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जीवन ऐसे जिएं कि वासनाऐं समाप्त हों और आध्यात्मिकता बढ़े: स्वामी चिन्मयानंद

लखनऊ। हम अपने आस-पास की दुनिया पर प्रभाव डाले बिना एक दिन भी नहीं जी सकते हैं और हमारे पास एक विकल्प है कि हम किस तरह का प्रभाव उत्पन्न करते हैं। आज हम उन सभी के लिए प्रार्थना करते हैं जो इस महामारी के समय जरूरतमंदों को भोजन, आश्रय और आपूर्ति प्रदान कर रहे हैं। विशेष रूप से इस समय में उनकी उदारता और दयालुता के लिए उन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त हो।

कृष्ण कहते हैं कि जब आप अपने आप को किसी कार्य में मार्मिकता, दक्षता और निपुणता के साथ लगाते हैं, उद्देश्य की निरंतरता बनाये रखते हैं, आपको बाधाओं की चिंता नहीं है तो ऐसे सुसंगत कर्मयोगिों को मैं, बाहरी दुनिया अथवा परिस्थितियों नहीं – वो तो आपकी अपनी वासनाओं द्वारा आदेशित की जाती है, परिस्थितियों का सामना करने और कर्म करने के लिए और अधिक धैर्य देता हूं। जैसे-जैसे आप जीते हैं, आपका व्यक्तित्व, जीवन शक्ति बढ़ती है, आपका अपने आप पर और अपने काम पर आपका विश्वास बढ़ता है, उस विश्वास के साथ जब आप आह्वान कर रहे हों, तो सफलता अवश्य ही आनी चाहिए। और जब सफलता मिलती है, तो परोक्ष रूप से आप कह सकते हैं कि आपने मुझसे सफलता प्राप्त की है।

महान शिक्षक कहते हैं कि जो कम बुद्धिमान हैं या विवेक करने में सक्षम नहीं हैं, वे सीमित, अल्पकालिक, नाशवान, अनिश्चित भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए सभी संघर्ष, कड़ी मेहनत, निरंतरता और ध्यान केंद्रित करते हैं। यदि आपने सिर्फ उतना ही प्रयास और समय उच्चतर की प्राप्ति के लिए लगाया होता तो मैं आपको अधिक से अधिक विश्वास प्रदान करता और आप उच्च तक पहुँच जाते जो अनंत, आंतरिक और अपरिवर्तनीय है। चुनना आपको है। स्वामी जी कहते हैं कि वासनाओं के दबाव में हममें से अधिकांश लोग अपनी सांसारिक इच्छाओं के कारण उच्चतर के बारे में सोच नहीं सकते हैं बल्कि सीमित नाशवान चीजों को प्राप्त करने के लिए लगातार केवल बाहरी दुनिया में ही कार्य करते हैं, और आप उन्हें प्राप्त भी करते हैं और अस्थायी रूप से खुश महसूस करते हैं, लेकिन यह धीरे-धीरे नाशवान होने के कारण आपके दुख में समाप्त होता है।

स्वामी जी कहते हैं कि समझो कि जगत में दिखाई देने वाली हर चीज परिमित है, जगत को खेल समझकर खेल खेलो, इससे भागो मत। जैसे कि आप गुब्बारों से खेल रहे हैं, आप अच्छी तरह जानते हैं कि वे टूट जाएंगे तो हर बार जब एक गुब्बारा टूट जाए आप दुखी ना हों। भगवान कहते हैं कि जो लोग देवताओं और अभूतपूर्व शक्तियों का आह्वान कर रहे हैं, वे वहां पहुंचते हैं, लेकिन यहां याद रखें कि यह सब सीमित है। जो एक ही उद्देश्य की निरंतरता से मुझे खोजते हैं वे मुझ तक पहुँचते हैं। अंतर प्राप्त परिणाम में है – भौतिक लाभ अनित्य हैं और दूसरी ओर यदि आप मुझ तक पहुँचते हैं, तो मैं स्थायी हूँ, यह अधिक स्थायी लाभ है। स्वामी जी कहते हैं कि बाहर की दुनिया में जीवन जीना सीखो, अपना दृष्टिकोण थोड़ा बदलो ताकि ये वासना समाप्त हो जाएं, आध्यात्मिक वासना बढ़े। उस स्थायी स्थिति को प्राप्त करें, दुनिया में उन छोटी-छोटी वस्तुओं के पीछे मत भागो।

आज के ज्ञान यज्ञ के प्रारंभ में चिन्मय विद्ययलय, आर. एस. पुरम, कोयंबटूर के छात्रों ने ‘‘श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रं’’ का गायन किया और वेदांत पाठ्यक्रम बैच – 18 के साधकों द्वारा अध्याय 7 भगवत गीता के श्लोकों का उच्चारण किया गया। साथ ही चिन्मय विश्वविद्यापीठ, चेन्नई का एक परिचयात्मक वीडियो भी दिखाया गया।

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