उनका प्रेम अथाह है। इस प्रेम के सागर से ही जुड़ने का प्रयास करना चाहिए। ईश्वर की कृपा बरसने का मतलब है कि हम समाज के प्रति उदार रहें। सेवाभाव रहना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन राकेश अग्रवाल ने किया। इस अवसर पर लायंस के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ऐके सिंह, के एस लूथरा, मनोज रुहेला, केसी वर्मा, स्थानीय सभासद राम कृष्ण यादव, राकेश श्रीवास्तव, नरेश चन्द्र, अजित सिंह, अनिता गुप्ता, योगेश गोयल, योगेश दीक्षित, बीएल तिवारी आशीष गांगुली, इंद्राणी गांगुली, राम कुमार आजाद, पूनम मिश्रा, वीरेंद्र मिश्रा, अशोक गौतम, गौरव अग्रवाल, मुकेश गुप्ता, संजय अग्रवाल, प्रमोद सक्सेना, हिमांशु सिंह, अर्चना अग्रवाल, केके गोगिया, रश्मि दीक्षित, बबिता गोयल, आशा अग्रवाल सहित स्थानीय लोग उपस्थित रहे।
रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री