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हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के प्रतीक हैं ‘मनोज सिन्हा’

राजनीति में पता नहीं क्यों राजनेताओं के चेहरे से सच्चाई और मासूमियत कहीं खो जाती है। नेताओं के होंठों की मुस्कान कुटिल दिखने लगती है। कम ही ऐसे नेता होते हैं जिनको देख कर मन सम्मान और प्रेम से भर पाता है। उन चंद नेताओं में से एक नेता मनोज सिन्हा हैं।

वाणी में ओज, चेहरे पर तेज, सौम्य उजास, गहरी आंखें जिनमें सच्चाई, होंठों पर हर दिल को जीत ले ऐसी मुस्कान और करीने से कढे बाल, मोटी चोटी। ऊपर से आधी आस्तीन का कुर्ता (जाड़ा हो या गर्मी) और खादी की धोती। कहां जीते हैं राजनेता लोग इतने परफेक्शन से ज़िंदगी।

इंडिया टुडे मैगजीन ने अपने सर्वे में मनोज सिन्हा को सात सबसे ईमानदार सांसदों में जगह दी थी।

पूर्वांचल के एक गांव से निकलकर आईआईटी, बीएचयू में पढ़ाई, छात्र राजनीति में सक्रियता, तीन बार लोकसभा के सांसद, रेल राज्यमंत्री और फिर यूपी के सीएम पद की रेस में सबसे आगे दिख रहे मनोज सिन्हा अब जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल होंगे।

उनकी हमेशा से ही पहचान एक साइलेंट परफॉर्मर की रही है। लो-प्रोफाइल रहकर काम करने वाले मनोज सिन्हा की इन्हीं खासियतों ने उन्हें आज यह मुकाम हासिल हुआ है।

कोई चार साल पूर्व दिल्ली के एक वैवाहिक समारोह में वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने जब राजनाथ शर्मा (बाराबंकी) की मुलाकात मनोज सिन्हा से कराई तो मनोज जी ने कहा, ‘मैं शर्मा जी से पिछले चार दशक पहले से परिचित हूँ। शायद शर्मा जी मुझे भूल गए हों लेकिन मैं उन्हें नही भुला।’ मैं इन्हें जनता पार्टी के ज़माने से जान रहा हूँ। बहुत अच्छे व्यक्ति हैं।’ फिर वहीं तय हुआ कि शर्मा जी आप मुझसे बिना मिले बाराबंकी नही जाएंगे।

जॉर्ज साहब के बाद यही व्यक्ति ऐसा है जिसके बंगले पर भी भारी भीड़ होती है। यही जनप्रिय नेता की पहचान है।

अगले दिन मिलने का समय तय हुआ। स्थान था रेल भवन उनका मंत्रालय। तय समयनुसार मैं और राजनाथ शर्मा लगभग 15-20 मिनट देरी से पहुंचे। मंत्रालय पहुंचते ही उन्होंने बाबूजी को गले से लगा लिया। जैसे कोई बरसो का बिछड़ा अचानक मिल गया हो। फिर राजनाथ जी ने कहा कि साधन की समुचित व्यवस्था न होने के कारण थोड़ी देर हो गई आने में। सिन्हा जी मिलने के लिए मानो एक एक मिनट का हिसाब रख रहे थे। उन्होंने कहा पूरे 20 मिनट देर से आए है। आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। इसलिए मैंने सारे कार्य रोक रखे है। फिर दोनों मित्र कुछ पुरानी बातों में खो गए। अंत में शर्माजी ने उन्हें बुढ़वल वाया महादेवा रेल लाइन को शुरू करने का आग्रह किया। उन्होंने फौरन अपने सहयोगी मूर्ति जी को यह जिम्मेदारी सौंपी।

उनकी हमेशा से ही पहचान एक साइलेंट परफॉर्मर की रही है।

कुछ समय बाद फिर दिल्ली जाना हुआ तो मनोज जी से उनके आवास पर मुलाकात हुई। वह अभी घर के दफ्तर पहुंचे नही थे। भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। बाबूजी ने कहा कि जॉर्ज साहब के बाद यही व्यक्ति ऐसा है जिसके बंगले पर भी भारी भीड़ होती है। यही जनप्रिय नेता की पहचान है। कुछ देर बाद मनोज जी अपने दफ्तर पहुंचे। चूंकि उनके आने से पहले नाम की पर्ची भी जा चुकी थी लेकिन भीड़ के कारण पर्ची पहुंचने में काफी समय लगा। मनोज जी ने सभी पर्चियों को देखा और पहले ही बार में उन्होंने बाबूजी को मिलने के लिए बुलाया।

बाबूजी न तो आरएसएस के सदस्य थे, न विधायक, न सांसद और न ही भाजपा के सदस्य थे, फिर भी उन्हें सबसे पहले बुलाया और उनके झोले से सभी दरख़्वास्त ले ली। हमारा रेल आरक्षण भी कराया और हम वापस आ गए। मनोज जी से जितनी बार मिलिए हर बार वह उतनी सौम्यता से मिलते है। और भी बहुत सारे किस्से है संस्मरण है। जो फिर कभी लिखूंगा।

फिलहाल मनोज सिन्हा जी का मिलनसार व्यक्तिव ही उन्हें हर किसी के करीब पहुंचाता है। ऐसी शख्सियत जो अपनी ईमानदारी और कार्यशैली के कारण बेस्ट सांसद चुना गया। इंडिया टुडे मैगजीन ने अपने सर्वे में मनोज सिन्हा को सात सबसे ईमानदार सांसदों में जगह दी थी। आज उनकी कार्य क्षमता का सही इनाम मिला है। मनोज जी जहां हिन्दू और मुस्लिम के सौहार्द के प्रतीक माने जाते हैं वहीं एक कुशल प्रशासक और राजनेता के रूप में ख्याति अर्जित की।

शाश्वत तिवारी

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